पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/५७१

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तथा ५७२ कालविध्वंसनरस-कालशैल शुद्ध पारद, स्वर्ण, रौप्य, तान और हरिताल, समभाग भागमें बांट वारके अनुसार.एक वा दो भाग काल- मदनकर पाण्ड और मामय रोग नष्ट हो जाता है। बेला मानते हैं। रविवारको दिनका पञ्चम एवं (रसरवाकर) रात्रिका षष्ठ, सोमवारको दिनका हिसोय (को०) कालस्य विध्वंसनम् । २ समयनाश, वक्तको रात्रिका चतुर्थ, मङ्गलवारको दिनका षष्ठ एवं रात्रिको. बरवादी। सप्तम, बुधवारको दिन का द्वतीय तथा रात्रिका सप्तम, कासविध्वंसनरस, कालविव'स देखो। वृहस्पतिवारको दिनका सप्तम एवं रात्रिका पत्रम, कालविवमी ( सं० वी) कालं विध्वंसयति नाशयति, शुक्रको दिनका चतुर्थ तथा रात्रिका द्वतीय और काल-वि.वस-णिच्-थिनि । समयनाशक, वक्ता बरबाद शनिवारको दिनरात्रि उभयका प्रथम एवं अष्टम भाग करनेवाला। कालवेला है। (दीक्षिपदीपिका) कालविपाक (सं० पु०) समयको परिपक्वता, वक्त पूरा कालव्यापी (सं० वि०) कालं व्याप्नोति कास-वि-पाप- होनेकी मियाद । णिनि। एकरूप वहुदिन स्थायी, एक ही तरह बहुत कालविप्रकर्ष (सं० पु.) कालस्य विप्रकर्षः दूरत्वम् दिन चलनेवाला। ६-तत् । समयको दूरता, वक्तका बढ़ाव। कालशम्बर (सं.पु.) एक दानव । कालविषाणिका (सं० स्त्री० ) काकोली और चोर कालशाक (सं० क्लो) कालं कष्ण शाकम, कर्मधा० ।। काकोली। १ शाकविशेष, करमू, पटुवा। उसका संस्क त पर्याय- कालवीजक (सं० पु.) महानिम्ब, बड़ी नीम। नाडिक, बादशाक और कालक है । भावप्रकाशके कालवृक्ष, कालन्त देखी। मतसे वह सारक, रुचिकारक, शीतल, पवित्र, वायु कामहधि ( सं० स्त्री) वृद्दिविशेष, एक सूद । प्रति एवं बलवर्धक और कफ, शोथ तथा रक्ष-पित्तनाशक दिवस वा प्रति मासके हिसावसे जो वृद्धि बढ़कर है। २ तिलपूतिका। ३ कुलस्थ, कुलथी। ४ घर-पुका, द्विगुण हो जाती, वही कालधि कहाती है। सरफोंका। ५ तुलसो वृक्ष। "चक्रवदि कालसद्धिः कारिता कारिका घया।" (मनु, ८।१५५) कालशालि (सं० पु.) कालः कृष्णः शाति: धान्य.. कालन्त (सं० पु०) कालं तन्तं यस्य, बहुब्री। विशेषः,कर्मधा । कणशालि, काला धान, उस धान्यका चावन्त पौर भूसी दोनों काले होते हैं। सुश्रुतके कालवृन्ता, कालन्तिका देखी। मतानुसार वह कषाय, मधुररस, मधुरपाक, थोतवीर्य कालचन्ताक (सं. पु.) पेटिका, एक पेड़ । अल्प अभिष्यन्दी, मनबहकांक, लघु और यष्टिक कालन्तिका (सं०.स्त्री०) कालं हन्तं यस्याः काल-चन्त. धान्यके तुल्य गुणयुक्त है। डोष् खार्थे कन-टाप, ईकारस्य इखत्वम् । रक्तपाटल- कालशिरा (सं० स्त्री.) वाला कष्णवर्णा शिरा, कर्मधा। २ पेटिका पिटारी। कृष्णवर्ण शिरा, काली रग। कालबन्ती (सं० स्त्री०) कातन्त-डी । पाटलाहक्ष, कालशुधि (सं० स्त्री०) कालस्य शुद्धिः ६-तत् । शुद्धकाल, एक पेड़। पाक वा । जिस समय समुदाय शुभ कर्म सम्पादन कालवेग (सं० पु.) नाग़विशेष, कोई नाग। वह कर सकते, उसे कालशहि करते हैं। वासुकिके पुत्र थे। कालय (सं• ली.) कत्लश्यां भवम्, कलशो-ठक । कालवेला (सं० स्त्रो०) कालस्य वेला, तत् । १ समस्त १ पादजलसे विभाग दधिवत तक्र, एक हिस्से पानी दिवारात्रिके मध्य क्रियाका अयोग्य समयविशेष, तमाम और तीन हिंदहीका बना मट्ठा । २ पाल, हरतात! दिन और रातके बीच काम न करने लायक वन । कालभेल (सं० पु०) कालः कणवर्ण: शैता, कर्मधा। पर्वतविशेष, एक पहाड़। दिनमान और रात्रिकाल समय में प्रत्येकको पाठ कुलत्य, कुलथी।