कामरूंप ४४१ मालूम रोका, 2 करतोया, १० वषमदा, ११ चन्द्रिका, एष पुश्शाकर पौठो नसीयस्य महात्मनः। एवम्चात्वा मरो याविहारस्यालय प्रति" १२ फेणिला, १३ शतानन्दा, १४ सुमदना, १५ भैरव. (कालिकापुराण,०००) गङ्गा, १६ देवगङ्गा, १७ भद्रा, १८ पुनर्भ, १८ मानसा, २० भैरवी, २१वाया, २२ कुसुममालिनी, २३ धीरोदा, या जल्योश नामक महादेव वरदाभयहस्तं पौर २४ नीला, २५ शिवाचण्ही वा चण्डिका, २६ सिह कुन्दस्य खेसवर्ण हैं। इन्हें तत्पुरुषकी भांति पूजना त्रिस्रोता, २७ वृदेविका, २८ भष्टारिका, २९ दिक चाहिये। जल्पीशका विषय जिसे पच्छी तरह मालम रिका, ३. स्वर्णवहा, ३१ सुवर्णश्री, १२ कामा, हो जाता, वह शिवलोक पाता है। ३३ सोमासमा, ३४ वृषोदका, ३५खेतगङ्गा, ३६ कम कालिकापुराणके मतमें नन्दीने महादेवको पारा- खला, ३७ सीता, १८ सुमनता, ३८ शाखती, धना कर यहीं सशरीर गाणपत्य पाया था। ४. कलिङ्गिका, ४१ दृश्यमाम, ४२ कपिसगणिका, जल्योपदेवका मन्दिर प्रथम अल्पेखर नामक ४३ दमनिका, ४५ रा. ४५ काता, 8 सिता, किसी राजाने बनवाया था। मुसलमानोंने प्राचीन ४७ संध्या, ४८ दीपवती, ४८ प्रगद नद । मन्दिर तोड़ डाला। उसके पीछे कोचविहारके प्राण- एतहिन योगिनीतन्त्रमें दूसरा भी कई नदियोंका नारायणने ( कोई २२५ वर्षे हुये ) वर्तमान मन्दिर नाम लिखा है,-५० चम्पावती, ५१ मानस, निर्माण कराया। पाज कच मन्दिर पहिलेकासा ५२ पिच्छिन्ता, ५३ स्वर्णदौ, ५४ हौरिका, ५५ धनदा, नहीं जीर्ण अवस्थामें पड़ा ५६ पत्राख्या, ५७ मनसा, ५८ धवसा, ५८ कपिसा, कद वह भूमिसात् हो जावेगा। पहिसे यहां बहुतसे ६. सरस्वती, ६१ जाह्नवी, ६२ दिक्षु इत्यादि । यात्री पति थे। किन्तु अब वह समय नहीं है। सुवर्णमानस, जटोद्भवा पौर विसोसा तीनों नदियां जल्पीथपीठसे घनतिदूर तसमा नदीके पास जलपाईगुड़ी जिले में प्रवाहित हैं। सुवर्णमानसका वर्तः प्राचीन पृथुरालके नगरका ध्वंसावशेष पड़ा है। मान नाम स्वर्णकोपी है। चलती बोसीम सानकोथी किसी समय यहां पृथुराजका राजभवन, दुगंपरिखादि कहते हैं। यह नदी भोटानके पर्वतसे निकल ब्रह्मपुत्र में था। पात्र भी उसका निदर्शन देख पड़ता है। यह पामिलो। जटोनवा नदी मोटानके पर्वत पर उत्पन्न प्राचीन स्थान प्रनतत्वानुसन्धायियोंके देखने योग्य है। हो जटोदा नामसे जलपाईगुड़ी जिले भौर कोचविहार इसके निकट कई क्षुद्र शुद्र नदी है। वही राज्यके मध्य हो कर बमपुत्र में गिरी है। विस्रोताका कालिकापुराणमें लिखी गई सितप्रभा और मवतीया वर्तमान नाम तिस्ता है। इसके प्राचीन गर्भमें बहुत समझ पड़ती हैं। परिवर्तन हुवा है। पानकल यह सिकिमके पहाड़से इससे थोड़ी दूर पाटगन्न नामक स्थानमें पाटेखरी निकल जलपाईगुड़ी पौर रजपुर जिलेके मध्य हो कर देवौका प्रसिह मन्दिर है। कोई कोई पाटेखरीदेवीको ब्रह्मपुत्र में पा मिली है। इस नदीसे पनतिदूर फ.कोर ही कालिकापुराणमें लिखित सिद्देखरौ मानता है। गच्चके मध्य लक्षपाईगुड़ी नगरसे प्रायः डेढकोस दूर भैरवी नदीका वर्तमान नाम. भरली.है। यह जपोश नामक पुण्यपीठ है। कालिकापुरापमें प्रकामातिके देशसे निकस प्रधपुवमें पतित यो है। कहा है,- वर्षाशा वर्तमान कामरूप जिलेंसे उत्पन्न हो "तवस्व कामरूपस्य बाधम्या विपुरासकः । पात्मनो विद्रमतुखं जल्योगास व्यद यत्" योगीघोप्रके निकट ब्रह्मपुत्र में मिली है। कामरूपके वायुकोपमें महादेवने जस्यीय नामक हादेविका कामरूपमें प्रवाहित बुहाड़ी नदी है। अपना पक्ष लिङ्ग दिखाया है। दिबरिकाका वर्तमान नाम दिकराई है। यह नदी "बादामयासोऽयं दिमुनकुन्दसनिमः । पका पहाड़से निकल दरF जिलेके मध्य होकर ब्राह्म- बनपुरषो.तु मन्नेर पूनर्यदनमुचमम् । पुवमें पा गिरी है। VOL IV. 111
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४४०
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