किया। कामरूप अनन्तर पोयाडं फिजपट्रिक एवं वेष्टलेण्ड और उनके | हाजोके हयग्रीवको मूर्ति को बहुतसे सोग बुदेवका बाद क्विनटन साहब चौफ कमिशनर बने थे। उनके | प्रतिमूर्ति मानते हैं। योगिनो तन्त्रमें भी कामरूप- मणिपुरमें मारे जाने पर भोयार्ड साहबको चौफ वाती बुद्धमूर्तिको कथा लिखो है। पीछे शहरदेव कमिशनरका यद मिला। पौर माधवदेव नामक दो व्यक्तियोंने वेष्णवधर्म प्रचार १८३५ ई.को सर्वप्रथम कामरूप ( प्रासाम )में अंगरेजी विद्यालय खुला था। १८१०ई०को कोच. बारह भूयांवोंसे चण्डीवर शिरोमणिके वंशमें कुसु- विहारके कमिशनर राबर्टसनने विचारसंक्रान्त कई म्बर थिरोमपि भूयांके एक पुत्र हुषा था । उसका नाम देशीय अवहारसिद्ध नियम लगा दिये । उक्त निय. शहर भूया शिरामपि वा शोधहरदेव था। उन्होंने माँको 'भासामको कायदेवन्दी' कहते हैं। १८१८ वयःप्राप्त हो नाना तौ_दि दर्शन कर कन्दली नामक ई. की आसाममें एक दल ईसाई मिशनरीने प्रवेश किसी व्यक्तिसे संस्कृत भाषा पढ़ी। संस्क त सोख कर किया। उसने प्रथम जयपुर फिर शिवसागर में शहरदेवने भागवतसे "कीर्तन दशम नामक पुस्तकका गिरना-घर बनाया था। १८४६ईको ईसाइयों ने अनुवाद और सङ्कलन किया था। (गहरदेव देखो) प्रासामी भाषामें "अरुणोदय" नामक एक मासिक शङ्कर वैष्णव ही स्वदेशमें वैष्णवधर्म फैलाने लगे। पंत्र निकाला। १८४३ई०को दासत्वप्रथा रोकनेको उन्होंने देशीय भाषाम नानाविध अन्य पौर सङ्गीत कानन बना था। उसी वर्ष पासामकी प्रसिह "चाय" बना धर्मप्रचारको सुविधा तथा भाषाको श्रीहरि की। कम्पनी भी गठित हुई। १७६३६० को आसाममें प्रथम उससे कामरूपमें पौराणिक इतिवृत्तके अभिनयादि पहिफेनकी खेती की गई थी। अन्तमें १८३ ईको (खेल) चल पड़े। वाण्डका नामक स्थानवाले दोघल- गवरनमेण्टको पोरसे साधारणके लिये वह बन्द हुई। गिरिक पुत्र माधवशाहरने शिष्य हो गुरुको वैष्णवधर्मके कामरूपमें ब्राह्मणों के मध्य सतलोत सर्व श्रेष्ठ है। प्रचारमें यथेष्ट साहाय्य किया था। यहां बम्लालियोंकी कोलीन्यप्रथा नहीं चलती। मिधि प्रहोमलोग उन्हीं के उपदेशसे वैष्णव हुये। किन्तु सावासी ब्राह्मणों की संख्या अधिक है। देवा यहां उससे पूर्व प्रहोमोने वैष्णवधर्मके प्रचारसे विरत हो विशेष सम्मानके पात्र हैं। शङ्करदेवके जामाता इरिको अति. सामान्य अपराध पर ब्राह्मण कायस्थ अपने हाधसे इन नहीं चलाते। प्राणदण्ड दिया और माधवदेवको बांध लिया था। : कायस्थॉमें भूयांवोंके छह घर विशेष विख्यात हैं। भकर उसी सूत्रसे पहीमका अधिकार छोड़ पाटवाउसी कलिता कृषिप्रधान लोग है। वह नात्य में नामक स्थानमें जा कर रहे और माधव किसी उपायमे श्रेष्ठ होवे भी इसवाइनके दोषसे पसित हैं। बच उनके साथ मिल गये। गालों और पनाचा- केवट आदिम जाति हैं। वह भी कषक होते हैं। रियों ने कई वार राजा नरनारायणक पास उनके विरुद्ध केवट कैवर्ती ( मस्यजीवियों )के अन्तर्गत हैं। अभियोग पहुंचाया, किन्तु कोई फल न पाया था। उनको छोड़ कोच, मेच, लालुग, नट, नापित, पटवा, दिन दिन बहुतसे लोगोंने वैष्णवधर्म ग्रहण किया। कुंभार, कलवार, धोबी, डोम प्रभृति भी रहते हैं। उसके पीछे राजाको पास्या पानसे कोचविहारमें पहले हिन्दू धर्म पीछे दौडधर्म यहां प्रवल रहा। भी उक्त धर्म प्रचारित हुवा। १e. शकको शहर- .समन भारतमें बौड प्रभाव नष्ट करते गहराचार्यक| देवने वर्गलाभ किया। प्राज भी कामरूप अनसमें संस्कारका प्रभाव कामरूप पर भी पड़ा था। देवेश्वर वह चैतन्यदेवकी भांति अवतार माने और बखाने नामक शूद्र राना ही उसका मूल । दूसरे प्रदेशोंको आते हैं। भांति बौधर्म शीघ्र कामरूपसे दूर न हुवा। ई० शहरदेवके पौछ .माधवदेवने उनके धर्म को जगा ११२ शताब्द भी यहां उसका प्रावस्या रहा। आज भी रखा था। माधवदेव "महापुरषगुर" नाम से विस्थात
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४६५
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