इस कामरूप ४३२ बामरचि (सं. स्त्री.) पनविशेष, एक इथियार । यहां नाला या नहर नहीं। किन्तु शस्य की विखामिवने इसे रामचन्द्रको पत्रके प्रख विफल रक्षाके लिये बीच बीच सामान्य बाँध मौजूद हैं। करनेके लिये दिया था। इस भूभागमें प्रायः १३० वर्गमोल जंग है। कामरू (हिं.) कामरूप देखो। जङ्गलसे भी गवरनमेण्टको यथेष्ट पाय होता है। इसमें कामरूप (सं.वि.) कामं मनो रूपं यस्य, बहुब्री. कुलसी नदीके तौरका वनविभाग प्रधान । जिस १ मनोन रूपविधिष्ट, खूबसुरत। २इच्छानुसार लिस वनसे रुपया पासा, इसमें बड़हार, दिमल्या, विविध रूपधारी, म के मुवाफिक तरह तरहको पस्तान, मयरापुर और बरवै नामक धन उखयोग्य सूरत बनानेवाला। दिखाता है। "कामरूप: कामगम: कामवीर्यो विनमः।" (महाभारत) वनमें साखू, शोधम, तुन, सूम, नाहर प्रभृति वध कामरूप-वर्तमान पासाम प्रदेशका एक विस्तृत यथेष्ट उपजते हैं। उनसे खूध कीमती कड़ियाँ, जिला। यह प्रचा. २५.४४ से २६ ५३३० और बरगे और तख्ते बनाते हैं। लालुङ्ग, कहारी, गारो, देशा०४.४० से १२ १२ पूके मध्य ब्रह्मपुत्रके मिकिर और खासी प्रभृति सभ्य लोग वनसें लाख, उभय पार पर अवस्थित है। इसके उत्तर भूटान, मोम, तन्तु, गोंद वगैरह एकट्ठा कर अपनी जीविका चलाते हैं। 'पूर्व दरङ्ग एवं नौगांव निसा, दक्षिण खसिया पहाड़ उत्तराञ्चलमें भूटान पहाड़के पास और पश्चिम ग्वालपाड़ा जिला है। कामरूपका बड़ा गोचारणका बड़ा मैदान है। यहां नानाविध वृक्ष 'शहर गौहाटी। उपजते हैं। इस जिलेका प्राकृतिक दृश्य पति मनोहर है। जीवजन्तु, पती, गैंडा, नानाजातीय ब्यान, भूमि बहुत उर्वरा है। ब्रह्मपुत्रके तौरका स्थान महिष, हरिण, वन्य शूकर, नाना प्रकार सर्प और नीचा रहनेसे वर्षाकालमें डब जाता है। यहां धान्य नानाप्रकार पक्षी देख पड़ते हैं। मत्य भी यहां नाना और सर्षप अपर्याप्त उत्पन होता है। शर, वंश प्रमृति प्रकार होते हैं। उनमें रेह, चित्ती और पवी नामक स्वभावतः अधिक निकलता है। ब्रह्मपुत्रके तौरसे मन्य ही पधिक है। पागे उत्तर भूटान और दक्षिण खसिया पहाड़ तक भूमि क्रमशः उच्च एवं समतल है। ब्रह्मपुत्रके दक्षिण इस जिले में बहुतसे छोटे छोटे पहाड़ है। उनमें एक • यहक योगिनौतन चकवादिका उझेख मिलता है। यषा,- एक दो हजारसे तीन हजार फीट तक ऊंचा है। उक्त "श दीफलविश्वानि बदरामलकानि च । पर्वतोंके पाच देशमें चायके बाग है। खन र पनसव तथा तालफलानि च । दाहिम कदली- mer- ब्रह्मपुत्र ही कामरूपको प्रधान नदी है। बहुतमी लकुछ मधुकं युक्त' कथा पूगफलामि। -नदी और उपनदी ब्रह्मपुत्र में गिरी हैं। उनमें उत्तर यस्य फलं विशालच तस्य शार्क प्ररोहकम् । दिकसे मानस, चावतखोया तथा वरनदी पौर दक्षिण बास्नूकस्य च माकच पावास्य मम प्रिये । 'दिक्से कुलसी नदी पायी है। विलयानि प्रियायन्यान् तथा च सिन्तिडीफल ब्रह्मपुत्रके मध्य कई क्षुद्र शुद्र होप है, इसकी कुष्माकं पायवीय तथा चारयसभवम् । संख्या नहीं।-बधपुनमें रेत पड़नसे शितने दीप कदलं यौणपूरच रामद पौवकन्तथा । बनते और बिगड़ते हैं। सौमधान्य दान्य रखमालिकमेव च । राजधान्य पष्टिकव देववहमन्तथा। कामरूपके पर्वतीय कई क्षुद्र नदी निकली हैं। चवर्क कोद्रपद श्रीभकास प्रायः उनमें जच नहीं रहता। फिर भी बा भीतर भीतर बहा करती। चार पचौरच पच माविषोडवम्।" मार प्रत्यामि बन्यानां चामवाशिनाम् ।
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४३०
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