नस कालचिन मस्तकमें गोमय चर्णको भांति चूर्णपदाथ की उत्पत्ति, प्रयघायुक्त रमममूह दीपशान्तिकारक एवं अग्नि- भोजन न करनेपर भी मलमूवादिको वृद्धि, भोजन वृहिकारक रहता, वा अल्प दिन पीछे ही चल करनेपर भी मन्नमूबका विनाश और दम्स, मुख, वमता है। सुगन्धि द्रश्य दुर्गन्ध जैसा लगने अथवा नख तथा अन्यान्य अवयवों में विवरण पुष्प का प्रादुः विकुन किमी वस्तुमा गन्ध मालम न पड़नेसे र्भाव मालम पड़नेसे गोत्र मृत्यु पाता है।" मृत्य प्रामन्त्र ममझा जायेगा। गीत, पण कालको पवस्या एवं दिक् प्रभृति विपरीत भाव, अनुभव कथित लक्षण नोरोग वा रोगो उभयो मृत्यु- करने, दिवामागर्म सकन्न ज्योतिष पदार्थ प्रचलित लक्षण माने गये हैं । निम्नलिखित मृत्य लक्षण तथा रात्रिको सूर्यकिरण, दिनको चन्द्रकिरण, मेघ केवन रोगीके हैं,-"स्तनमूल, हृदय एवं वक्षो- शृन्य समयमें विद्युत्, विद्युत्मे वजणत, निर्मल देशमें शून उठने, शरीरका मध्यस्थल अर्थात् श्राकाण अथवा प्रामाद प्रभृति स्थानमें मेघ, वायु छाती पीठ और कमर सूजने, हस्तपद सूखने, एवं प्राकाशको मूर्ति, पृथिवीको धूप, नोहार अथवा मध्यदेश सूखने और हाथ पाव सूजने, पथवा वस्त्रादि द्वारा अपनको प्रावरित, लोकसमू किंवा अर्धांश सखने और अर्धा श सूजने पौर स्वर हकी प्रचलित प्रथवा जलप्लावितः देखेगा, वह नष्ट, क्षीण, विकल वा विकृत पड़नेसे पविलम्ब मृत्यु, बहुत दिन नहीं जीवेगा। फिर पाकाशमें होता है। मल, कफ एवं शुक्रका जलमें बना, नौके साथ अरुन्धती, ध्रव एवं पाकाशगङ्गा, और चक्षुसे भिन्न वा विक्वतरूप देख पड़ना, केशोंका ज्योत्सना, दर्पण तथा उष्ण जलमें अपना प्रतिबिम्ब तैनयुक्त मालूम होना, दुर्बन व्यक्तिको प्रचि तथा न देख सकनेवाला अथवा वितत एकानहीन अन्य पतिसार रोग लगना, कासरोगीका तृष्णातुर होना, प्राणी किंवा कुकर, काक, का, मध, प्रेत, यक्ष, क्षीण व्यक्तिका वमन एवं परुचिरोगयुक्त होना रासस, पिशाच, सर्प, हस्ती वा भूतके प्रतिविम्बकी और फेन, पूय तथा रक्तमिश्रित वमन करना सभी भांति देखनेवाला भी शीघ्र ही मरता है। प्रज्व. मृत्य लक्षण है। एक ही समय शूल एवं स्वरभङ्ग जितका वर्ग मयूरकर्णको भांति देखने अथवा अग्नि रोगसे पीड़ित होने, हस्त, पद तथा मुखदेशमें में धम न देख पड़नेसे मृत्युका लक्षण समझा शोध उठने, चोय रहते, पाहारमें रुचि न उपजने, नाता है। एतदभिन्न शरीरकै अवयवका शुलांश विण्डिका, स्कन्ध, हस्त तथा पद शिथिल पड़ने, कृष्णवर्ण, रुणांश शक्तवर्ण, रतवर्षको अन्यव. ज्वरयुक्ता कास रोग लगने, ज्वरकासरोग रहते ता, स्थिर पदार्थको अस्थिरता, पस्विर पदा पूर्वाहका भुक्तट्रव्य अपराहमें वमन करने और घं की स्थिरता, बहत्वस्तुको क्षुद्रता, क्षुद्र वस्तुका अपत अवस्थामै विरेचन होनेपर श्वासरोग उत्पन्न हत्त्व, दोघं इस्ख, इन दोघे, निःसरणम अनुपयुक्त होकर रोगीको मार डालता है। छागलकी भांति वस्तुका नि:मरण, नि:सरणमें उपयुक्त वन्तु मा अनि: पातमादकर भूसितल पर गिरनेवाले, शिथिन प्रण मरणा, अकस्मात् शरीरको शीतलता, उपाता, कोष तथा स्तब्ध वा नष्ट लिङ्ग रखनेवाले, गात्र. मिग्यता, रूजता, स्तब्धता, विवर्णता, वा अवसवता, सेवन करने पर हृदयस्य जलको प्रथम सुम्हानेको अङ्ग विशेषका स्वस्थानसे पतन, उत्प, चक्कर शक्ति रखनेवाले, लोट्रहारा लोट्रका काष्टके काष्ठपर पाना, निर्गत होना. प्रविष्ट होना, गुरुत्व वा प्राघात लगानेवाले अथवा नदारा प छेदन कर. रघुत्वको उत्पत्ति, अकस्मात् रक्तवर्गाका विगाड़, नेवाले, पधरोष्ठ काटनेवाले, उत्तरोष्ठ चाटनेवाले, गिराममूहका प्रकाश, ललाट वा नामिकापर पिड़का- | कर्ण वा केश पकड़ खींचनेवाले और देवता, ब्राह्मण, की उत्पत्ति, प्रातःकान सलाटसे धर्म निकलना, गुरु, सुखद एवं चिकित्सकसे वेष रखनेवालेका भी नेत्ररोग व्यतीत चतुर्म मर्वदा परनिर्गत होना, मृत्यु प्रति पासव होता है। जिसके सम्नकासीन Vol. IV. 141
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