४५६ कामरूप था। हुये। उन्होंने अपने राजाविस्तार और किसी किसी। उदयादित्य राजा हुये। उनके मरने पर तददाता पादिम निवासी जातिके साथ युद्ध करनेको छोड़ चुकलमफा या रामध्वज सिंहने सिंहासनारोहण दूसरा कोई योग्य कार्य न किया। फिर १४१५ किया। उनके पीछे होनेवाले चार रानानि हिन्दू शकको चुइंगमुंग राजा पा हिन्दू बने और स्वर्गः। धर्म या हिन्दू नाम रखा न था। उनमें शेष राना नारायण नामसे ख्यात हुये। वह भी कोई कौति चुतयफा १६०१ शकको कामरूप प्रदेश मुसनमानोंके छोड़ न गये। पीछे उनके पुत्र और पौत्र राना हाथ समर्पण करनेको वाध्य हुये। उनके मरने पर हुये। उन्होंने भी लिखने योग्य कोई कार्य न किया। चुलि कफा या लगराजाको राना मिना। मन्त्रियोंने फिर १५३३ शकको चचेंगफाने राजा पाया था। उन्हें सिंहासनसे हटा चामुण्डरीयवंशीय चुपातफा हिन्दू मतसे उनका नाम बुद्धिस्वर्गनारायण वा या गदाधर सिंहका अभिषेक किया था। वह हिन्दू प्रताप सिंह रखा गया। उन्होंने उक्त देशमें दुर्गोत्सव न थे। हिन्दू और हिन्दूधर्म दानोंसे उन्हें बड़ी घृणा और स्वर्ण एवं रौप्यको मुद्राका प्रचार किया। उन्होंके रहो। ब्राह्मणों से उनका विजातीय विद्दप था। फिर शासनकाल १५४८ शकको कामरूपके शासनकर्ताक उन्होंने अनेक ब्राह्मणांको नगरसे निकान भी दिया आसाम अाक्रमण करने पर युद्ध हुवा। उसमें वह बलवान् और हत्काय पुरुष थे। मद्य. सैयद मारे गये। गौहाटी पासामराजके हाथ लगो। मांस विना रहना उनके लिये असम्भव था। भेक और उन्होंने बहुत मार्ग और घाट बनवा आसामको। गोमांस उनका प्रधान खाद्य रहा। वह कहते थे कि उन्नति की थी। देवमन्दिर और ब्राह्मणके प्रति- “हिन्दूधर्म हो अहोम वंशके पतनका कारण होगा। पालनार्थ भूमि देनेकी गौरव उन्हींके समय वृद्धि वह हिन्दूधर्म मानते न थे। इसौकारण उन्होंने कोई यो। मरने पर उनके जेष्ठ और फिर कनिष्ठपुत्र . हिन्दू देवमन्दिरको प्रतिष्ठान की। किन्तु गौहाटोके सिंहासन पर बैठे। किन्तु वह दोनों अत्यन्त निकट ब्रह्मपुत्रमध्यस्थित भन्माचल पर्वत पर उमानन्द उपद्रवी थे। इसीसे मन्त्रियों ने उन्हें रानाध्यत किया। शिवका मन्दिर उन्होंके राजत्वकालमें प्रतिष्ठित हुवा । उसके पीछे चुतमला या जयध्वज राजा हुये । वह वह अद्यापि वर्तमान है। उनके राजत्वकाल १६०५. पराक्रमी राजा रहे। उन्होंने पासामको बहुत उन्नति शकको मुसलमानोंने फिर पासाम पर भाक्रमण किया को। १५७७ ई० को मीरजुमला और मंजम खान था। किन्तु युद्ध में हार कर वह आसाम छोड़ने पर दोनोंने आसाम पर आक्रमण किया। श्रासामराज वाध्य हुये। श्रासामराजने गौहाटीमें राजधानी परास्त हो सन्धि करने पर बाध्य हुये । उनके मरने पर स्थापन कर एक बड़फकन भेना था। उनके मरने चुयंगमंग या चक्रध्वज सिंहको राजा मिला। उन्होंने पर जाठपुत्र चुचरंगका या रुटूनाथ सिंह राना सन्धिके अनुसार कर न दिया और बादशाहके दूतका हुये। उनके पिता जैसे हिन्दू और हिन्दूधर्म-विहेपी अपमान किया। इस कारण बादशाह औरंगज़ेबको रहे, वह. तैसे ही हिन्दूधर्मपरायण और ब्राह्मणभक्त आज्ञासे राजा रामसिंह आसाम पर चढ़े थे। किन्तु वने। उन्होंने अनेक ब्राह्मणोंको भूमि दी और देव- • वह युद्धमें हार भागनेको वाध्य हुये । इसलिये कामरूप मन्दिरोंको स्थापना की। उन्होंके प्रादेशानुसार शिव- फिर प्रासामरानके हाथ लगा। राजधानी ऊपरी सागरके अन्तर्गत लामडांग नदी पर बना वृहत् और आसाममें थी। वहांसे दूरस्थ कामरूपका शासन- सुदृढ़ प्रस्तरमय सेतु अद्यापि विद्यमान है। कार्य अच्छी तरह चलना कठिन था। उसीसे राजाने पनेक हस्तौ, अश्व और मनुष्यं गमनागमन करते हैं। गौहाटीमें एक बड़फकन अर्थात् अपना प्रतिनिधि तभिन्न उनके स्थापित पनेक देवमन्दिर भी वर्तमान नियुक्त किया। उनके मन्त्रणागारका चिह्न अद्यापि हैं। उन्होंने बङ्गालसे गायक और वाद्यकर ले जाकर वर्तमान है। पीछे उनके माता चुन्यतफा या अपने देश में बंगला गोम-वाद्यका प्रचलन बढ़ाया था। - 1 1 1 उस पर
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