काफिर भांतिनी होती, अधिकतर पापुयावोंसे मिलती है। मानसिक वृत्ति मयजातिको पपेक्षा होन न रहते उनका स्वर परिकार तथा कोमन लगता, किन्तु मी बहुत चक्षर होती है। इसीसे वह स्वाधीन भावमें अनुमासिक रहता है। वह कपास और कपोत्नमें रह नहीं सकते। मलयजाति के साथ विवाद में इसी गोदना गोदाते हैं। दक्षिण कण छिदा कर कारण पाया हार जाते हैं। बड़ा छेद रखते हैं और सम्मुखभागमें बालोंका एक वह नवगिनी तथा उसके निकटवती होपमें समुटुक गोलाकार गुच्छा छोड़ समस्त मस्तक मुण्डन करते हैं। उपकूलपर वास और अन्यान्य स्थलों में पार्वत्य- पेराकके नदीकूलवर्ती सेमात "सेमानित पाय" कहाते प्रदेशपर अवस्थान करते हैं। बहुतसे होपोंमें तो उनकी हैं। वह समुद्रतीरसे पर्वतको ऊपर तक सकल स्थानमें संख्या विलकुल घट गई है। सिराम पौर गिलोलो रहते हैं। किन्तु बुकित वन और पावत्य स्थान भिन्न द्वीपमें वह कभी कमी मुश्किलसे देख पड़ते हैं। जसके उपकूलभाग वा नदीतीरको नहीं जाते। फिर बहुतोका अनुमान है कि, कान पाकर पाया "सकि' श्रेणौके लोग पावत्य प्रदेशसे नीचे उतरना पृथिवीसे उठ जायेंगे, क्योंकि शिकारके भूखे पपेक्षा कब जानते हैं। केदा.और पराक सेमाङ्गोंकी भाषामें कृत ताम्रवर्ण जातीय लोग उनको अधिक मारते दो शब्दोंके योगन शब्द छोड़ अन्य कोई बड़ी कथा वा हैं। किन्तु यह वम है। कारण जहां जहां समासवाक्य नहीं। जिन सकल स्थानों में सेमात लोग माजकल युरोपीय सभ्यता फैलती, वहां वहां रहते हैं, उनमें मलयनातीय नहीं मिलते। उन्हें परस्पर दिन दिन. मिलजुल कर रहनेको पाया पीके काफिर-शोरिस, मुम्बब शिक्षा मिचती जाती है। सिराम और गिलोचो इन्दना, अदेनारा, सलर, लवटा, रताव, श्रीम्बे, दीपमें रहनेवाले पत्वाधारसे उत्मोडित हो अतिशय श्रोयेउर, रत्ती, सर्वत्ति, बब्बर, तिमर, तिमरताउत, भीर बन गये हैं। वह किसी सभ्य मातिक साथ एक खाराट, नव कालिडोनिया, नव प्रायलेण्ड, पाटाहायटी दम ही बैठते उठते नहीं। अपरिचित वा भिन्न पसिनसिया, फिजी, मालकस, नवगिनौ, पोपो, वासन्दा, जासिको लोगोंको देख जंगसमें भाग छिप जाते है। किंवोप, अम्बयना, सालवत्ती प्रभूति पूर्वाशको दीपा माइसल नामक वृहत् होपमें उस जातिको छोड़ वचौम वास करते हैं। जिन सकल दीपेमि उस नातिक अन्य कोई जाति नहों रहती। केवल उपकूल काफिर रहते हैं, उन्हें मायके लीग "तानापापुया" भागमें एक प्रकारको मिश्र वा सहरजाति देख पड़तों (पाया जातिके वासखाम) कहते हैं।. बाल धू'घर है। उसको भी प्राकृति प्रति उनसे बहुत कुछ वाले होनसे ही उनका नाम पापुया" पड़ा है। क्योंकि मिलती है। उस सझरनाति नाविकतामें विशेष मलय भाषामें टेढ़े वानोको “पुया-पुया कहते है। पारदर्थो होसी है यह खुरापीोसे सदय व्यवहार घुया-मुया शब्दसे पाया शब्द निकला है। उनकी करती है। मागेशनमें पाया जातिके लोग देख प्राकति विलकुश काफिरोसे मिलती है। नासिका पड़ते हैं। किन्तु उसके निकटवर्ती जेतु दीपमें या प्रशस्त होती है। हाँठ मोटा और बड़ा रहता है। बिलकुल नहीं पाये जाते। .. यह भी सुनने में नहीं कपाल दवा दुपा होता है। रग मटमैला लगता है। पाता किसी समय वहां पापुयावांका वास था। पधिगालकका चतुष्याच सफेद होता है। वह नवगिनि, कि, पलं, माइसल, सासवप्ति प्रकृति दीयोंमें दक्षिणपूर्व एशिया अन्यान्य काफिरोये पूर्णगठित उस जातिके लोग रसते है. पौर. वही श्रेणी फिजी और बलिष्ठ है। पापुया लोग. उसाही, अध्यक्सायो दीप तक विस्तृत है। उनके बाल बड़े और बहस और परिश्रमी होते हैं। उन सब गुणोंसे. विसोटेदे होते हैं। पूर्णवयस्कों के मस्तकपर उसी प्रकारके समय उनको सभ्य देशम दासकी भांति पधिक बेचते थे बास पब बढ़ कर टापौकी मांति बन जाता। औरतीय भी पाहावार से देती थे। उन्त्री उन्हें बेटे 'बार प्रमोक्षगते १.: उनको Vol. IV. 100 ।
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/३९६
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