कामरूप ४६१ सिंहने धनश्यामको बूढागोसाईके पद पर बैठाया था। परामर्श ले कितना हो सैन्य संग्रहपूर्वक बूढ़ा गोसाई के लक्ष्मीसिंहके पीछे कोकनाथ गोसाई देवके गौरीनाथ सहायतार्थ भेजा था। किन्तु पथमें विद्रोहियोंने वाधा डाल. उसे मार डाला। नामसे राजा इये। उन्होंने राज्यमध्यस्थ समस्त मोया- मरीयाके लोगोको मार डालमा चाहा। उससे उन उसी समय ग्वालपाड़े में रस नामक कोई अंगरेज सबन साजिश कर १७८२ ई के वैशाखमासमें भाग लवणका व्यवसाय करते थे। गौरीनाथ निरुपाय हो साहवको विशेष पुरस्कार देनेकी पाशा दे उनके द्वारा लगा शिशीधर नामक राजप्रासाद नसा डाला। प्रधान सेनापति उक्त कार्य में बाधा न पहुंचा सकनेके कारण हटिश गवरनमेण्टका साहाय्य पाने के लिये प्रायोजन गौहाटी भाग गये। बृढ़े गोसाईन मोयामरीयावालों को करने लगे। साहबने ७०० बरकन्दाज दिये थे। पकड़ बुनाया था। फिर उन्होंने दोषी निर्दोष न देख बरकन्दाजीको फौजने नौगांवके विद्रोहियोको जा सबको मरवा डाला। सुतरां मोयामरीयाके दूसरे सब भगाया, किन्तु उत्तराभिमुख जाते समय जोड़हाटके आदमी उत्तेजित हो गये। वह गुरुवाक्य और गुरु निकट शत्र के हाथ सब बरकन्दाज मारे गये। कुछ कार्यको साक्षात् ईश्वरका पादेश तथा कार्य समझते दिन पीछे मणिपुरराज ५०० अश्वारोही और ४०० थे। उसमे उन्होंने उक्त विद्रोहको धर्मविद्रोह मान पदाति ले गौरीनाथके साहाय्यार्थ उपस्थित हुये। वह लिया। चुपके चुपके मीयामरीया-महन्तके प्रत्येक सेनादल भी युद्धमें हारा था। प्रायः १५०० योडा शिष्यको संवाद दिया गया था। फिर सभी लोग मृत्युमुखमें पड़नेसे मणिपुरीसैन्य स्वदेश लौट गया। युद्ध करनेको दृढ़प्रतिज्ञ हुये। विपद अकेले नहीं चलती। उधर कृष्णनारायणने उसी बीच घनश्याम मर गये। उनके सुयोग्य पुत्र पपने माता दरराज विष्णुनारायणको निकाल राज्य पूर्णनन्द बूढ़ा गोसाई बने। उन्होंने विद्रोह-व्यापार अधिकार किया था। फिर उन्होंने गौरीनाथको दुर्दया. देख सोचा कि सामान्य शास्ति देनेसे ही वह रुक देख हिन्दुस्थानी साठ-सन्यासियोंसे सेनास ग्रह कर सकता था। फिर उन्होंने मोयमरीयाके कई लोगोंको कामरूप पर चढाई को। पुनः पुनः पराजित होते पकड़ मृदु शास्ति दे कठिन प्रदिप कर मुक्त किया। देख कामरूपके लोग अहोमोसे वृणा करने लगे। फिर किन्तु उससे - फल विपरीत निकला। विद्रोहियोंने गौहाटी नगरसे उनका वास भी लोगाने उठा दिया। राजाको दुबल समझ पूर्ण उत्साहसे दश सहन सैन्य उसी सूत्रसे उनके मध्य कोई कोई कृष्णनारायणका संग्रह किया। एक दन. नगराभिमुख चला था। पक्षपाती बना था. बूढ़ा गोसाईने छ वाधा देनेको सैन्य भेजा, किन्तु गौरीनाथने चारो दिक् विपर्द देख गौहाटोके विका परास्त होना पड़ा। . रायके मध्य हलचल मच मजुमदार, दत्तराम खावंन्द और दरङ्गक विताड़ित गयो। प्रजा हताश हुयी। राना मगर छोड़ भागे थे। राजा विष्णुनारायणको वृटिश गवरनमेण्टसे साहाय्य. किन्तु सेनापति चारो ओर किलेबन्दी कर नगरमें ही मांगने के लिये कचकत्ते भेजा। ग्वालपाड़े के अंगरेज रहे। अन्तको जयसागरके निकट विषम युद्ध हुवा। वणिक् रस साइबने कलविन बजेट कम्पमोके नाम उस युधमें भी राजकीय सैन्य हार गया। : भरतसिंह एक चिट्ठी दी थो। : उस समय कलकत्तेके गवरनर नामक विपक्षके सेनापति राना. बने। राजा गौरी. जनरल . लार्ड कारनवालिस. थे। वे राजा गौरी- नाथ कछार और जयन्ती राजसे साहाय्य ले उक्त नाथ का आवेदनपत्र पाते भी प्रथमतः साहाय्य करने विद्रोह दबाना चाहते थे। किन्तु उन्होंने कहला पर अस्खोलत हुये । कारण प्रामविच्छेदसे एक पक्षका भेना कि स्वदेशको रक्षाके खिये पावश्यकसे अधिक साहाय्य करना दूसरे राजाके पक्ष में राजनीतिविरुद्ध सैन्य उनके पास न था। गौरीनाथ विद्रोहदलके है। किन्तु पन्तमें उन्होंने राजा वणनारायणको हिन्दु- भयसे गौ भाग गये। वहां उनोंने बड़फूकनसे ! स्थानी से नाके साथ कामरूप तोड़ते-फोड़ते देखा । VOL • IV. 116 -
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४६०
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।