1फा कायस्थ बानोक कायस्य-चित्रगुप्तपुत्र विभानु वा वीरभानुके है। उनमें 'वरखेग' और 'इवेग दो श्रेणियां है। सन्सान कहाते हैं। विभानुके तपस्याकान शरीर में उक्त दोनो श्रेणियों में पानाहार प्रचलित नहीं। वल्मीक उत्पन्न हुवा था। उसीसे उन्हाँ पीर उनक करप-कहते कि नर्मदानीर बानि नामक एक वंशधरोनि 'वाल्मीक' नाम पाया। ग्राम है। उसी ग्राममें उनके पूष्पुरुषोंके वाम उनमें तीन श्रेणी हैं। बम्बईसे शनिवाले करनेसे 'करण' नाम पड़ा है। उनमें भी दो 'बम्बैया', कच्चसे आनेवाले 'कच्छो', और सुराष्ट्रने श्रेणियां हैं-गयावान और लिरहतिया। गयाम अनिवारी 'सौरठी' कहाते हैं। वाल्मीकोंमें कुछ कुछ गयावाल पौर बिहुनसे निरनिया गाग्वाका नाम- दाक्षिणात्यका आचार-व्यवहार भी प्रचलित है। करण हुवा है। करण शाम्य प्रायः उड़ोमामें ही माथ र-कायस्थोंका नाम मथुराक वाससे पड़ा है। रहते हैं। वह अपनेको चित्रगुप्तके पुत्र चारुका दंशधर बताते गौड़-कायस्य नाम गोड़देशत्री प्राचीन राजधानी हैं। उनमें भी तीन श्रेणियां देख पड़ती हैं -दह गोड़से निकन्ना है। वह करने कि उनके पूर्व नवी, कच्छी और नचौली। दिल्ली में रहने पुरुष भगदत्त कुरुक्षेत्रके महामसर, निहत हुए थे। 'देहलवी', कच्छमें रहनेवाले 'कच्छी और यधपुर में | गौड़कायस्थों में ही कालरेन वा कामसेन नामक एक रहनेवाले 'लचौली' नामसे परिचित हैं। लचौलियों को राजकुमार रहे। कायनों में आज भी उनकी पूजा यचौकी भी कहते हैं। उनके कथनानुसार यावर होती है। कायस्व-कन्याके विचार-कान प्रदीप वा मरुदेशमें पूर्वकालको पञ्चनामक एक राजा कन्जनसे एक मूर्ति प्रहित की जाती है। उमौकी कान- थे। उन्होंसे पञ्चौली नाम निकना है। सेनको मूर्ति मान लोग पूजा करते हैं। गौड़कायस्थ किसीके मतमें पच्चाल देशः 'पञ्चानी' कहते और उनके कुरसीनामे में भी रहते कि गौड़ाधिप वना है। सेनरान उक्त कायस्थवंशीय ही । मुहम्मद- सूर्यध्वन-अपना परिचय चित्रगुप्तपुत्र विभानु के नाम वखतियार तुर्कने कौशसक्रम नम्बमनियाके निकट उनका कहना है कि इक्ष्वाकुवंशीय राजा वगराज्य अधिकार किया था। मोसे अनेक गौड़.. सूरसेनने यन्जकाल विभानुको साहाय्य करनेसे 'सूर्य कायस्थ युतप्रदेश भाग गये। हिमालयस्य मुखेत, ध्वज' उपाधि दिया था। उनका प्राचार-व्यवहार मन्दी प्रमृति स्थानके राजा आज मी प्रपनको गौड़- कुछ कुछ ब्राह्मणोंसे मिलता है। राजवंशीय बताते हैं। प्रकत प्रस्तावमें गौड़कायस्ववंशीय कुलगेट-कायस्थ चित्रगुप्तपुत्र पतीन्द्रियके सन्तान होते भी प्राजकन्न वह अपना परिचय गौड़राजपूत हैं। उता श्रेणीके कायस्थ कहा करते कि जितेन्द्रिय नामसे देते हैं। वनइन जब बवान पहुंचे, तब (अतीन्द्रिय) परमधार्मिक रहे। वह प्रति वर्ष वहांक कायस्थ-राजा पोर जमीन्दार उनके अच्छे अपने भाइयांका बुताकर उनके पैर धो देते थे। उनका सहायक हुवे। उनके पुत्र नसोर-उद-दौन्न गोडसे ‘काल पूरा होने पर यमदूतोंने जा कर पूछा-'क्या बहुसंख्यक कायस्खोंशो दुनाकर इनाहाबाद सूबेके पाप अव स्वर्ग जाना चाहते हैं। जितेन्द्रियने उत्तर अन्तर्गत निजामाबाद, भदोई, कोलो, धापी और दिया कि वह अविलम्व खर्ग जाना चाहते थे। उसी विरियाकोट प्रमृति स्थनों में कानूनगोईका पद प्रदान समय स्वर्गसे विमान उतर पड़ा। जितेन्द्रिय विमान किया था। उनके सभी वंशधर गौड़कायस्थ मह- ज्ञात हैं। पर चढ़ कर अग्निलोक पहुंचे। अग्निसोकरी प्रजा- Elliot's Races of the X. 15. P. ed. by Besses, पतिलोक होते हुए ब्रह्मलोकमें जाकर उन्होंने TO), II. p. 107; Sir Lepen Griffin's Panjab Rajahs : ani अनन्त मुखभोग किया । पपना , कुन्त उज्ज्वल Crook's Tribes and Castes o tine X, W. P. 7. IIL करनेसे ही उनके बंधधरोंने 'कुलश्रेष्ठं- उपाधि पाया P 192
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/५०१
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