पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/५९२

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कालिंदास ५६५ "एसो वाणासपाहत्याको मणि' यणपुप्फमालाधारपिडी' थे। मामवचरित्र-चित्रण, स्वभाववर्णन पौर सुमधुर परिबुटी रहो एव्य पापहदि पिसवपस सो।" पमिज्ञान-शकास, २५ छन्दोग्रन्यनमें उनके तुल्य कवि संस्कृत भाषामें पुराविदोंने उक्त चिंत्रको वाद्वौक रमणीयों का बताया वाल्मीकि व्यतीत किसी दूसरेने जन्म नहीं लिया । है। भूरि भूरि प्रमाण मिलता है कि अतिप्राचीन कान्निदासने स्वरचित प्रत्येक ग्रन्थमें प्रमाधारण कानसे वाहोकांके साथ भारतवासियों का सम्बन्ध रहा कवित्वशक्तिका परिचय दे पाचात्य जगत्में भारतीय था, किन्तु ई० १म शताब्दको वह सम्बन्ध टूट गया । शक्यीयर पदनाम किया है। इस प्रकारके स्थलमें असम्भव नहीं, जिससमय वाहीको उपरि उक्त अन्य छोड़ 'पस्वास्तव', 'कालोस्तोत्र, के साथ भारतवासी हिन्दुका सम्बन्ध रहा. कालि- 'काव्यनाटकालङ्कार', 'घटकपर', 'चण्डिकादण्डस्तोत्र', दास उसी समय के लोग होंगे। मासिकसे ई०१म शताब्द 'दुर्घटकाव्य', 'नलोदय', 'नवरत्नमाला', 'नानार्थ कोष', को एक शिलालिपि निकली है, उसमें शकारि नाम 'पुष्यवाणवितास', 'प्रश्नोत्तरमाना', 'राक्षसकाव्य', मिलता है, विक्रमादित्यका एक नाम शकारि भी था। 'लघुम्तव', 'विवहिनोदकाव्य', 'वृत्तरत्नावली', 'सन्दावन' भारतके नाना स्थान में प्रवाद है कि कालिदास का', 'शृङ्गारतितक', 'शृद्धारसार', 'श्यामलादण्डक', विक्रमादित्यके समकालीन रहे । यदि उक्त प्रवादका 'थ तबोध', प्रभृति बहु ग्रन्थ कालिदासके नाम- कोई अंश प्रकत हो तो मानना पड़ेगा कि. प्रथम से ही प्रचलित हैं । किन्तु सन्देह नहीं कि उता शताब्दी व शकारिके राजत्वकालमें कालिदास पुस्तक विभिन्न व्यक्ति द्वारा विभित्र समयमें बनाये विद्यमान थे । मेघदूतके २० से ४३ लोक मनायोग गये हैं। संचराचर लोगों को दृढ विश्वास है कि पूर्वक पढ़नेसे अनुमान कर सकते हैं कि वह उन्जयिनी 'नलोदय' महाकवि कालिदास-विरचित है । किन्तु के दशपुर (वर्तमान मन्दरशार ) में रहनेवाले थे। विशेष प्रमाण मिला है कि उस ग्रन्यको नारायणके अनेक अन्यों में कालिदास का नाम प्रचलित है। पुत्र रविदेवने लिखा था। इस ग्रन्थ की रामऋषिकत किन्तु उनमें सब पुस्तक महाकवि कालिदासके कर प्राचीन टीकामें भी उन विषयका प्रमाण मिलता है। 'निःसृत मालूम नहीं पड़ते । प्रसिह टीकाकार मल्लि- बलभद्र पुत्र कान्तिदास-प्रणीत 'कुण्डप्रबन्ध और राम- नाथने रघुवंश, कुमारसम्भव और मेघदूत तौनकाव्य गोविन्दपुत्र कालिदास-विरचित 'त्रिपुरासुन्दरीस्तुति- कालिदासके बनाये बताये हैं। टोका' भी प्रचलित है। ज्योतिर्विदाभरण, रखकोष, नाटकके मध्य पमिशान-शकुन्तन्ना और विक्रमोर्वशी | विचन्द्रिका, गङ्गाष्टक, और मङ्गलाष्टक प्रभृति अन्य दोनों उन्होके सुकर निर्गत हैं। कोई काई मालवि. कालिदास नामधारी. मित्र भित्र व्यक्तिलिखित हैं। काग्निमित्र नाटक और ऋतुसंहार नामक खण्ड इमको छोड़ कालिदासगणकविरचित 'थव पराजय काव्यको भी महाकवि कालिदामका बनाया मानते शास्त्रसार', अभिनवकालिदास विरचित 'अभिनव- है । किन्तु अभिज्ञानशकुन्तल और मालविकाग्नि भारतचम्पू' सधा 'भागवतउम्मू, काश्यप अभिनव मित्रकी रचना-प्रणान्ती मिलाने घोर सन्देश कालिदासकृत ऋङ्गारकोषमाग' और नव कालिदास- उठता है वह एक ही व्यक्तिके इस्तप्रसूत हैं या नहीं। विरचित 'सारसंग्रहंकाव्य' मिलता है। कालिदास संस्कृत साहित्यके जगत्ने एक महाकवि R. G. Bhaudnrkar's Reports, Sanskrit Mes, (for

  • "मोक्षनाधकविः मोऽयं महात्मानिधया

1888-4) p. 16, म्याचरे कालिदासी कायनयमनाकुलम् ॥ + Prof, Peterson's Srd. Report on the Search for Sanskrit. Msg. p. 837. कालिदासो गिरा चार कालिदानः मरसतीम् । ft यह बघ १०५१ को बना था। चतुसंखो यथा सापादिदुर्नान्ये सु माहगा" नाधयाचार्य ने अपने 'मचेप गहरायमें अपना परिचय पनि (रम, मतिनावहतसंसोवनी टौका ।) कालिदासके नाम दिया