ठेगा। कालिंकाषण ३५३ वर्णना करना प्रमभा , सबकी वणना कौन कर काम केयोपव (म. पु.) कार्य केय्यः पुत्रः, तत् । सकता है। क्यामी कागगरी है। सम्भाग क्रमान्व वगक ऋषिके दौहिव, यह एक पाचाय थे। यसै चार स्तवक हैं। उनकी लम्बाई धीरे धीरे घटतो कार्यन (है. नि.) मुलाविशिष्ट, मोतियोवाना। गयो है। उनमें कुछ गोगति हैं । उनके जपा प्रष्ट कार्यानव (स.नि.) कणंगदम, क्वयानु पण । पन्न है । पनौपर स्तम्भोंक मस्तक है। उनपर कंगनो वगानुसम्बन्धीय, भातशयो, गर्मी। लगी है। कंगनी पर दोनों दिक् हस्विमूति है। इस्ति काखीय (स.वि.) शाखेन नित्तम्, कशाश्व- पृष्ठपर कहीं दो मानव, कों दो मामी, कहों एक छण । कगाव द्वारा निष्पन्न । मानव और कहीं एक मानीको मूर्ति है । स्तम्भ घेणा | काश्म ( स० स्त्रो०) काश्म' रानि, कय-खाय णिच पार होने पर एक गुम्बज सो प्राकृति देख पड़ेगी। भाव मनिन् ग क-डोष । १ कासमारो।। श्रोपों। उसके परिमागमें "+इस चिन्हको भांति एक ३ शवना। पदार्थ और उसपर एक छत्र है। भाजकन्त काश्म य (सं० पु०) गाभागेक्ष, एक पेड़। उता छत्रका कुछ अंश टूट गया है। गुम्बजक काश्य (सं० पु.) कय स्वार्थे ष्यत्र । १ कचेरक, पवादागमें अष्टपम्नविशिष्ट दूमरे माम स्तम्भ है। कपूर। २ गाभारोक्ष। ३ लचक्ष, लु काटका उनकी बनावट सोधी सादी है, विशेष कार्य युक्त पेड। ४ क्षुट्रपर्णास। ५थानचा भाकहन। नहीं। मन्दिर के द्वारदेशमै उक्त स्तम्भोंके मुनदेश (लो) क्वयस्य भावः, कमप्यत्र । यर्थदृदादिभ्यः प्यम | पर्यन्त ८४ हाथ अन्तर होगी। प्रस्थमें दोनों दिक्के पा ११ ७ कयता, कमज़ोरो, दुवन्नापन। ८ वय- स्तम्भोंका मध्यस्थान साढ़े सोनुह तारांग, कमज़ोरोको बीमारी। इस रोगका कारण- वरामदायका परिमर पिचावत छोटा है। वात, रूवाबगन, सहन, पमिताशन, शोक वेग, निद्रा दहाथमे अधिक नहीं। उक्त बडी मेहरावक पीछे की विनिग्रह, नित्यरोग, परति, नित्य व्यायाम, भोजनको काष्ठको कडियां मेहरावसे संलग्न हैं। कड़ियोंकी अल्पता, भौति और धनादिकाव है। (भावप्रशास) कतार बंधी है। वह मेहरावको एक बोरसे दूमरी काय हरलौह (सं० पु.) कृयताका एक औषध, पौर तक चली गयी है। कड़ियां हमारे घर की तरह कमजोरीको कोई दवा। खेतपुनर्नवा, दन्तीमून, सरल भाषर्म अवस्थित नहीं। वह वक्र भाषपर मेह अश्वगन्धामूल, विफना, विकट, विमद, शत. रावसे मिल सरल भावपर शून्य में अवस्थित है। उनका मूली तथा खेतवेलेडा घराघर बरावर और सबके कोई पाधार देख नहीं पड़ता। आजकल कोई निर्णय बराबर लौह, भीमराजके रसमें घोटनेसे यह पौषध कर नहीं सकता-कैसे वह उस प्रकार संलग्न हुई है। बनता है । (सेदसारस यह) म देखने पर वर्णनासे इस मन्दिरका सौन्दर्य कैसे कार्य (स० वि०) कषिः शोलमस्य, कृषि-ण । स्या अनुभूत हो सकता है। कौन कह सकता-वह चैत्य झोपः। या । कृषकमकारक, कान कार, किसान। कितने दिनका पुराना है। बाहरके सिहस्तम्भपर | कार्षक (सपु० ) कार्य स्वार्थ कन् अथवा कर्षति कष- कोई खोदित अक्षर देख पड़ते हैं। लोगों के कथमानु क्वन् । पहियोदोचाम् । उप २ । ३८ । कृषक, खेतिहर । सार महाराज भूति वा देवभूतिने यह प्रक्षर खोदाये कार्षापगा (० पु. ली.) कार्यस्य कार्षेण वा पापणः थे। पायात्य मतमें भूति राजा ई. शताव्दमे ७८ वर्ष व्यवहारो यत्र, कार्षापण अण। १ षोड़श पण, १६ पूर्व राजन करते थे। उससे भी पूर्व मन्दिरका कौड़ो या रत्तो। २ कर्ष परिमाण, १६ माषा । यह बनना असम्भव नहीं। सोना तौलनेको १६ मासे, चांदी तौलनेको १६ पल काश केय (सं. पु०) कशकस्य ऋषैरपत्यम्, अशक. और सामा तौलनको ८० रत्तीका रहता है । ३ धन दन । कृशक मुनिके पुत्र। दौलत, सोना चांदो। ४ कपक, किसान । Vol, IV. 139
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/५५२
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।