कामरूप ४६३ अथच उसने भोर बड़फकनने युद्ध किया। किन्तु उनके मो हारने गयरनमेण्टने उक्त आवेदन सुना न था। पर पुरन्दर भाग कर चिलमारी में जा रहे। ब्रसेना किसोको सहायता न की। पति चन्द्रकान्तके रक्षार्थ २००० सैन्य छोड़ स्वदेश लौट उसी समय गारो प्रति असभ्य नातियोंको सभ्यता गये। पुरन्दरने निरुपाय हो कलकत्ते जा १८१८ई के | . सिखाने और उनके देशमें हटिश अधिकार फैलाने के सितम्बर मास वृटिश गवरनमेण्टके निकट निम्न लिये १८२२ ई० को १०वौं व्यवस्था निकली यो । कोच- लिखित प्रावेदन किया था,-"यदि हटिश गवरनमेण्ट विहारके कमिशनर स्कट साहब उक्त आईन (व्यवस्था) सैन्य भेज कर हमारा राज्य उहार कर दे, तो हम का कार्य करनेको उत्तराञ्चलके एजण्ट हुये। उसी उसके लिये व्यय देने और अवशेषको हटिश गवरन समय रङ्ग-पुरसे विच्छिन हो ग्वालपाड़ा एक स्वतन्त्र मेण्टके अधीन करद राजा बनने के लिये प्रस्तुत हैं।" जिल्ला बन गया। आसाममें उस समय ब्रह्म-अधिकार किन्तु बटिश गवरनमेण्टने उक्त भावेदन न सुना। होनेसे ग्वालपाड़ेमें एकदन्न अंगरेजी सैन्य रहा। उस समय कोचविहारमें मिटर स्कट कमिशनर लेफटनेण्ट डेविडसन साहब उक्त सैन्यदलके नायक थे। थे। वह प्रतिपत्रमें गवरनमेण्ट को देशको अवस्था मिष्टर डेविडसन और मिष्टर स्काट प्रासामियोंसे बड़ा देखाते रहे। फिर ब्रह्मसेना रीतिके असुसार देशमें घुस नेह रखते थे। पड़ी। चन्द्रकान्तको नाममात्र राना रख ब्रह्मसेनापति उधर महगड़के युद्ध में सम्पूर्ण परास्त हो चन्द्र सर्वमय कर्ता बन बैठे। चन्द्रकान्त भी अन्तको उनके कान्तने ग्वालपाड़े जा अंगरेजोंका प्राश्रय लिया। हाथसे देशोदार करने की चेष्टामें लगे। १८२०ई०को लेफटनेण्ट डेविडसनको भय देखा ब्रह्मसेनापतिने ब्रह्मसेनापति मिङ्गिमाहा देशको अवस्था देखने गये थे। निम्नलिखित पत्र भेजा था,--"वद्याराज चाहते हैं कि जयपुरके निकट एक गढ़ बनते देख उन्होंने कौशलसे कम्पनीके साथ मित्रता रहे और ब्रह्मसेना किसी प्रकार वहाँके- बड़फकनको मार डाला। चन्द्रकान्तन अंगरेजी सीमा अतिक्रम न करे। किन्तु चन्द्रकान्तने उससे भीत हो सोचा कि उस बार ब्रह्मसेनापतिने अंगरेजोंके अधिकारमें पात्रय लिया है। । अतएव शत्र रूपसे राज्यमें प्रवेश किया था। उसी विवेचनामें उन्हें पकड़नेके लिये पादेश देना आवश्यक है।" वह बूढ़ा गोगाईको नगरके रक्षार्थ रख स्वयं गौहाटी मिष्टर डेविडसनने उस पत्र मिष्टर स्कटके पास पहुंचा -भाग गये। मिनिमाहाने वहां पहुंच कर चन्द्रकान्तको दिया। फिर स्कटने वही पत्र गवरनर जनरलके पास अभय दिया था। किन्तु उनके उसमें · विश्वास न कर गवरनर जनरलने ढाकेके अंगरेजी सेना- -सकनसे नगररक्षी सेन्यके साथ ब्रह्मसेनापतिका युद्ध पतिको पादेश दिया कि मिष्टर स्काटको प्रावश्यक 'हुवा। बूढ़ा गोसाई हार गये। चन्द्रकान्त जोड़ सैन्य मिल सकता है। ब्रह्मसेना यदि अंगरेजी सीमामें हाटकी ओर भागे थे घुस भावे, तो वह बलपूर्वक भगायो जावे। मिङ्गिमाहा योगेश्वर नामक किसौ कुमारको १८१७ ई.को कछारके राजा गोविन्दचन्द्रने कहनके लिये राजा बना. स्वयं राज्यशासन गवरनमेण्टसे आवेदन किया कि मणिपुरकी सोमा करने लगे। उस समयं राज्य में प्रायः दश सहस्र ब्रह्म पर ब्रह्मसेन्यका आक्रमण हो सकता है। १८२०
- सेना उपस्थित थी। दरङ्गराज भी उसी समय ब्रह्मको ई०को मणिपुरसे चौरनित् सिंह, मारजित् सिंह पौर
पधीनता स्वीकार करने पर बाध्य हुये। उसके पीछे गम्भीर सिंह नामक तीन राजकुमाराने ब्रह्मके अत्या- महासेनापतिके साथ चन्द्रकान्त और पुरन्दरका नाना चारसे उत्पीड़ित हो कछार जा कर पायय लिया था। स्थानों में युद्ध हुवा। उसी अवस्थामें ब्रह्मसेनापतिने उसके पोछे गोविन्दचन्द्र के ग्रहविवादसे राज्यच्यु त हटिश गवरनमेण्टको पत्र लिखा था कि वह किसी होने पर उक्त तीनों भातावों में कछारके सिंहासन आसामी राजाका पच ग्रहण न करे। किन्तु टिश लिये बड़ी सचल पड़ो। .१८२३ ई.को चौरनित् भेजा था।