कामरूप जात प्रांख नहीं उठाता। किसी कार्यवश कामाख्या नवाबको फौजने 'प्रतिश्रुत अर्थ के लोमसे राज्य पर की भोर गमन करते समय कपड़ेसे मुंह छिपा अधिकार कर लिया। परीक्षितके मन्त्री अनेक कष्टसे सम्राट्के दरबारमें पहुंचे थे। उन्होंने जा कर समस्त मृत्यु के पीछे विश्वसिंहका राज्य नरनारायण और विवरण निवेदन किया। सम्राटने उन्हें कानूनगोके शक्तध्वज दोनों पुत्रों के मध्य बंटा था। नरनारायणको पद पर नियुक्त कर विदा किया था। उस समय वर्णकोषोके पश्चिम तौर और शक्लध्वनको इसके यह राज्य चार सरकारोंमें बंट गया-ब्रह्मपुत्रक पूर्व तौरका समस्त राज्य मिला। शुक्लध्वजके उत्तर उत्तरकूल या टेकेरी सरकार, दक्षिण दक्षिण- अंशमें ही ब्रह्मपुत्रके उभय तौरका भूभाग पड़ा। कूल, पश्चिम बङ्गाल सरकार और गोहाटीके साथ सुतरा कामरूपमें भी उन्हींका अधिकार था। कामरूप सरकार। परीक्षितका स्वावराज्य दरङ्ग शुक्लध्वजके पोछे उनके पुत्र रघुदेवनारायण राजा उन्होंके अंशमैं रहा। परीक्षित्के पुत्र चन्द्रनारायणने हुये। उनके दो पुत्रों में ज्येष्ठ परीक्षित थे। कनिष्ठ एक बड़ी जमीन्दारी भी पायी थी। वह जमीन्दारी का नाम ज्ञात नहीं। उन्हें जायगौरकी भांति दरङ्ग पाज भी उनके वंशीय भोगते हैं। प्राचीन मन्त्री प्रदेश मिला था। उनके वंशधर आज भी पासामी (नये काननगो)को भी उनके लिये बहुतसी समी- -राजाओंके अधीन उक्त प्रदेश अधिकार करते हैं। न्दारी मिली। उख घटमा प्रायः १६.३ ई० में हुयी परीचित्ने समग्र राज्यके अधोखर हो गिलाभाड़ थी। एका मुसलमान फौजदार नियुक्त हो रांगामाटी नामक स्थान प्रासाद बनाया। वहां राजप्रासादका नामक स्थानमें रहने लगे। फिर राजा मानसिंहक भग्नावशेष आज भी देख पड़ता है। प्रासादके बङ्गाल-विहारके नवाब हाते समय इस देशको विशेष निकट ही १८ दुर्ग भी बने थे। उनकी सभामें नित्य उति हुयी। औरङ्गजे के समय मोरजुमला ७०० वेदपारग ब्राह्मण उपस्थित रहते थे। फिर उक्त सैन्यदलले प्रासाम जय करने आये थे। उनके पो नगरमें ही ब्राह्मणांका भावास था। परीक्षितके ही कामरूपराज्यके उक्त अंश कामरूप, उत्तरकूल पौर समयमै ढाकेके मुसलमान शासनकर्ताने मुगलसम्राटके | दक्षिणकूल . सरकारका कुछ भाग पासामवाले प्रतिनिधित्व में राजख मांगा था। फिर उन्होंने रानावोंके अधिकारमें चला गया। उस घटनाक सतोना भी शुरू किया। परीबित्ने भौत हो ७० वर्ष पीछे रांगामाटोको फौजदारी उठ घोड़ाघाटमें मन्लियोंसे परामर्श लिया था। फिर वह सम्राटके स्थापित हुयी। पास पागरे गये। वहां सम्राट्ने उन्हें दरबारमें मौरजुमलाके भाक्रमणके पीछे भामामके राजावाने सादर ग्रहण किया। ढाकेके नवाब पर पादेश हुवा हिन्दूधर्म ग्रहण किया था। फिर वह नाममात्र फौज- कि परीक्षित् जितना रुपया राजखमें दें उतना हो | दारको पचोमता मान राजत्व करने लगे। वह ले लें, कोई दिक्षति न करें। राजाने लौट कर नरनारायण पौर शुक्लध्वज उभयंके मध्य राज्य- सरल मनसे नवाबको दो करोड़ रुपये देने कहा। विभागको बात पहले लिख चुके हैं। किन्तु उनके मन्त्रीने यह सुन मुसलमानों के प्रसङ्गत अर्थ शुक्लध्वजके जीवित कालमें राज्य विभाग हुवा न लीभकी बात बतायी। इससे वह महामौत हो गये। था। शुक्लध्वजके मरने के पोछे नारायण पपुत्रक शेषको परामर्श करने पर स्थिर हुवा कि एक बार थे। इससे उन्होंने शुक्लध्वजके पुत्र रघुदेव नारा- वह फिर सम्राटके दरबार में ना भ्रम संशोधन कर यणको. पोष्यपुत्र मान ग्रहण किया। उसके कुछ पाते। चक्षते समय मन्त्री भी साथ हो गये। किन्तु दिन पीछे उनके एक पुत्र हुवा। रघुदेवको उससे दुर्भाग्यक्रमसे जाते समय पटनेमें (किसीके मतानुसार भविष्षतमें राज्यपाप्तिको आशा न रही। इससे चंह राजमासादी) राजा परीक्षित् मर गये। इसी मुयोगमें भीतरी भीतर विद्रोहाचरण में प्रवृत्त हुये। अन्तमें
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४४६
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।