पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/५८५

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कालिञ्जर सरोवर खोदा गया है। पहाड़से उसमें दिनरात और जन तीयहरकी प्रस्तरमूर्ति देख पड़ती है। बूंद बूंद पानी टपका करता है। कोटतीर्थसे उसमें वाम भोर पहाड़में दूसरी कई मूर्ति हैं। खान जल जाता है। स्थानपर शिसालिपि उत्कीर्ण है। मुसनमानोंके दुर्ग के मध्य कोटतीर्थ नामक एक सरोवर है। शासनसमय व एक एड बना था। कसईका कालंजरमाहामा वही कोटौतीर्थ नामसे वर्णित है। काम होनेसे अनेक लेख अदृश्य हो गये हैं। कुछ दूर कोटीतीर्थ में स्नान करनेसे कोटि जन्मका पाप छूटता पागे जानेसे जटाशहर, शिवसागर और तुङ्गभैरवको है। सरोवरमें उतरने के लिये प्रशस्त सोपामावली मूर्ति है। वहां कई गुहा भी हैं। कई स्थानमें प्रस्तर है। किन्तु उसमें सकल समय नल नहीं रहता । कोई पर कितना ही सिखा है। किन्तु उसका अल्प मात्र बड़ी भारी वृष्टि हो जानेसे कुछ दिन जल देख पडता पढा गया है। कहीं "चैत मुदौर, सन् १९८२ संवत् है। सरोवरको चागे और नानाविध प्रस्तरखण्ड ग्रथित नरसिंह रतनके पुत्रने वामदेवको मूर्ति प्रतिष्ठित हैं। उनमें अनेक शिक्षालिपि उत्कीर्ण देख पड़ती हैं। की है, कहीं "जेठ मुदौ ८, ११-२ संवत् दीक्षित लेख अनेक स्थानों में मिट गये। सुतरां पानतक उनका पृथौधर" और कहीं "श्रीकीर्तिवर्मा देव और समिखर उसार नहीं हुआ। सरोवरके पाच में उपरिभागपर देवगणको प्रणाम करते हैं लिखा है। तभैरवके प्रस्तरभवन और अन्यान्य ग्रह बने हैं, वह अत्यन्त एक स्थान पर “मदनवर्माक अनुचर साहन, पुरातन समझ पड़ते हैं। स्थान स्थानपर संस्कार भी सोहनके पुत्र महाबाणिक, उनके पुत्र बछराजने किया गया है। वहां भी बहुविध पुरातन खोदित लक्ष्मीदेवीको मूर्ति स्थापन की, कार्तिक मुदी सनीचर लिपि देख पड़ती हैं। कोटीतीर्थसे परिमलको बैठक संवत् ११८८* लिखित है। इसीप्रकार दूसरा भी और अमानसिंहका महल छोड़ दक्षिणपश्चिम मौल. कितना ही लेख है। निकट ही नीलकण्ठका मन्दिर कण्ह नानेका पथ है। पथमें एक फाटक नगा है। पहाड़ के नीचे से उस मन्दिरको प्रपूर्व शामा देख फाटक पार होनेसे प्रकतिको अपूर्व शोभा देख पड़ती पड़ती है। वहां एक गुहा है। गुहाके सम्मुख अष्ट- है। पर्वत उच्चसे असमतल हो बिलकुल नोचेको कोण प्राङ्गणकी चारी पोर प्रस्तरके स्तम्भ है। सम्भोंके झुक गया है। जहांतक दृष्टि जाती, वातक अपूर्व निर्माण-कौशसमें पति चमत्कार दिखलाया गया शोभा देखासी है। पहाड़के नीचेसे बांदा नौगांवकी है। उनके उपरिभागमें विष्णुको एक चतुर्भुज मूर्ति राह देखने पर मनमें पाता, माना उपवीतका गुच्छ स्थापित है। स्तम्भ अष्टकोण मण्डपको प्रष्ट दिक् पड़ा देखाता है। प्रदूर ही श्यामन्त शस्थपूर्ण प्रशस्त अवस्थित हैं। लोगोंके कथनानुसार उपरि उपरि भूखरह नील नभस्थलमें जाकर मिल गया है । बीच | स्तम्भोंको सात श्रेणी रहीं, किन्तु पानकल एक मात्र बौच छोटे छोटे पहाड़ हैं। कहीं निझरिणी और देख पड़ती है। उक्त गुहाके अभ्यन्तरमें नीलकण्ठ कहीं सोतस्वती सूर्यातपमें रौप्यमय ही भरभरा महादेवको मूर्ति है। गुहाके बाहर बहुविध शिल्प- क्या हो सुन्दर प्रकृतिको पपूर्व शोभा है। कार्य हानका प्रमाण मिलता है। किन्तु वह समस्त उपरि उक्त फाटक पार होनसे उस पथमें दसरा फाटक चनेके काममें छिप गया है। प्रवेशद्वारके पाश्रम मिलता है। उससे पागे बढ़नेपर कवि तुलसीदास । हरपावती और गङ्गायमुनाकी मूर्ति हैं। शिवलित गाट नीलवर्णके प्रस्तरसे निर्मित है। उसकी उच्चता “भोलकुछो यव देवो भैरवाः रेवनायकाः । तीन रस्त होगी। नीलकण्ठदेवके तीन चक्षु है। कोटीतीर्थ यव तीर्थ सविस्तव न समय। कोटीतीर्थ जले चाला पूजयित्वा महाशिवम् । स्थान देखनेमे -युमपत् भय और भरिसका कोटौजन्मानिसात् पापान्मुच्ची मान समय। ट्रेक हो उठता है। उस नीसकण्ठ देवही काति-- कोटीतीर्थ प संगम्य मन्दाविन्या मति फलम् ny (कानरमा..-१९) परके अधिष्ठांव-देवता हैं। कहनेकी पावशकता. रही है।