कामरूप वर्णवहा का सुवर्णश्री नदीका वर्तमान नाम इतिहास सुवर्णसिरी या सोवनसिरी है। यह नदी लखीमपुर पातामको वुरप्लीमें लिखा है कि-महौरङ्ग जिलेसे प्रवाहित हो ब्रह्मपुत्र में मिली है। कामा नामक एक दानव कामरूपके प्रति प्राचीन राजा थे। लखोमपुर जिलेको वर्तमान कारानदी है। यह भी इस बातका कोई विशेष विवरण नहीं मिलता-वह ब्रह्मपुत्र में मिल गयी है। दानव कौन थे और कैसे या किस तरह उनके शासन में सोमासनांका वर्तमान माम सिसी है। यह कामरूप पाया। लखीमपुर जिले में प्रवाहित है। महोरङ्गवंशके पोछे नरकासुर कामरूपके राज- श्वेतगङ्गा वर्तमान सदिया निकट प्रवाहित दिक पद पर प्रतिष्ठितं हुये । कालिकापुराणके ३६वें से राइ नदी है। इसीके निकट दिक्करवासिनीका प्राचीन लेकर 8वें अध्याय तक यह सम्यक रूपसे 'मन्दिर है। विष्ठत है-नरकासुर कौन थे और कैसे कामरूपक दिव्य यमुनाकी आजकल केवल यमुना कहते हैं। राजपद पर बेठे। ( उनके विशेष विवरणमें लिखा कि यह नदी नागापहाड़से निकली है। भगवान् विष्णुको कपासे उन्हें कामरूपका राजत्व दमनिका उत यमुना नदौके पूर्व प्रवाहित हैं। मिला।) नरकासुरको कोर्ति पद्यापि कामरूपमें देख्नु भांजकल यह दिमीना नामसे प्रसिद्ध है। पड़ती है। नरकासुर और कामाख्याक सम्पर्कमें कलिङ्गिका नौगांव निलेको कलङ्ग नदी है। यह निम्नलिखित कई किंवदन्ती प्रचलित हैं,- ब्रह्मपुत्र में पतित हुयो है। नरकासुरने किसी समय स्त्रीय प्रामुरिक दर्पमें कपिलगङ्गिका वा कपिलाको पाजकल कपिली उन्मत्त हो भगवती कामाख्यासे विवाह करनेका कहते हैं। यह जयन्ती पहाड़से निकल ब्रह्मपुत्र में प्रस्ताव उठाया था। उस समयं भगवती कामाख्याका गिरी है। मन्दिरादि बना न था। ति सामान्य भावसे भरण्यके वृधगङ्गा दरङ्ग जिलेकी बड़गड नदी है। मध्य पीठस्थानमात्र था। नरकका प्रस्ताव सुन दोपवती दरङ्ग जिलेको दीपोता नदी है। भगवतीने कहा, 'यदि आप एक रातमें हमारा दिक्षुनदीका वर्तमान नाम दीख है। यह शिव मन्दिर, मार्ग, पुष्करिणी इत्यादि समस्त निर्माण कर सागरके निकट ब्रह्मपुत्र में मिली है। योगिनीतन्त्रके सकें तो हम प्रापको पति बना सकती हैं। मरकन मतमें यही नदी प्राचीन कामरूपको पूर्व सीमा थी। उसी समय विखकर्माको वुन्ला उनके साहाय्यसे रात्रि- चम्पावती ग्वालपाड़े जिले में प्रवाहित वर्तमान समाप्त होनसे पहिले ही प्रायः समस्त कार्य सम्पत्र चम्यामती नदी है। इसके दक्षिणांशका नाम गदा करा दिया। भगवतीने देखा,-'महाविपद पा पड़ी। धर है। अब हमें असुरकी भार्या बनना पड़ेगा।' इस प्रकार मानसा ग्वालपाड़े जिलेको मानहा नदी है। चिन्ताकर उन्होंने एक मायारूपो नुक्कट बनाया। नरकके पिच्छिला दरङ्ग जिलेकी पिछला नदी है। यह कार्यसमाप्त होने से कुछ पहिले ही वह अपना प्रात:- विश्वनाथकै निकट ब्रह्मपुत्र में गिरी है। कालीन ध्वनि सुनाने लगा। - कुक्क टध्वनि हाते हो होरिका नदीका वर्तमान नाम हिलिक है। यह भगवतीने नरकसे कहा,-'कार्यशष होनसे पहले शिवसागर जिलेसे बह लखीमपुर जिलेके मध्य हो कर, ही कुकट बोसने सगा। रात्रि वीत गई। प्रभात ब्रह्मपुत्र में मिली है। हम आपको वरण करने पर प्रखप्त नहीं हो सकती।' भगवतीके वाक्यसे क्रोधान्ध हो नरकने धनदा पाकल धनेश्वरी कहाती है। यह नागा यहाड़से निकल ब्रह्मपुत्र में पतित पुयी है। यही श्रीपीठको पश्चिम सीमा है। 1 उस कुक्कटको मार डाला था। कुकुटके-मारे जाने का स्थान भाजकल भी - "कुकुराकटारको नामसे प्रसिद्ध
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४४१
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