बोयी थी। काफी ४०५ दरगाहको अपेक्षा काफी पानागारमें लोगों की प्रासक्ति वाकई एक फल और ७ वीज लाये थे। महिसुरमें चतुर्गुण बढ़ गई थी। पानासक्ति घटानेके लिये इस वह जिस पर्वत शिखरपर रहते थे, आज कन्च लोग पर बहुत शुल्क स्थापित हुवा। ग्रेटरटेनमें चायको उनके नामानुसार उसको "वावा बूदनगिरि कहते हैं। पहली दुकान खुचनेसे पहिले (१६५७ ई० ) काफी उस शिखर पर उन्होंने अपने कुटौरको वगनमें उन्हों पानागार वना था (१६५२ ई.)। डि, एडवार्डस ७वीजांसेवक्ष उपजाये थे। क्रमशः उस पर्वतमें काफीके नामक एक तुर्कस्थानका अंगरेज बणिक् काफी पोनेमे अनेक वृष हो गये। फिर ६०1७० वर्ष बीतने पर इतना अभ्यस्त हो गया कि, देश जाते समय उसे दूसरे भी निकटवर्ती कई स्थानों में इसकी खेतो बढ़ी। प्यास्त्रीया रोसी नामक एक ग्रीक नौकर प्रत्यह शेषको पाज प्रायः ४० वर्षसे अंगरेजोंको इस ओर दृष्टि काफी बना देनेके लिये अपने साथ रखना पड़ा। पड़नेसे काफीकी खेती भदो भांति की जाती है। . उसके बन्धुमको भी क्रमशः काफीपानका अभ्यास मि. क्यानन नामक किसी अंगरेजने सर्वप्रथम बाबा- पड़ गया। अवशेषों बन्धुबान्धवोका नित्य उपद्रव बूदनगिरिक दक्षिण एक ऊंची जमोन् पर. काफी नसह सकनेके कारण उसने रोसोको करनहिलवाले सेण्टमाइकेलके पाली नामक स्थानमें प्रकाश्य रूपसे अंगरेजाधिवात देशों के मध्य भारतवर्षम हो सर्वा- काफीका पानागार खुनवा दिया। क्रमशः व्यवहार पेक्षा उत्तम मुगन्धि काफो बहुपरिमाणसे उत्पन्न होती बढ़नसे पानागारोंको संख्या भी बढ़ी। २य चालसने है। काफीको.पची उपयुक्त नियमसे बना लेनेपर चायको .(१६७५ ई.) नागारों में लोगों की भीड़ देख भांति काममें लायी या चाय मिन्तायी जा सकता है। इसका व्यवहार घटानेको राजादेश विधिवत किया सुमात्रामे पाड़ाङ्ग नामक स्थानके लोग काफीकी पत्ती था। फ्रांसमें १६४० ई०को काफीका व्यवहार चला घायकी भांति बना प्रतिदिन पान करते हैं। चायको और १६६५ ई०को पारिस नगर में प्रथम पानागार भांति इसमें भी नथहर यान्तिनाशक गुण होता है। खुला। उसके बाद युरोपमें सर्वत्र इसका व्यवहार बहुत काफीके फलक छिन्नमें एक प्रकारका तेल रहता वढ़ा गया था। अवशेषमें १८४० ५०को चायका है। किन्तु इस तैयके निकालनेकी प्रणाली अभी अब व्यवसाय और व्यवहार अधिकतर बढ़ जाने से काफीका लखित नहीं हुई। भादर घटा। ब्रह्मदेशमें काफीकी खेती होती है, अमिरिकामें काफीका अर्क उत्तेजक प्रौरवलकारक पर बीजक्षा प्रभाव है। दिन दिन इसके पीनको चाइ पौषधकी भांति काममें आता है। किन्तु इलैंडमें बढ़ रही है। इसका चलन नहीं। मुरासार शरीर में जैसा कार्य भारतकै दाक्षिणात्यमें काफीकी खेती खूब होती उत्पादन करता, यह भी वैसा ही प्रभाव रखता है। है। १८८३१८४ । ८५ ई०को तीन वर्ष दाक्षिणात्वम काफी चायकी अपेक्षा सारक है। यह कोष्ठवह नहीं प्रायः १८६५०० एकर भूमिपर काफी बोई गई थी। करती। फिर भौ.अधिक्ष परिमाणमें काफी पीनेस उसमें महिसुरको ८२१०० एकर भूमिम ७११०००० दस्त कम उतरता है। पाउण्ड, मन्द्राजको ५५१०० एकर भूमिम १३१६०००० टाइफेड न्वरमें फरासी नौसेनाके मध्य रोगीको दो पाउण्ड, विवाइडशी ४८०० एकर भूमिमै १२०००० दो घण्टे पोछे दो चम्मच काफी पिला बीच बीच में पाउण्ड और कोचीनको २२०० एकर भूमिमें ८३००.० शरिट या बराण्डी मद्य सेवन कराते हैं। इससे ययेष्ट पाउण्ड काफी उत्पन्न हुई। उपकार होता है। काफी पीनसे फरासीसियोंमें इसके सम्बन्धमे बावाबूदनशी बात चिख चुके है.- भूत्रस्थलोक अश्मरी रोगना प्रातिशय्य घट गया है। भारतवर्ष सर्व प्रथम काफी कैसे भाई यौ। मसुिरमें तुर्कस्थान में काफी पीनेसे बातकी पीड़ा. नहीं रही प्रवाद है कि दो शताब्दी हुयी मक्काये चौटते समय है। तुक प्रत्यह काफी . पोते. है। यही उनका Vol. IV. 102 - -
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