13 feros-ease नहीं है। " कामरूप ४५ राज्यभोगकाल भावसे हिन्दू बन गये हैं। पहले देवमन्दिरों और नाम २३ उनके भ्राता चुक्लामफा राजप्रासादोंशा विवरण दिया गया है। उनमें प्रायः १६५३-१६७५ ॥ वारामध्वन सब वर्तमान हैं। किन्तु उनको अवस्था अति हीन २४ चामुण्हरीया शके १६७५ है। उनका अधिकांश शिवसागर जिले में है। तेजपुर चुडंग राजा (१मास १५ दिन) और नौगांव उक्त स्थान कुछ कम है। कामरूप २५ तुगखंगिया वंशके ११६७५ जिलेमें पासामवाले राजाघोंके स्थापित अनेक देव. गीवर राजा (२० दिम). मन्दिर देख पड़ते हैं। किन्तु कामाख्याका मन्दिर २६ दिइिंगिया बंधक आसाम राजावोंने बनाया न था। जिस समय १६७५-१६७ चुनिनफा कामरूप कोचविहारके अन्तर्गत था, उसी ममय कोच- २७ तुगखंगिया वंशक विहारके राजा. नरनारायणने उसे निर्माण कियो। चुदैफा पासासके राजावोंने पुराने मन्दिरको केवल सुधराया २८ चामुण्डरीया वंशक था। कामाख्या देखी। १६७८-१९८१, चुलिकफा वा लरा राजा पासामके राजावों की राजधानी शिवसागर जिले में २८ चामुण्डरीया शके रही। इसीसे कारण दूसरे किसी स्थानमें राजभवन गदापाणि वा गदाधर सिंह १६८१-१२९६ वा चुपातफा उक्त समयके पीछे कामरूपको कोई विशेष ३० उनके पुत्र लाई वा उल्लेख-योग्य घटना नहीं मिलती। केवल ई० चुखरूंगफा वा रुद्रसिंह १६५६-११४ ॥ पाष्टादश शताब्दक शेषमागमें कामरूपके रहनेवाले ३१ चुसानफा वा शिवसिंह १७१४-१७४४ " हरदत्त और वीरदत्त नामक दो भाइयोंने अहोम- १२ उनके माता चुचेनफा राजाओंके विरुद्ध विद्रोहभाव अवलम्बन किया। १७४४-१७५१, या प्रमत्तसिंह हरदत्तके पाकुमारी नाम्नी एक परम रूपवती २३ । चुरामफा वा राजेश्वरसिंह १७५१-१७६८ , कन्या थी। सम्भवतः पद्मकुमारी ही हरदत्त ३४ , चुन्येश्रोफा वा लक्ष्मीसिंह १७६८-१७८० और वौरदत्तके द्रोहका प्रधान कारण थों। अहोम- ३५ , चुहितांगफा राजाके प्रतिनिधि कलिया-भोमोरा बड़-फूकनके वा गौरीनाथ सिंह १७८०-१७८५ साथ हरदत्त वीरटत्तका युद्ध हुवा। युहमें हरदत्त चुकलिंगफा हार गये। कचिया-भोमोरा बड़-फूकनके किसो या कर कमलेखर सिह कुमैदान नामक सेनापसिने पद्मकुमारीको इस्तगत ३७ उनके माता चन्द्रकान्त सिंह १८१०-१८१८ किया। प्रवादानुसार पद्मकुमारीके हस्त और पदमें ३६१ पुरन्दर सिंह १८१८-१८१८, पनका.चिक्र था। पद्मचिङ्ग ही उनके पद्मकुमारी नामका पुनः चन्द्रकान्त सिंह १८१८-१८२१ । मून्तकारण रहा। अद्यापि कामरूपमें ग्राम्य सङ्गीत ३८ तुंगखंगिया बंशके द्वारा हरदत्तका द्रोह और पद्मकुमारीका विवरण योगेश्वर सि १८२१-१८२४ , गाया जाता है। १८२५ ईको कामरूपमें अंगरेजोंका अधिकार राजा रुद्रसिंह स्वर्गदेव नदीयावाले कृष्णराम हुवा। न्यायवागीश नामक किसी भट्टाचार्यके निकट दोक्षित अहोमोंकी पाजकन अतीव दैन्यावस्था है। उन्होंने निन धर्मके साथ भाषा भी छोड़ दी है, वे सम्पूर्ण हुये । भट्टाचार्य में बहुत अलौकिक चमता थी। उसोसे पापामर साधारण सब लोग उन्हें देवीका पुत्र मान 99 }eoex-papo 19
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४५८
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