1. ज्ये छ, पापाढ़, कार्पास ५३६ कभी कभी तो झपकका खुर्च भी वसूल नहीं होता 1 दिया जाता है। बाहर भेजी जानेवासी कपासके अनेक लेकिन अबंध और बनारसकी तरफ उप पच्छी नाम है । नीचे उममें कुछ संक्षिप्त विवरण दिया गया रहती है। है। अंगरेज महाजनोंके हाथ ही कपासको रफतनी घन तथा विकार देशके निम्नलिखित स्थानौम होती है। प्रतः कितने ही पंगरजी नाम लिखे हैं। किस किस समय वृक्ष नगति और किस किस समय धन्लेरा-बड़ीदा, कच्छ.और काठियावाड़से रफसनी कपास बीनते हैं इसको तालिका भौचे लिखे होती है। वह भावनगरी, मौवाई, बादबाहरी, प्रकार है- घोरमगांववाली, वेरावली, कच्छी भादि कई प्रकारको बोनेका समय बीननेका समय रहती है। कटक ज्येष्ठ, कार्तिक पाश्विन चैत्र बङ्गाली-बङ्गाल, पन्नाव, युक्तप्रदेश, राजपूताना चप्रास वैशाख, ज्येष्ठ अग्रहायण पौष पौर मध्यभारतमें उपजती है। कार्तिक, ज्य भाद्र पमरावती-के भी कई भेद है। दरभङ्गा प्राषाढ़ चैत्र, वैशाख खानदेशी-खानदेशी पाती है। समरा-वरार प्रदेश में होती है। ज्य छ, भाषाढ़ अग्रहायण, पौष मानभूम विलायती खानदेशो-पमरावती प्रभूति स्थानोंसे अग्रहायण, पौष चैत्र, वैशाख पाती है। भाखिन चैत्र मेदिनीपुर वेष्टारनस-मन्द्राज, . निजामराज्य और पथिम कार्तिक वैशाख, ज्येष्ठ भारतको कपास है। वैशाख, ज्येष्ठ धारवाड़ी-धारवाड़, विजयपुर और दक्षिण लोहारडागा महाराष्ट्रमें उपजती है। पाषाढ़ प्राग्रहायण, पौष प्राषाढ़ वैशाख, ज्येष्ठ कुमता-विजयपुर, बेलगांव, कोल्हापुर पोर दक्षिण महाराष्ट्र प्रदेशको कपास है। भाद, पाखिन भड़ोंची-बड़ोदा, भडोंच और सरत प्रदेशते वहादेश और विहारके मध्य कटक, चट्टग्राम, प्राप्त होती है। दरभङ्गा, मेदिनीपुर, मानभूम, लोहारडांगा, सारन, कोकनदी-लास रंगकी होती है। विपुरा, जलपाईगोड़ी प्रमृति स्थानाम हो पधिक मन्द्रानके अन्तर्गत कच्या जिले, नेल्लूर और गोदावरी परिमाणसे कपास उपाती है। घटना प्रचारमें प्रदेशमें उत्पन्न होती है। सिर्फ ग्लाको रंगको कपास होती है। सन्यान्न देशक विनवालो-त्रिनवली, कोयम्बतूर, तमोर प्रभृति' लोग उसे खुडवा कपास कहते हैं। और सफेद स्थानास पाती है। कामको हरा। सारने में भागथा, भोचरी, फतुवा, हौंगनघाटो-मध्यप्रदेशमें उपजती पौर बम्बईसे कोकता प्रभृति नामोंको कपास उपनती है। गङ्गाके रफ़तनी होती है। अञ्चलमें वङ्गीय, राढी, तोचार इन तीन प्रकारको सिन्धी-सिन्धुपदेशमें पैदा होती है। कपास, दरभङ्गा मञ्चलमें कोकटौ भैरा और भागस्ता भासामो-पासाममें उत्पन्न होती है। या तीन प्रकारको कपास प्रचचित है। कटकको ओर कार्पासक असंख्य प्रकार भेद हैं। फिर भिव भिव अबुधा और इसदिया प्रसिद्ध है। खानों में मित्र भित्र प्रकारसे उत्पादन करनेकी रीति भारतमें कपासको खपत पहले विलचप थी। और प्रणाली सचिस शोती है। भाजकल उत्पन्न कार्पासका अधिकांय बाहर मेज कासका धागा जितनाबी बड़ा रहेगा, उतना कातिक सारन माध
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/५३८
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