। पायय अन्तर्गत बार प्रदेश में ही सोग अधिक देख पड़ते । शिवाजी (६२) कायस्थ प्रभुवोंसे । फिर थाना और कुचागा निखामें भी अधिकांश बहुत प्रीत रहते थे। समय समय पर संतारा,. चान्द्रसेनी प्रभु पाये जाते हैं। कैवस से दोनों कोल्हापुर, नागपुर और बड़ोदाकी अदालतों में 'जिंसोंमें ही वह बारह बारसे कम न होंगे। कायखों ने बड़ा प्राधान्य पाया। पूनाक राव बहादुर खास बम्बई, जंजीरा, पूना, सितारा और अन्यान्य रामचन्द्र सखाराम गुप्तके कथनानुसार शिवाजीने एक स्थानमें भी उनका वास है। बार राजस्व विभागके अपने समस्त वाण निकाल चान्द्रसैनी प्रभु कायस्व अयोध्याके क्षत्रियराजा करके उनके स्थान पर कायस्थ प्रभुषोंको रखा था। चन्द्रसेनको सन्तति होनेका दावा करते हैं। मोरपन्त पिङ्गले और नौलपन्त अपने दो ब्राह्मण पुराणके रेणुकामाहामामें लिखा है-“परशरामने सम्मतिदातावोंके भांपत्ति करने पर शिवजौने कहा- क्षत्रिय-संहार को अपनी प्रतिज्ञा पूरण करनेके सिये 'स्मरण रखिये कि विना विवाद समस्त मुसलमानी सहस्रार्जुन और राजा चन्द्रसेनको मार डाला। स्थान, जो वाद्यों के अधिकारमें थे, छोड़ दिये गये हैं। परन्तु उन्होंने सुना, चन्ट्रसेनको महिषोने दाल्भ्य परन्तु प्रभुयों के अधिकृत स्थाने लेनमें बड़ी मुशकिल 'ऋषिका पाश्रय चिया था और वह गर्भवती रहीं। पड़ी थी। इनमें एक राजपुरी प्रान भी नहीं ची 'परशुराम अपनी प्रतिज्ञा पालन करनेको उल ऋषिके जा सकी है। 'निकट जा कर उपस्थित हुवे। ऋोषने परशरामको बम्बई-प्रान्तके चान्द्रसेनी प्रभु ब्राह्मणों के पीछे ही 'बादर सत्कार कर कहा था-'आप अपने पांगमनका सामाजिक आसन पति और प्रपनको क्षवियं बंतांत अभिप्राय वतवायिये। पापका प्रमिलाप निश्चय । उनमें २५ गोत्र और ४२ उपाधि हैं। पूर्ण किया जावेगा।' परशुरामने उत्तर दिया कि उक्त कायस्थ-प्रभुवों का प्राचार-व्यवहार, भावगठन वह चन्द्रसेनकी महिषीको खोजमें थे। ऋषि और परिच्छदादि सम्पूर्ण कोइंग्णव ब्राह्मणों जैसा अविलम्ब उता महिलाको ले पाये। परशरामने अपने होता है। वह देखने में सुन्दर एवं परिष्कत रहते यत्रको सफलतामें प्रसन्न हो ऋषिको मुंहमांगा और मस्तक पर चूड़ा तथा स्कन्ध पर यत्रोपपोत वर देने कहा था। ऋपिने अप्रसूत वालक मांगा। रखते हैं। सकल कायस्थ-प्रभु यजन, अध्ययन और 'परशुराम उन्हें इस शर्त पर उक्त पुत्र देनको दान विविध वैदिक कर्मके अधिकारी हैं।* दशम प्रस्तुत हुवे कि उसे और उसके सैन्तानको लेखक वर्षके पूर्व वह पुत्रादिको उपमयन दिया करते है। बनाया जाता, सैनिक नहीं वाचकका नाम सोम उपनयनके समय यथाविधि ब्रह्मचर्य पालित होता राज रखा गया। उन्हीं मोमराजके पुत्र विखनाथ, है। एतद्भिन्न जातकर्म, नामकरण, कर्णवेध, दन्तोहम, महादेव, भानु तथा नक्ष्मीधर और उनके वंशज चूड़ाकरण, निष्कामण, सीमन्तोनयन, विवाह, गर्मा- "कायस्थ-प्रभु' नामसे परिचित हुवे।" धान, प्राष्टि प्रमृति मकल संस्कार यथाविधि किये पहले मुसलमाननि कायस्यों को कर्ममें लगाया जाते हैं। विधवा-विवाह उनमें प्रचलित नहीं। था। पूनामें मुसलमानो नगर जुबारके निकट, विवाह और शाह पर वह क्षमतासे भी अधिक जंजीराको राजपुरी, थाना जिलेको उत्तरंसीमा पर, व्यय करने में कुण्ठित नहीं होते। उनके मध्य भागवत दामन, बड़ोदा और कल्याणमें कायस्खों के उपनिवेश और वैभव मांस-भोजनसे दूर रहते हैं। शाक्त स्थापित दुवे। दामनवासे वशी राजाके एक कायस्थ अपमेवी 'देवीपुत्र' करते और मद्यमांस पार करते प्रभु प्रधान मन्त्री रहे। गायकवाड़के प्रधान मन्त्री है। देशस्य ब्राह्मण ही उनके गुरु-पुरोहित हैं। रावजी अप्याजी भी कायस्यों के एक . पृष्ठपोषक थे। Sherring's Tribes and Castes, Vol. II. p.182 कखापसेही कायल पानी जिसमें-वाकर फैछ- पड़े and Aithar Steel's Law and Custom of Hindu Cestes, p. 94.
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/५१०
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