पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४०२

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काफी ४.३ ... ... ... ... फारसी कहवा। बीट, घट्टपाम और तैनासारिम प्रदेशमें यह उप- वाधी कापउत। जती है। इसका फल वित् आयताकार होता है। सिंहसी कोपि-प्रत्ता। चहप्राममें से "रोणा" फर कहते हैं। घंगरेजी काफी (Coffee ३ सुगन्धि काफी। (Coffea Fragrans ) या फरामोसी alfa ( Cafe') श्रोह और तेनासारिम प्रदेशमें मिलती है। फस सक्त समेनी

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दोनों जातिको भांति होता है। वैज्ञानिक कफिया एराविका ४ पासामी काफो। (Coffea Jenkinisii ) (Coffea Arabica ) प्रासामक खसिया पर्वतमें उपजती है। फच ईषत् इसका पेड़ १५ से २० फौट तक ऊंचा होता है। डिम्बाकार लगता है। इसमें बहुसंख्यक शाखा प्रशाखा रहती हैं, किन्तु वह ५ खुसिया काफी। ( Coffea Khasiana ) अधिक नहीं बढ़तीं। इसके पड़को छाल सजना पेड़की खुसिया और जयन्ती पहाड़ो पर होती है। इसके फत छालकी भांति कुछ संत वर्ण होती है। नारनौके केवल चौथाई . इन्च मोटे पड़ते हैं। वीज टेढ़े वेरको प्राकारका सफेद फत्त निकलता है। फल क्षुद्र बकुल भांति होते हैं। फसकी भांति आते हैं और पकनेपर लान हो जाते हैं। ६ विवाइडको काफी (Coffen Travancorensis) प्रति फलमें केवल दो बीज होते हैं। वोन निकाल कर विवाछुड़में होती है। फल सम्बाई में छोटा और फन वैचे जाते हैं। फिर सूखे फलोको भून कर और चौड़ाई में बड़ा रहता है। वुकनी बना लेनेसे पीनका कहवा प्रस्तुत होता है। ७ मनवारी काफो। (Coftea Vightiana) अनेकांक अनुमानमें इसके अरबी "कहवा नामसे दाक्षिणात्य परिमांथ उपकती है। इस फलका प्रथमतः सद्य समझा जाता था। किन्तु पाजकल पाकार विवाइड़के फत्तको भांति होता, किन्तु एक उससे काफीका बोध होता है। फिर किसीके अनु तरफ बहुत दचका रहता है। मानसे यह शब्द पबमोनिया (अफरीका )के अन्तर्गत प्रथम श्रेणीको छोड़ कर दूसरी सकल वेग्गियों को काफा प्रदेशके नामसे बिगड़कर बना है। इसके हिन्दी काफी कम उत्पन्न होती है। दाक्षिणात्यके लोग नाम “दुन' से क्ष तथा फल और "कहवा" नामसे अधिक काफी पीते हैं और उधर ही इसकी खेती प्रधिक ' काफीको बुकनीका बोध होता है। की जाती है। दाक्षिणात्य में पानशत इतनी काफी इस फलका आदिनिवास अफरीकाके अन्तर्गत उपजती है कि विदेश में भी जाकर विकती है अवसौनिया, सुदान, गिनी, और मोजाम्बिक प्रदेशका १५ उत्तर और १५ दक्षिण अक्षांशके बीच में काफी उपकूल है। उक्त सकल स्थलों में यह वृक्ष अपने पाप भची भांति उपजती है। फिर ३६ इत्तर और वनमें सपजता है। परवदेशमैं यह इस प्रकार नहीं दक्षिण पञ्चांथके मध्यम प्रदेश में इसकी उत्पत्ति साधारण होता। फिर भी कह नहीं सकते कि अरवके दुर्गम है। कपासको खेती जैसी लामौनमें की जाती है, मध्यप्रदेशमें यह है या नहीं। वैसी ही जमीन इसकी खेतोके लिये भो पावश्यक काफीके पनेक श्रेणी-विभाग हैं। उनसे भारत होती है। इसको झाड़ी देखने में अति मनोहर वर्षौ ७ प्रकारको काफी मिलती है। पाती है। इससे पनेक लोग इसे उद्यान की शोभाके १परवी काफी। (Coffea Arabica ) भारत लिये लगाते हैं। असं फारनहोटके तापमानमें नाना स्थानों में इस काफीको यथेष्ट कृषि होती है। १०८० पर्यन्त उष्णता मिलती है, वहीं यह उपजतो २ बङ्गालको काफी (Coffea Bengalensis है। मासमें एकबार दृष्टि होना और वर्ष १५ कमासे मिशमी तक, युवादेश, वाल, भासाम, इचये अधिक जान पड़ना, इसकी उत्तम उत्पत्तिका - -