कामरूप कोसा नारायण कोचहानी प्रदेशम चौर समोनारायण नौका और बहुसंख्यक जसबाह नौकाके कोचविहारमें राजत्व करते थे। यादशाहनामा साथ मेजा था। श्रीघाट और पाण्डके निकट महा- लक्ष्मीनारायणको परीक्षितके पितामहका सहोदर 'युदहुवा। उभय पचमें मरते.और घायल होते भी बतलाता है। जहांगीरके राजलके म वर्ष मुसङ्गके युद्ध चलता रहा। इसलाम खानने फिर द्विगुण सैन्य राजा रघुनाथने परीक्षित्के विरुद्ध दरबारमें पभियोग भेज दिया। किन्तु उसी समय फिर पायकोंने बल- लगाया कि उन्होंने उनके परिवारवर्गका अवरोध किया देवका पक्ष लिया था। इससे मुसलमानी सेनाको था। शेख अता-उद-दीन फतेहपुरी इसलाम खान् रसद बन्द हो गयी। इसलामखान्ने संवाद सुन उस समय बगानके नवाब रहे। उन्होंने मकराम रसद भेजी। किन्तु उसके पहुंचनेमें विलम्ब लगा खानको कोचहाजो जीतने भेना था। लक्ष्मीनारायणने था। उसी समय बलदेव ससैन्य श्रीघाट और पाण्डु मुसलमानोंके पक्ष पर योग दिया। युइमें पगजित हो छोड़ हालोके पभिमुख चले गये। फिर उन्होंने परीक्षितने पामसमर्पण किया था। फिर उनके माता राज्य प्रवरोध कर रसद पहुचनेको राह रोकी थी। बलदेवने पहोमराज स्वर्गदेवका प्राश्रय लिया। उसके हाजोके शासनकर्ता प्रबद-उस-सलामको स्वीय माताके पोछे परीक्षित् समाके प्रादेशानुसार दिल्ली भेजे गये (यही प्रधान सेनापति बम ढाकेसे पाये थे) साथ और मकराम खान हाजोके शासनकर्ता नियुक्त हुये। विपक्ष शिविरमें सन्धिका प्रस्ताव करनेके लिये बलदेव पासामराजको सहायतासे हानीक उहा जाना पड़ा। किन्तु वह सदन बांध कर पासाम भेजे रार्थ यत्न करने लगे। पहोमराज स्वीय अधीनता गये। उनके माता सैयदने वनपूर्वक शंवशिविरसे स्वीकार करा उनका साहाय्य करने पर प्रतित हुये। निकलनेको चेष्टा को यो। किन्तु विफल होने पर मकरामखान उसी समय शासनकर्तृत्वसे हटे थे। उनके वह सदल मारे गये। उसके पीछे मोर अली सेनापति स्थान पर कोई नतन शासनकर्ता पानेवाला था। इसी हुये। इसी बीच में ब्रह्मपुत्रके उत्तरकूल राजा चन्द्र- अवसरमें सुयोग देख बलदेवने दर अधिकार किया। नारायण पर मुसलमानोंने पाक्रमण किया। चन्द्र- उस समय इस देशमें बङ्गालके नवाबको पोरसे हाथी- नारायण भौत हो दक्षिणकूलके परगने सोलामारीको खेदाको रक्षा करने को जागीरदार पायक रहते थे। भागे थे। सालामारीके जमीन्दार चन्द्रनारायण के भयसे कासिम खान्ने बङ्गालके नवाब रहते समय बहुत दिन मुसत्तमानों में जा मिले । सुसम्तमान उसके पौछे गुप्तशत्रु सक हाथियों को प्रामदनी न पायी थी। उन्होंने हाथी- शत्रुजित्को अनुसन्धान करनेको धुबड़ी पहुंचे थे खेदाके सरदारांको उपस्थित होनेका आदेश दिया। शत्रुजित राय भूषणवाले जमीन्दार (राजा) उपस्थित होने पर नवाबने उन्हे बन्दी बनाया। उनमें मुकुन्दरायके पुत्र थे। सम्राट् जहांगीरके समयः . सन्तोष और जयरामने भाग कर प्रासामराज स्वर्ग. शेख पला-उद-दीन बनानके शासनकर्ता रहे। देवका आश्रय लिया था। फिर इसलाम खान् उस समय उन्होंने सुकुन्दरायके हो अधीन एक दल नवाब हुये। उस समय पाण्डुके अत्याचारी थानेदार सैन्य भेज एक बार हाजोप्रदेश पर अधिकार किया था। शत्रुजित् बल देवसे मिल गये। उन्होंने उनको मुकुन्दराय युधमें जीतने पर पाण्ड और गौहाटीके हालोके शासनकर्ताके विरुद्ध युद्ध करनेके लिये थानेदार बने। उसी सुयोगमें पासामियोंके साथ गोपनमें परामर्श दिया था। बलदेव कोचा और पासामियोंका सैन्य ले युद्ध करनेको उपस्थित हुये । उस सकल · अदाकार नोका जलयुद्धमें युद्धपोतको भांति 'व्यवइन कीती थी। कोसा नौकामैं एक मसल लगता है। फिर उसमें १६३६ ई० को इसलाम खान्ने यह बात सुनी। डॉ.बाव रहते हैं। एक मोकाके साहाय्यसे लोग बड़ी बड़ी युद्धको उन्होंने कई. मनसवदारोंको .१००० सवार, १०० नौका (बड़ी होने से डोड़के सहारे न चलने वाली नाय) खौच है बन्टूकवाने.. पैदल, १० घराव नामक नौका, २०० •मति थे। Vol. IV. 113 ।
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४४८
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