1 काफिरस्थान-काफी विश्वास न करनेसे ही यह काफिर कहाते हैं। फिर पौर अफगान उभय जातिको कन्धाका पापियार अधिक संख्यावाले वैगन का कृष्ण वर्ण छागचर्मका और काफिरस्थानमै निर्भय प्रवेश करते हैं। यह परिच्छद पहनने से ही सियाहपोम नाम है। इसीसे प्रधानतः पथप्रदर्शक का काम चलाते हैं। कुन्द पर्वतमें सबके सब सियाहपोध नामसे पुकारे जाते हैं। ही इनका अधिक वास है । दुगुनो अफगानीको अपेक्षा रामगत वा बासगल काले चमड़ेका परिच्छद नहीं पुद्रकाय होते हैं। इनकी पावति भी अपेक्षाकृत पहनते। वह उसके बदले सूतके कपड़े को पोथाक | कोमलतापूर्ण रहती है। यह मुसलमान धर्मावलम्बी बनाते हैं। वह तीनों जातियोंको भाषा स्वतन्त्र है। है। किन्तु इनमें स्त्रियोंके भवरोधको प्रया नहीं। यह भूत प्रेतमें विश्वास रखते हैं। काफिरोंक इस प्रदेशको परत उपत्यका ७३.. फोर दी है। मतानुसार जो कुछ दुःख कर मिलता, वह सब भूत पञ्चलिक च्यालिक नामक गिरिपया दृष्य परम प्रेतादिके कारण ही पड़ता है। इनके पानका मद्य रमणीय है। कुन्द पर्वतके शिखरपर एक क्षुद्र रद है। मद्यप्रस्तुत प्रणाली के नियमानुसार नहों बनता। वह प्रबादानुसार इसी इदके तीर नूहको नौकाका भग्ना- खालिस अंगूरका ताना रस होता है। वशेष प्रक्षरीभूत हो गया था, फिर निम्न उपत्यका परस्पर युद्ध विप्रहादिके पीछे पराजित लोगोंकी उसीसे महके पिताका समाधिस्थत बना है। स्त्रियां बन्दी बन दासोंकी भांति विकती है। स्त्रियोमें काफिला (१० पु. ) यात्रियों का समूह, मुमा. सज्जा, शीलता वा धर्मभाव नहीं देखते। इनके फिरोझा मुण्ड। काफिलाके सोग तीर्थ या व्यापार समाजमें उसे विशेष दोष कब गिनते हैं कारण करने मिल-जुलके निकलते हैं। पूर्व ही लिख चुके कि ऐसे दोषमें उभय पक्ष कैसो काफी (प. वि.) १ पर्याप्त, पूरा, कम न ज्यादा, सामान्य शान्ति रखते हैं। मपा वा । (पु.)२ रागविशेष : इममें कोमल गधार यह अंगरेज अफगान या तुर्क किसीके अधीन नहीं लगता है। काफीके कई भेद हैं, काफी काड़ा, सम्पूर्ण स्वाधीन हैं। सिन्धु और प्रकसम नदीके मध्य काफी टोड़ी, काफी होची इत्यादि। यह राग प्रायः इनका प्रमुख प्रताप्र है। नन्द जल्द गाया जाता है। हिमालय पर्वतके शेष प्रान्तसे अकसस मदीके तौरवर्ती | काफी-(हिं. स्त्री०) कावा, बुन । बदलशान पार्वत्य प्रदेश पर्यन्त और हिन्दूकुश पर्वत- | काफी-( अं० = Coffee ) कहवा, एक प्रकारका मालामें यह अधिकार रखते हैं। कावुन नदीके उत्पत्ति लवणं क्षुद्र फल। इसे तोड़, भून कर और बुकनी स्खलपर पड़ने वाले सकल गिरिवन्म भी उन्होंक वना धायकी भांति दूध के साथ बहुतसे लोग प्रत्या अधीन है। पान करते हैं। इसके भित्र भित्र नाम यह यह देखने में सुपुरुष होते भी दीर्घच्छन्द महीं। हिन्दी कापि, काफि, कावा। पूनमें दूसरी जो शुद्र शुद्र जाति हैं, उनमें दारानरी जाति प्रपनको ताजा मतावलम्बी और पति प्राचीन गुनरी .बताती है। कव, बुन, काफो। सम्पाक (बमघान) नामक स्थानको बम्बया बन्द तचेम-कै। भाषाके साथ इनकी भाषा और अफमानों के पाकारके दक्षिणी कन, बन्दा महाराष्ट्री साथ इनके पाकारका सौसाह है। कापि कोटार। तामिल सेवया (शिवा)नामक स्थानके वामपाथ में कापि मिलु। चुगुनी नामक एक जाति है। इसके लोग पपेक्षाहत. तलाशी बोन्द बोत्र। संख्या में अधिक विशा काफिर इन्हें "निम्बा" प्रर्थात् वयं संकर कहते हैं। क्योंकि यह काफिर | परवी समस्त गिरिवर्म में । वुन, कहवा, काफो। ... ... शुद, कापी। DO! ... करनाटी
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४०१
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