पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/५२६

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कारका कागज 1 कारागोला-बाराधुनी कारा नगर मुसलमानों को अनेक ऐतिहासिक उसका उल्लेख है। फिर उसको कर्कोटक नगरभी घटनावों के लिये भी प्रसिद्ध है। प्रवधके नवा पासफ- कहते हैं। कथनानुसार विष्णुचक्रसे खण्डित हो सतीदेवीक करका एक अंश वहां गिरा था। उद-दौलाने कारके पच्छ अच्छे भवन तोड़े थे। फिर सन्हीका सामान ले भाकर नवाबने लखनऊमें अपनी मुसलमान परिव्राजक पून्न बतूनाके अन्य उa तीर्घकी बात लिखी गयी है। प्राषाढ़ मासक कृष्ण इमारतें बनायौं। काराम वढ़िया कंचन बनता है। वहां नाना. पक्षमें प्राय: सुधाधिक लोग कारा जा गङ्गामान करते हैं। विध यस्यादि मी उत्पन्न होता है। वहां एक अति पुरातन दुर्ग है। वह ठीक गङ्गा भी खगव नहीं। अयोध्या और फतेहपुरके साथ पर अवखित है। पाजकल उसका भग्नदशा कपड़े कागज और और अनानका कारबार दुर्ग देय एवं प्रखमें प्राय: ६.० और ३५० हाथ चलता है। होगा। संवत् १०८५ विक्रमादके (१.३५ ई.) | कारागार (सं० क्लो०) कारा एवं प्रागारं काराये राजा यथोपानको कितनी ही मुद्रा मिची हैं। वन्धनाय वा श्रागारम् । वन्धनररह, कैदखाना। सुतरा निर्देश करना दुःसाध्य है कि-दुर्ग फिर भी कारागुप्त (सं० वि०) कारायां वन्धनागारे गुप्तः रुहः, कितने दिनका पुराना है। किसी किसौके कथनानु -नत्। कारारुह, कैदी। सार कौनके राजा जयचन्द्र ने उसे बनाया था। बाराय (सं० ली.) कारा एव राई कारायै बन्धनाय दुर्ग में निम्नमागके बाजार घाट पर एक मन्दिर वा इम्। कारागार, कैदखाना, नेल । देख पड़ता है। उसकी चारो ओर चबूतरा या कारागोला-विहार प्रान्तके पुरनिया जिलेका एक दान्तान है। उसमें दुर्गाको मस्तकशून्य एक मूर्ति पड़ी गांव। यह अक्षा० २५: २३३"३० और देगा. ८७. है। किसी स्थान पर एक शिवलिङ्ग पौर स्थानान्तरमें २०५१ पू० पर अवस्थित है। उत्तरवाङ्गमें रेल नन्दीको मूर्ति है। सम्भवतः मुसलमानोंने ही उस निकलने से पह लोग कारागोलकी राहही दार- मन्दिरको वह दशा की होगी धाटके निकट एक कूप जिलिङ्ग जाते थे। आजकल भी साइबगल और है। उसकी चारो ओर स्तम्भाकृति मीनार उठी है। कारागोन्तके वीच जहाज़ (मटीमार) चलता है। किन्तु मुसलमानोंकी भी बहुतसी इमारतें वहां देख कारागोलके सामने रेत पड़ जानसे वर्षाकाल व्यतीत पड़ती हैं। इनमें खोजाका कबरस्तान, लामा पारोहीको एक कोस दूर ही उतार देते हैं। यहां मसजिद, जैख सुम्खतानका रोजा वगेरह प्रधान है। एक बड़ा मेला लगता है। पहले यही मन्ना भागल- निकट ही दारामगरको एक मसविद और दो कवर पुर जिले के पीरपैतीस्तानमें होता था। स्तान, कचदग्यिा गांवके कुतुब पाम्नमका राजा समय तक मेला पुरनिया में रहा, १८५१ ई. से कारा- और माहजादपुरके अष्टादाद खानकी मसजिद भी गोलेमें लगने लगा। यहां दरभङ्गाके महाराजको देखने योग्य है। कुछ वालुकामय भूमि पड़ो, जो मेलाका स्थान बनी पहले उच्च नगर बहुत समृदिशाली और विस्तृत है। १० दिन धूमधाम रहती है। कितनो ही दुकानें -था। गङ्गाको पश्चिम दिक उसकी लंबाई एक कोस नाना प्रकारके रेशमी-जनौ तथा सूनी- और चौड़ाई श्राध कोम रही। पुरातन नगरका धस्त्र, लौहद्रव्य और प्रयोजनीय वस्तु विकृत हैं। भग्नावशेष आज भी देख पड़ता है। पूर्व उही खान नेपाली कुरी, भुजाली, अकरी, वैत, चंवर, चाख और पर युवप्रदेशका प्रधान नगर था। र लाते हैं। मेलेमें कोई तीस-चालीस हजार लोग प्रकवर इलाहाबादको प्रधान नगर उठा ले गये। फिर कुछ लगती हैं। किन्तु सबाट उसीसे काराको समृद्धि नर हुई। -आते होंगे। कारावुनी (स. स्त्री० ) कारायाः शब्दस्य आधुनी