पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/५२३

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कारवाई ५२५ काररवाई (फा स्त्रो.) १ काय, काम । २ कर्मण्यता, वापिज्यका विलक्षण प्रादुर्भाव रहा और उक्त स्थान कासका सगाव) ३ प्रथम, तदवोर। विजयपुरक अन्तर्गत था। फारवाडके देथाई अर्थात् कारव (सं० पु.) का इति रपी यस्य कुत्सिती रखो यस्य खजानेके तत्वावधायक विजयपुरक प्रधान कर्मचारी माने जाते थे। वा, बहुव्री०। काक, कौवा। १६३८ ई. को वहां अंगरेजोशी कारवली (सं० स्त्री०) कारा इतस्ततो विक्षिप्ता वही कान कम्मनीने वाणिज्य प्रारम्भ किया। उसके यस्था, बहुवी। १ शुद्र कारवेक्षक, करेली। लोग बहुस्ती पधसमें प्रायः ५० हजार जुलाहे लगाके यह तिक्त, उष्ण, दीपन, भौर कफ, वात, परोचक अच्छे अच्छे मुसलमानी कपड़े बनवा रतनी करते तथा दोष नाशक है। (राजनिघण्ट) इसका फल थे। इवायची, दालचीनी, सौंठ और दङ्गाडी नामक हिम, भेदी, लघु, तिल, वासत और पित्त, रता, नोले रंगका वस्त्र वसि बाहर भेजा जाता था। १६५६ कामला, पाण्डु, कफ, मेह तथा मिको दूर करने. ई० को महाराष्ट्राधिपति शिवाजीने वहांके अंगरेज वाला होता है। (मदनपाण्ड) २ कटुहुन्ची, परना। वपिकोंसे ११२१) रु. शुल्क पचन किया। फिर १६७३ कारवां (फा. पु०) यावियोका समूह, मुसाफिरीका ई० को कारवाडके फोनदारने अंगरेजों की कोठी पर मुण्ड। यह एक देशसे दूसरे देशको जाता है। एमके धावा मारा। दुसरे वार उन्होंने नगरजनाया था, किन्तु ठहरनकी जगह 'कारवां सराय' कहानी है। अंगरेजी कारखानको डायन लगाया। वरं अंगरेज कारवाड़-बम्बई प्रान्तके अन्तर्गत उत्तर कनाडेका अधिवासियोक प्रति यत्न ही किया गया। उनके पीछे प्रधान नगर। वह पच्चा० १४.५०३. और देगा. शिवाजीने भी चंगरेजोको सताया न था। किन्तु स्थानीय ७४.१४ यू. पर अवस्थित है। लोकसंख्या साढ़े प्रभुषोंकि अत्याचारसे १६७६ ई० को अंगरेज़ अपनी तेर बनारसे अधिक होगी। कारवा एका बन्दर कोठी उठा ले गये। तोन वर्य पोहे फिर अंगरेजाने है। इस बन्दरके सामने उपसागरमै पनि छोटे छोटे कोठी खोल कार्य प्रारम्भ किया। दो वर्ष पीछे १९८४ द्वीप है। उन्हें कस्तुरेको दीपावली कहते है। उनमें ई० को एक विषम काण्ड हुवा। विलायती जहाजके एकका नाम देवगड़ है। देवगड़में एक प्राचोक रह विलायतो नाविक हिन्दुवाक मवेशी चोराने लगे। यह बना है। समुद्रसे १४• हाथ ऊंचे उसको मिशिखा हिन्दुवोस मान गया। अंमरेजोंकी कोठी कठानेको प्रकाशित होती है। यह बालीक १२ कोमसे देख हिन्दुवोंने चेष्टा को थी। सप्तदश शताब्दीके भेष माग पड़ता है। भटके हुए जहाज पालोक देख समझ सोठका अंगरेजी व्यवसाय कारवाड़मे उठानेके लिये सकते कि बन्दर दूर नहीं। तदनुसार उसी पोर पोनन्दान विशेष चेष्टित हुये, किन्तु कृतकार्य दोन जहाज परिचालित होते हैं। सके। १५८७ ई० को महाराष्ट्रनि कारवाड़में लूट- कारवाड़के उपकूचसे ढाई कोस दक्षिण-पथिम मार करके अंगरौंका विशेष अनिष्ट किया था। समुद्रके गर्भ में अनिद्दीय नामक एक छोटा होप है। १७१५ ई० को नगरका पुरातन दुर्ग गिरा साम्साधि. इसमें पोगोनांका उपनिवेष है। अति अल्प दिन पतिनै सदाशिवगड़ नामक एक दुर्ग बनाया। फिर ये व नगर बसा था। पहले वो दरमात्र वह अंगरेजों पर अत्याचार करने लगे। उससे धारा १८८२२० को कनाड़े का उत्तरमञ्चल बम्बई कर १७२०ई० को अंगरेजोने अपनी कोठी छठा प्रान्तके पन्तगत दुवा। उसी समयमें कारचाडको डाली। १७५० ई० को वक्ष फिर जा पहुंचे। किन्तु इतिका भार है। पानकल उसको व्युनिसि- दो वर्ष पीछे पो गोजीने रपतरी ला सदाशिवगड़ पलिटोके अधीन ग्राम है। दखस किया था। इसके पीछे वारवाड़का वाणिज्य पुराना कारवाड़ नये कारवाड़से डेढ़ कोठ पूर्व पूर्णरोतिसे उनके हाथों चला गया। इससे अंगरेजोंने काची नदीके तौर अवस्थित था। अपना कारवार उठा दिया था। Vol. IV. 132 । पक्षले वहां