५२२ कारखाव-कारणोत्तर कारणत्व (सं० क्लो०) कारण-त्व। हेतुता, तसबीब, सोकानुराग यथाक्रम अपने पर पर वाक्यका कारण कारणका धर्म। रहनेसे कारणमाता प्रसार होता है। "कारणव भवचस्य।" (भाषापरिच्छेद) कारणवादी (सं० पु०) कारणं वदति, कारण-व-विनि। कारणवस (सं० पु.) कारणस्य ध्वंस: ६-तत्। १सका विषयमें कारणको स्वीकार करनेवाचा, जो कारणका नाश, सबबका जवाल। समवायो पौर सब बातों में सबबको मानता हो। २ मुद्दई, पिवायत असमवायी कारणका ध्वंस होनेसे कार्य भी मिट करनेवाला। जाता है, परन्तु निमित्त कारणकै ध्यससे कार्यवंस कारणवारि (सं• लो०) कारणखरूपं वारि, मध. नहीं पाता। पदन्ती। ब्रह्माण्ड की मुष्टिका कारणस्वरूप एकार्यक कारबध्वंसक (सं.वि.) कारणं ध्वंसते नाथयति, जल, पसली पानी। कारण-ध्वंस खुल्। कारणध्वंसकारक, सवयका कारणविहीन (सं० वि०) कारणरहित, देसवा । मिटानेवाला। कारण शरीर (सं० ली. ) कारणं अविद्या मेव शरीरम. कारणध्वंसी (सं० वि०) कारणं ध्वंसते नाशयति, कर्मधा। सत्वप्रधान अन्नान, काके रहनेको नगह। कारण-ध्वस-णिनि। कारणनाथक, सबवको बरबाद सुषुप्तिकान्त पर जो जोवगत पत्रान पारादि करनेवाया। शरीरोत्यादक पदार्थ के संस्कारमानमें प्रवशिष्ट रहता, कारणनाश (सं० पु.) कारणस्य नाशः, -सत्। वेदान्तमतसे उसका नाम 'कारवयर' पड़ता है। कारणका विनाश, सबबकी बरबादी। इसका संस्कृत पर्याय-पानन्दमय कोष और कारणनाशक (सं.वि.) कारणस्य नाशकः, कारण- सुषुप्ति है। नश-णिच् पवुल। कारणको नाश करनेवाला, जो | कारणा (सं• स्त्री.) कारयति हिंसयति, छविच्- सबाबको मिटाताओ। युच्-टाए। प्यासनों युत् । पा श.1 १ यातना, कारणभूत (सं.वि.) कारणं भूयते येन, कारण-भू-ता। तकसीफ। २ गाद वेदना, गहरा दर्द। ३ नरक- कारणखरूप, बायस बना हुवा। यन्त्रणा, दोजखको तकलीफ। कारणमाला (सं० स्त्री० ) असहारशास्त्रोक्ल एक अर्या-कारमान्वित (सं० वि०) हेतयुक्त, सबब रखनेवाला। कारणाभाष (सं. पु.) कारपस प्रभावः तत् । कारणका प्रभाव, सबबको पदममौजूदगी। "परं पर प्रवि यदा पूर्वस्य हेतुवा । कारणिक (वि.) करणः सारसर्वा परति, करण सदाकारणमाला सात-" (साहित्य) 'पर पर के प्रति होत नई पूर्व पूर्व को रेता वा कारण-ठक्। परति । पा | १ परोचक, जांच कारबमाला नाम सईचतुर सुपसित देत' करनेवाला। (करवस्य पदम करण-४ विठ्वा) २ करवसम्बन्धीय। पूर्व पूर्व वाक्य अपने पर परवर्ती वाक्यका हेतु कारणोत्तर (सं.की.) कारन उत्तरम. तत्। हानेसे कारणमाला पलहार लगता है। जैसे- पसामान्य उत्तर, खास बास। विचारखचमें "असं छातषियो समान जायते विनयः शतान् । वादीकी बात सब मानते .मी जो उत्तर प्रतिकूस खोकानुरागी विनयान किं चौकानुरागवः।" कारण देखा कर दिया जाता, वही कारणेत्तर 'पवितको सतसा विये श्रुविधानको होत प्रकाथ पपारा! मानसों त्यों पभिमान मिटे र पावति यानि भनेक प्रकारा कहाता है। इसका. संस्कृत नामान्तर प्रत्यवम्कन्दन रामअधोम समान्तिक पावन लोमनको धनुरोग पसारा। है। कारणोत्तर तीन प्रकारका होता है बसवत, खोइनके भनुरामयों को बाहानाको मासिब मारा: तुमबल और दुबंध। बसवत् यथा,-वास्तविक मैंने यहां पडितांकामा व्यानरम, विनय और पापो सौ रुपये का सिक- बिपापको Q
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/५२२
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