कालसंरोध-कालसूत्र ५७३ सचीरवी मैनाकं गिरिव भारत । है। किन्तु कहाँ कहाँ कालसर्प लोकायम भो समझौतोऽसि कौन्तेय कालसेलच पार्थिव" (मारव, वन, ११) रहता देख पड़ता है। अन्यान्य सों की अपेक्षा कालसंरोध (सं० पु.) काम्नस्य संरोधः, ६-तत् । १ चिर उसमें क्रोध प्रतिशय अधिक होता है। यदि कोई कान अवस्थान, मैया मौजूदगी। २ दो समयका अत्याचार करता, तो कालसर्प बहुत दूरतक दौड़कर अतिवाहन, लम्बे वनका गुजारा। उसे डसना है। हिन्दुस्थानमें उसका बहुत प्रादुर्भाव कालमर्षा (. स्त्री.) कालेन सङ्घष्यते असो, है। वर्षाके समय राह चलने में विशेष सावधान रहना काश-सम-कष-कर्मणि धज । नववर्षीय कन्या, नौ पड़ता है। शिन्तु सौभाग्यको बात है किसी प्रकारका सालकी सड़को। अत्याचार न करनेसे वह कस काटता है। पदका किन्तु "एकवर्षा भवेत् सन्धया हिवर्षा च सरस्वती। शब्द सुनते ही कालसर्प दूर हट जाता है । विर्षा च विमूर्ति च चतुर्वर्षा सु कालिका । जब दैवयोगसे उसपर किसौका पैर पड़ जाता तो वह सुभगा पञ्चवर्षा च षड़वां च मा भरत क्रुच हो उसे काट खाता है। सप्तमिर्मालिनी साक्षात् अष्टवर्षा च कृमिका । कालसार (सं० लो०) कालः सारो यस्य, बहुव्री० । भवभिः कालसर दशमियापराजिता । १ पोत चन्दन । फाशेयक देखो। २ कृष्णसार नामक मृग- एकादतु रुद्राणी हा शब्द तु भैरवी । विशेष, काला हिरन । ३ कृष्णगुरु, काला अगर। बयोदय महालकोसिमा पीठगयिका। ४ सिन्दुक । ५ हरिताना
- वधा पञ्चदमि: पीथे चावदा मना" (पन्नदाकल्प)
६ काली तुलसी। कृपचार देखी। अन्नदाकल्पमें कुमारीके वयक्रम अनुसार नामका कासालय (स' क्लो. ) कालेन समानः पादयो यस्य, मेद निर्दिष्ट है। यथा एक वर्ष वयस्का सन्धा, टो बहुव्री०। १ नरकविशेष, कोई दोजख । पुत्र विक्रय वर्षको सरखती, तीन वर्षको त्रिमूर्ति, चार वर्ष की वा कन्यापण ग्रहण करनेसे उक्त नरकसे पड़ते हैं। कालिका, पांच वर्ष की सुभगा, छह वर्षको उमा, सात "यो मन यः सके पुत्र विश्वोय धममिच्छति । वर्ष की मालिनी, पाठ वर्ष की कुनिका, नौ वर्ष की कन्या या जीवितार्थाय य प न प्रयच्छति। कालसर्पा, दश वर्ष की पसरा, ग्यारह वर्ष की सप्तावर महाधोरे निरय कालसाड्वये । रुद्राणी, बारह वर्षको भैरवी, तेरह वर्ष की महालक्ष्मी, ख मूद्र पुरीषच सम्मिन्ध टः समभुते ॥” (भारत, अनु, चौदह वर्ष की पीठनायिका, पन्द्रह वर्ष की सेवना, कालसि-युत प्रदेशको कानसि"तहसौलको प्रधान और सोलह वर्ष की कुमारी अन्नदा नामसे अभिहित नगरी। वह पक्षा०.३९ ३२२०० और देशा. ७७: ५३२५“पू० पर अवस्थित है । देहरादूनके पास कालसदृश (सं० वि०) १ समयानुकून, वक्त के मुवाफिक। जहां यमुना और तमसा नदी मिली हैं, उसौके पति २ मृत्य तुल्य, मौतके बराबर । निकट कालसि नगरी बसी है। नगरी अति पुरातम है। कालसम्पन्न (मं० वि०) कालेन काले वा सम्पन्नम्। वहां एक प्रस्तर-खण्ड पर पथोक राजाको शिलालेख १ काम-कढक सम्पादित, वनका किया दुवा । खोदित है। २ यथाकाल निष्यन, जो वक्त पर बना हो। कालसिर (हिं० पु०) नौके कूपदण्डको शिखा, जहाजके . कासमर्प (सं० पु.) कालः कृष्णः सर्पः, कर्मधा। मस्तूलका सिरा। वष्णस, काला सांप । (Coluber naga) उसका कालसूक्त (सं० लो०.) वैदिक सूक्तविशेष, वेदका एक संस्कृत पर्याय-अलगद और महाविष है। वह फशी सूक्त। उसमें कालको वर्णना की गयी है। सों के अन्तर्भूत है। उसका वर्ष पतिशय चिकण कामसूत्र (सं० ली.) कास्तस्य यमस्य सूत्रमिव बन्धन क्लप रहता और मस्तकमें फणापर पदचिन्ह देख पड़ता है। जमोनके विसों में ही वह पाय: वास.करता हेतुत्वात, उपमिः । १ नरकविशेष, कोई दोजख । इस नरक प्रेतप्त तासमय है। मनुसंहितामें वह एक- Vol. IV. 144 पूर्व) होती है।