पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४४२

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कामरूप ४४३ है। सबसे पहिले नरकासुरने ही उक्त समय भगवती कामाख्या का मन्दिर बनवाया था। रामायण के समय कामरूप (प्राग्ज्योतिषपुर )के शासनकर्ता नरकासुर थे। सीताको ढूंढ़नेके लिये सुग्रीवने वामरादि सब देशों और दिशाओं में भेजे थे। एक वानर कामरूपमें भी पा पहुंचा। वानररान सुग्रीषने उस समय कामरूपका ऐसा परिचय दिया था- “योजनानि चतु:यष्टिराहो भाम पर्यवः । सुवर्षय ममहानगाधे यरुषालये । ३० वव भागग्योतिष' नाम मातरूपमयं पुरम्। मस्मिन् वसति दृष्टान्मा नरको नाम दानवः ॥२॥" (किचियाकाण, ४२ मग) वर्तमान गौहाटीमें नरककी राजधानी थी। * गौहाटोके पश्चिम दक्षिण पाच नोलाचलके निकट भरकासुर नामक क्षुद्र पर्वत भी है। नरकासुरके पोछे भगवान् श्रीकृष्ण ने उनके पुत्र भगदत्तको कामरूपके सिंहासन पर बैठाया था । पूर्वदिक, चीनदेश और दक्षिण समुद्र पर्यन्त भगदत्तने खीय शासन विस्तार किया। महाभारतकै समापर्वमें अनके दिग्विजय पर भगदत्तका विषय इस प्रकार लिखित है- "सकिरातय पीनेय इतः प्रागल्यौतिषोमवत् । अन्य बहुमियाँध्यः सागरानुपवासिमिः।" उन्होंने किरात, चीन, और समुद्रतीरवर्ती राजा- यसि परिवत ही पर्जनके साथ युद्ध किया था। कुरुक्षेत्रमें युद्धकै समय भी भगदत्तने चीन और किरातको सेनासे दुर्योधनको साहाय्य दिया था। अनेक स्थसमें नरकको म्लेच्छ, कामरूपेखरको म्लेच्छोंका अधिप और कामरूपके अन्तर्वी देशों को ग्लेच्छदेश लिखा गया है। प्रकृत कामरूपदेशका भी किसी किसी ग्रन्थमें स्लेच्छदेश नाम मिलता है। इसका कारण कामरूप तीर्थ विवरण प्रारम्भमें ही बता दिया है। • गौहाटीका से प्राचीन नाम प्रागल्यौतिषपुर था। "प्रागज्योतिषपुर खातं कामाखायौनिमयलम्।" (यौगिनौतन, १२ पटव) योगिनीतन्त्रर्म कामरूपके राजविवरण पर इस प्रकार भविषहाणी लिखी है- "कमवापुरम्पस्य राज्यमाशी या मवेत् । सहिनात परमेयानि बधमापः प्रवर्तते । सतोऽतीव दुराचारी कामदप भविष्यति। सदा युद्ध महामायै सदा दुतमेव च ॥ देवदानवगन्धर्वाः सदा पौड़ापरायणा। कुपूर्वकुखटापन्हें गते सार्क दिवानिशाम् । सौमारय कुवाय यवन हमस्वयम् । भविष्यति कामपृष्ठे बहुसैम्पसमाकृष्ठम् । न्ततीच सोमार गित्वा यवन-प्टिमम् । वर्ष मेवाकरोद्रानी मकारादिमहीपतिः। सनमहायं समासाद्य कुवाच: खोयरामामाक् । वर्षाने यवनं हित्वा सौमारी राज्यनायकः। कुमारीचन्द्रकान्दो गरी शाके मईचरि। काम:मणैः पृष्ठसंयोग सम्भविष्यति । कामवपे नधा राज्य हादयाम्द महेश्वरि । वाचसहावी मूत्वा यवनय करिष्यति । षष्ठवर्ग पञ्चमादिततः भरीरमिछति । भासितम्यं कामपं सोमाय वाचकः । यवनय कुवाचा सौमारय तथा प्रवः । कामपाधिपी देवि गापमध्येन चान्धकः। एवमेव बहुविध वधी खचणमौयरि। क्रियते सत्कारकरं प्रत्यच परमैचरि वशिष्ठस्य सपस्यादावनिः गाम्यति कामिनि । मविषानि च तरव: मालाखापर्वतोपरि। वर्गहार मिलापात चैक वैपुरसनिधी। कामाखाया मठे भने उपया सहयनमः। ब्रह्मपुवस्य देवषि सूचधारातु वस्यच । पौड़गाद गते शाके भूमहोरिपचुनके विगतो भविंसा न्यून' सीमारकामपृष्ठयोः । थपमानव स'पूना उत्तराकालकीषयोः । गमिष्यन्ति चं रामानः सर्व युद्धविभारदाः। कुधार्यवनयान्वन्धसमाकुलः। विमि छ: समाको महायुह भविषाति पत्रमुरमुर्गनमक विशेषतः स्वोदित्यो रसपूर्णय मविपाविन समयः । सदैव परमा माया योगिनीगणवन्दिवा. कामाख वर्णकण्यामा बलिइस्ता सन्मुखो। सोलनिहा मुग्धमाखा दिग्वना परमास्थिता पर्व साय कमाथित्य रसपान करिपाति। सतः कुवाची यवनं हित्वा सौम्यविनाभिवः।