कामरूप: अन्य हैं। उनके मसमें पूजादि आवश्यक नहीं; एकमात्र अाज कत नाना धौके लोग पासाममें वर्तमान हरिनामकीर्तनसे की सकल कामनायें सिर हो सकती हैं। ब्राह्मणादि वर्गक मध्य कन्याको कुमारीकानमें हैं। इससे सर्वत्र सहीर्तन करने के लिये सत्र वा धर्मा वर ढूंढ कर विवाह करनेका नियम है। सय वर्तमान हैं। उन सबों में अधिकारी और महन्त जातियों में उक्त नियम नहीं मिलता। ब्राह्मणों में -रहते हैं। उल सकल सोंमें माधवदेव प्रतिष्ठित विधवाविवाह प्रचलित नहीं, अन्य जातियों में होता बड़पटाका सत्र ही प्रधान है। महन्त बङ्गालके है। गन्धर्व विवाहको भांति एकप्रकार विवाह गुरुव्यवसायी गोस्वामियाँको भांति शिष्यांके प्रदत्त शूद्रादिके मध्य चलता है। कोई प्राप्तवयस्का विधवा अर्थसे जीविका चलाते हैं। उस प्रकार प्रथे न देनेसे अपने मातापिता वा अभिभावकको सम्मतिसे स्वीय शिष्य समाजच्युत होते हैं। माधवके पीछे बहुतसे समाजमें किसी व्यक्तिके साथ आहारादि और नाधणोंने वैष्णव बन धर्मप्रचार किया था। उन्होंने सहवास कर सकती है। उक्त स्त्रीके गर्भसे उत्पत्र माधवके धर्मसे कुछ मित्र भावमें वैष्णवधर्म चलाया, सन्सानादि विवाहिताके गर्भजात सन्तानों की भांति जिससे उनका "बामुनिया" और माधवका मत पितामाताके धनाधिकारी पौर समाजमें गण्य "महापुरुषीय" कहलाता है। महापुरुषों में भी एक होते हैं। किसी किसी स्थति में वैसे दम्पतीको सधवा "ठकुरिया" शाखा होती है। शहर के माधव प्रादि धान्यदूर्वास प्राशीर्वाद करती हैं। एक प्रकारक शिष्योंने अनेकानेक ग्रन्य और सङ्गीतादिकी रचना की। स्वयम्बरको प्रथा भी देख पड़ती है। कोई पुरुष वा स्त्री वैष्णव पौराणिक क्रियाकलाप पर इतने पास्थावान् इच्छानुसार किसी स्त्री वा पुरुषके घरमें स्वामीस्त्री- नहीं होते। वैष्णव व्यतीत कामरूपमें तान्त्रिक मत रूपसे रह सकती है। सकल व्यवहारसे भी प्रचलित है। परीतिया वा पूर्णसेवाके नामसे उक्त समाजमें कोई दोष नहीं लगता। हिन्दूधर्मके मतसे देशमें पानकल एक मत चल पड़ा है। उक्त सम्पदायी लिनका विवाद हो जाता है, उनमें स्वामीको छोड़ जातिभेद नहीं मानते। उनमें सकल जातीय लोग पत्यन्तर ग्रहण करनेका मार्ग नहीं दिखाता। किन्तु एकत्र मद्यमांसादि खाते पीते हैं। । उक्त सम्पदायको उक्त पन्च प्रघावोंके अनुसार वैसा होता है। काम- उपासनामें भक्तिमाता नाम्री किसी स्त्रीका प्रयोजन रूपके लोगों के मतमें शरीरको शुद्धि करनेके लिये हो पड़ता है। वह सबकी पूज्य होती है। पूर्णसेवाचारी विवाह पावश्यक है। इसी कारण विवाहके सम्बन्धमें अपने धर्मको पूर्णरूपमें शङ्करदेवके प्रचारित धर्मसे उनका वैसा दृढ़ नियम नहीं। किसी किसी स्थलमें मिलता जुलता बताते हैं। शिन्तु वह वामाचारी और विधवा का विवाह अस्थिकी शुहिके लिये किसी पुस्तक, 'वैषणव मतके मिश्रणसे बना है। शिमाखण्ड वा कदलीहक्षसे किया जाता है। कहीं कामरूपके मुसलमान सुबी मसांवलम्बी हैं। दूसरे किसौ पुरुषके साथ वैसे ही पस्थिशद्धि का विवाह देहाती मुसलमान विषहरी प्रभृति हिन्दू देवतावोंकी होता है। अन्तमें उसे कुछ दक्षिणा देकर विदा पूजा करते हैं। हाजी नामक स्थानमें "पोवा मका" करते हैं। "फिर स्त्री पुरुषान्तर ग्रहण करती है। नामक एक मुसलमानोंका तीर्थस्थान है। बौदाचारी कामरूपवासियों में भागन्तुकको प्रासन देनेका लोग अब कामरूपमें देख नहीं पड़ते। किन्तु जैन. नियम नहीं। सब लोग स्वमण करते समय अपना धर्मक माननेवाले लोग अब भी वर्तमान हैं। पलाश अपना भासन, तासका रन्धनपान और घट साथ रखते बाड़ी, डिब्रूगढ़-पादि स्थानों में इनकी संख्या काफी हैं। वह लोग धर्मके अनुसार पशुपक्षी. और मत्सर है। वहां जैनमन्दिर मी हैं। जैनगण प्राय व्यापार पाहार करते हैं। दूसरेका क्या ज्ञातिका अब भी करते है। छोटे छोटे बहससे गांवो में भी उन लोगोंकी ले लिया जाता है। किसी किसी स्थल पर प्राममें दुकाने हैं। एकही स्त्री रहती है। फिर उसके हाथका इन्धन
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४६६
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