888 कामरूप करतोयानदी थावत् करिषाति महद्रयम् । वृक्ष उपनेंगे। उसी समय शिखाके पात कामाख्याका दशा तन संस्खाय यास्यन्ति पुनरालयम् । मठ टूट जावेगा। फिर ब्रह्मपुत्रका सङ्गम होनेसे सती विमो स्पो मला कामपनिवासिनः। उर्वशीको जलधारा घटेगी। इस घटनादिके पीछे करिषाति मनान देवी नपपूजादितत्परान् । एवं वर्ष वये राज्य कला को हिलो नृपः। मोक्षह वर्ष बीतने पर १११ शक(?)में सौमार भविषावि महामायै योनिमणयसविधौ। और कामपीठमें एक युद्ध होगा। छह मास 8. ततो दादगदले नाभिः कल्पते पूर्वभूमिपः । स्थानमें युद्ध होने के पीछे समस्त योहा उत्तराकाचकोषमै ईथानीमागतः कामामेकछव' करिपाति पहुंच भयहर संग्राम करेंगे। इस युद्दमें कुवाच, नद्रामा सकलं दैविधा पावयिषाति। यवन और चान्द्र विविध म्लेच्छ सैन्यमें बहुसंख्यक तत्पी ग्यामवर्णा स्यात् सदाराधितपाती। सैन्य तथा प्रख गमादि मरनेसे युद्धस्थल रत सवितं सनयं साध्वी राजान राजपुतकम्। प्लावित हो जायेगा। दिगम्बरो मुण्डमाला विभूषिता तजन्मदिवसाई वि यावत् स्यादवादगदिनम् । यावत् स्पांचल स्पर्णमपिराविमविष्यति । वेतायुगमैं बाहनामक धर्मपरायण एक राजा थे। उन्होंने समदीपक तमेव धनिमः सर्वे कामरूपमिवासिनः। भविषान्ति सटव स्थान वशिष्ठशापमोचनम् ॥" मध्य समस्त पिठमव चौकीरा समग्र प्रथिवीम एकाधिपत्य स्थापित किया। (योगिनौतन्त्र, १९ पटल) दुर्भाग्यवश इस कार्य करने से सनक सनम पाडार उपस्थित वा पौर उसी पपराध परराजलभोने हम्हें छोड़ दिया। फिरीय और तालबार- किसी समय कामरूपराज (नरक ) मन्दबुद्धि दो रामायने सन्दरा राज्य अधिकार किया था। वा सपरिवार वनकी होगे। उसी समय उनका रान्ध मिट जावेगा। भाग थो दिन पौ? मर गये। मामसे उनके पुव सगरने वयामाप्त पिवयव तदवधि कामरूपमें ब्रह्मयाप होनेसे नियत दुर्व्यवहार ध्य पोर वाहन पर पाकमण किया। उन्होंने हार मान वशिष्ठवा' और युद्धादि बढ़ेगा। फिर देवदानव गन्धर्व प्रभृति पात्रय दिया था। सगर मी वशिष्ठके निकट मांकर पोख,-'इम इन भी पीड़ादायक बन जावेंगे। दोनों पिशव वॉक भिरकाटने की प्रतिज्ञा की है। उधर पाप पात्रय दै १३११ शक( ? )में सौमारों, कुवाचों और इन्हें मारनेसे रोकते। समय कार्य इमकी पालनीय। मुतरी बतला- यवनोंका विपुल युद्ध उपस्थित होगा। इस युद्दमें इये-हम क्या करें। वशिहने कहा, 'भास्त्रमै शिरच्छेद और शिरोमण्डन एकरूप माना गया है। पतएव पाप इनको शिर मुंडवा' मकारादि कुवाच जय पा एक वर्ष राज्यशासन करेंगे, देशसे भगा दो। इससे उमय दिक् रथा होगी।' सगरने वशिष्ठ फिर १३१४ शक( ? )में सौमार कामरूप पधिकार वाक्यानुसार एमको मतक मुडम करा निकाला था। पिर वह सुपेक्ष कर बारह वर्ष राज्य चन्नावेंगे। इसी प्रकार शाप- सनिक निकट पर उनके उपदेशानुसार तपस्या करने बने। किन्तु कालके मध्य यवन, * कुवाच, सौमार + और प्लव उस समय वह अत्यन्त मंकाचार बन गये चोर दवधि यवन भामसे थासनकर्ता बनेंगे । एतव्यतीत दूसरे भी कई ख्यात हुये। फिर मी उन्होंने तपोबलसे महादेवको रिमाया पौर कलियुगमें रामा होने का वर पाश । (योमिमौवन्न, ६ पटल) लक्षणादि सङ्घटित होंगे। वशिष्ठ ऋषिका है किसी समय इन्द्र कौशाहक साथ मृत्यगीत दर्शन करते थे। तपीदावानन शान्त होने पर्वत पर यास उस समय नबियोंके मध्य कादती नाघी पसराका हावभाव देख • योगिनीतबमैं यवम चौर भवनातिको उत्पतिक सम्बन्ध पर इस कौशाहीका मन विचवित पवा। सीसे इन्द्रने समानको होमेका प्रकार लिखा है,-"कोरवयुद्ध शायपुर बाटोकोके मरनेसे उनका म अभिशाप दिया था। बाडवो यथासमय. कौरववध पा कर ग्यौं । बिलकुल मिट गया। उसी समय कोमि नायौ कोई वाडौकरमकी फिर करवमै नब शत शत कोरवरमयी प्रावस्याग करने वौ, at विश्वनाथ मुक्तिमपमै म विश्वेशरको तपस्या करती थीं। बलिपुव .वह चन्दचड़ पर्वतके पति सच शिखर पर चढ़ गयो। नहीं उन्हें वाणासुर उस समय महाकाल पसे हारोंको रक्षा करते थे। वर मृतुकाल या था। इससे वह अपना कामपोषित यौ। उसो कौमिका सौन्दर्य देख, काममुग्ध हुये। फिर सोमे उनसे सा किया समय एने उस पथरी नाते जाते देख सनसे सम्भोग-विया था। फिर उससे परिन्दम नामक, पापाचारी एव पुत्र उत्पन्न वा। फिर भी था। उससे मारनामक महामवाली एक पूर्व उत्पन्न हुवा। रुद्रके अनुप्रासे सब बामपका राजा बन गया। परिहमके . महादेवने उन्हें शायरामा कामरूप दे 'प्रव' पर्चात लामो का विदा (योगिनीता, १५ पटस) ही बमवर सौमार नाम प्रसिद्ध । किया था। इससे वह मामसे मिश्तिये।
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४४३
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