सतावर। तिगर। VOE कालादर्श-कालान्तकरस काचादर्श (स• पु.) कानः शुभकर्मसम्यादककाल- कालानुसारि (म. पु.) कार्य क्षणवर्ण मृगमदं विशेषः पादयतेऽव, कान-पा-दृश-णिच् आधारे अनुसरति, काल-मनु-स-इनः । १.शिशपा इच। १ समयका दर्पण, वक्तका आईना। २ मूषिक, चूहा । ३ शैलज, एक खुशबूदार चोज । ५गुरु, भगर। २ स्मृतिपन्यविशेष। काचाटाना (हि. पु.) १ लताविशेष, एक वैल। वह कालानुसारिणी (सं• स्त्री० ) १ पिण्डीतगर । २ खेत: अंतिममोहर होती है। पुष्प नौलवणं रहते हैं। पुष्य शारिवा, सफेद सतावर १३ कृष्णशारिवा, काली पतित होनेपर वृत्त प्राता जिसमें कृष्णवर्ण धौज देखाता है। निर्यास प्रौपधर्म पड़ता है। किन्तु वीज कानानुमारिवा, कालानुशारिया देखो। और निर्याम बहुत थोडी मावामें सेवन करते हैं। कालानुसारी, कालानुसारि देखो। २ वक्त सताका बीज । वह बहुत रेचक होता है। लानुसायं (स' को.) कालेन मृगमद्देन अनु- काहादिक (स' पु०) वैशाख मास । सियते, काल-मनु-स-यत्। कालोण्यंत । पा३॥ १॥ १२॥ काखाध्यक्ष (पु.) कालानां खण्डकालानां अध्यक्षः १ मञ, कोई खुशबूदार चीज। २ शिया वृक्ष। प्रवर्तकः, तत् । १ सूर्य, सूरज । ३ कृष्णचन्दन । ४ पीतचन्दन । ५ तगरपादिका। "कालाच मजाध्यक्षौ विश्वकर्मा वमोना" (भारत,मन, ००) २ समुदायकाचप्रवर्तक परमेश्वर, वक्तका मालिक । कानानुसार्यक ( सं. ली.) कालानुसायं वा कन्। कालानर (सं० पु०) समानरके एक पुत्र । कालानल देयो। शैलन, एक खुशबूदार चीज । कालानल (सं• पु.) काल सर्वस हारकः अनला- कालानुसार्या ( सं. स्त्री. ) तगर । कर्मधा। प्रनयाग्नि, कयामतको भाग। २राम- कालानीन (हिं. पु.) काचलवण, काला नमक । विशेष, एक राजा । उसके पिताका नाम समानर था। (हरिब १५.) कालान्तक (सं-पु.) कालस्य पायु:-कालस्य पन्तकः 'कासानाग (Eि..पु.), काल सर्प, काला सांप। मायकः तत् । यम । २ कुटिल पुरुष, टेढ़ा पादमी। कालान्तकयम (सं पु०) कालान्तकथासौ यमति, कालानुनादि (सं.पु.) कस एक कामः भव्यक्तमधुर कर्मधा-पायुःकालविनायक यम । २ प्रसयकारक सम् पनुनदति, कास धनु-गद-णिनि । १ चमर, मौरा । २ चटक, चिरोटा । ३ चातक, पपीहा। वन कालान्तकरस (सं• पु.) १ कालाधिकारका रस. कुक्कट, जंगली मुरगा। विशेष, खांसीको एक दवा। हिन्त, मरीच, त्रिकट, कालानुभावकता (सं• स्त्री.) कालं अनुभवति, काल- टहण और गन्धक समभाग जम्बीरका रस डाल याम मात्र मर्दन करनेसे उक्त औषध प्रस्तुत होता है। धनु-भू-खल, कालानुभावकस्य भावः, तल्टाप । समय अनुभव करने की शक्ति, जिस ताकससे वह गुवामात कालान्तकरस खिम्नानसे. कासरोग दव जाता है । २ यक्ष्माधिकारका रसविशेष, तपेदिककी कालानुशारिवा (स.बी.) कालेन कणवर्णन पनुः एक दवा । लौहमयी मूषा ऊपरको द्वादश पनड. कसा गारिवा, मध्यप.१ कष्ण-पारिवा, काली समा- बनाते हैं। फिर स्वर्णवाराहीको समः सहकन्याक वर। २ तगरपादिक, सगरमूल। पौतसी जटों। रससे मदन कर याममाव लशुनसे धौट गोला बनाकर कासानुसारक (स• पु० ) कालं कणवणे मृगमदं रख देना चाहिये । उसके पीछे पूर्वीच भूपा, चौवाई अनुसरति गन्धेन इति शेषः, काल-अनु-म-गवुल । पारा और गन्धक निर्गुण्डीके रससे पीस कर डामते गर। २ पोतचन्दने । वि.) समयानसारी, हैं। फिर मूषाको नौहचकसे पाच्छादन बर वकया- बालके सुवाफिक । मैं सबको फंकना चाहिये । इसीप्रकार अष्टपुट बोध यम। । मालूम पड़े।
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/५७८
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