कापिथेय -कापोतवनक . ३ चजकुटी, देवोपासक और बहुत बौद्ध वास करते थे। उसका विशेषमें कापत, रेडडो या नायडू भी कहते है। नेलूर, विस्तार ४... लि (करीब ३३३ कोस) था। (Beal's कदपा, करनूल और समस्त तैला देशमें बापु सोग Buddhist Record I,: 54:58 देखो) रहते हैं। उनकी उपजीविका प्रधानतः क्वषिकार्य पासात्व प्राचीन भौगोलिक टलेमिने उसका नाम ही है। किन्तु कोई कोई व्यवसाय भी चलाते हैं। 'कपिशा', लिनिने 'कपिशिन्' और सलिनासने वह चतुर, साहसी और कार्यक्षम होते हैं। कांपु 'कफसा' लिखा है। जाति १३ शाखामें विभक्षा हैं। १ पारे, २ कानिदे, कनिहाम साहबके मतसे उक्त प्राचीन जनपद ४ देसरि, ५ नेरातु, ६ पण्डा, काफरस्थान घोरबन्ध और पञ्चभिर पर्यन्त विस्त त ७ पाकानटी, ८ पेदाकान्ति, ८ पटे, १० मोटाति, था। चौन-परिव्राजकको वर्णनासे समझ पड़ा, कि ११ रचु, १३ येराप और १३ रेलामा कापलु । वर्तमान बन्नू ( पाणिनि-कथित वणु) उपत्यका प्रदेश | बापुरुष (स' पु०) कुः पुरुषः कोः कादेशः । विभाषा पुरुषे । अवधि कापिथी क्षत्रिय रानाका अधिकार रहा। पा। शानिन्दित पुरुष, खराब पादमी। लिनिने उसको राजधानी 'कपिस्मा' बतायो है। कापुरुषता (सं० स्त्रो०) कापुरुषख भावः, कापुरुष-तल । उसका वर्तमान नाम कुसान अथवा भोपियान है। १ निन्दित पुरुषका कार्य, खराब आदमौका काम । कापिशेय (सं० पु. ) कपिशाया अपत्य पुमान्, कपिधा २ मोरता, निकम्मापन। ढक्। पिशाच, शैतान्। कापुरुषत्व (सं० ली.) कापुरुष-ब (तस्य मावस्खमली। कापिष्ठल (स• पु०) कपिष्ठम्नस्य इदम्, कपिष्ठल-प्रण। पा। ॥१६) निन्दित पुरुषका कार्य । कापुरुषता देखो। १ प्राचीन जनपद विशेष, एक पुरानी वसती। बहन- कापुरुष्य (सं• लो०) कापुरुषस्य भावः, कापुरुष थन । संहितामै वह 'कापिस्थन' नामसे उक्त है। फिर कापुरुषता, निकम्मापन। प्राचीन ग्रीक भौगोलिक एरियानने इसे 'क्याम्बिस्थलों कापय (सं० वि०) कर्भावः कार्यम्वा, कपि-टक् । लिखा है। वह पञ्जाबके अन्तर्गत कुरुक्षेत्रका कपिसम्बन्धीय, बन्दरके मुतालिक। २ अधिरा मध्यवर्ती है। वर्तमान नाम कइथल है। वहां ऋषिके वंशमें उत्पन्न। (पु.) ३ शौनक ऋषि । अझनामन्दिर प्रसिद्ध है। २ गोवभेद । (ली.) ४ वानर जाति, बन्दरीको कोम। ५ वानरके (स्वान्दे नागर १०१२२) कार्य, बन्दरको चाल। कापिष्ठलि (सं० पु०) कपिष्ठलस्य गोत्रापत्यम्, कापोत (संयुलो०) कपोतानां समूहः, कपोत-अण् । कपिष्ठल-दूज। कपिठल ऋषिके वंशीय । १ कपोतसमूह, कबूतरों का झुण्ड । २ सौवीरानन, कापी (स. स्त्री.) १ नदी विशेष, कोई दरिया। सुरमा ३ सनिधार, मनीखार। ४ रुचक लवण, स्त्रीविशेष, एक तरहकी औरत। काता नमक। ५ कपीत वर्ण, भूरारङ्ग (वि.) कापी (4. स्त्री-Copy ) १ प्रतिलेख, नक्षल । ६ कपोत-सम्बन्धीय, कबूतरके मुताजिक । ७कपोस- यह शब्द अंगरेजी Copyका पपबंध है। (हि.) २ गजाग, घिरनी। कायोतक (सं.वि.) कपोताः सन्ति अस्याम कपोत कापी-राइट (पु०-Copy right) मुद्रणस्वामित्व, छ-कुक् च तत्र भवः अण् कस्य लुक् । कपोतविशिष्ट इक, तसनीफ या मुसत्रिफो। उक्त स्वत्व राजविधिक देशजास, कबूतरोंसे भरे मुल्कको रहनेवासा । अनुसार प्रत्यकार वा प्रकाशकको मिलता है। कापोसपाक्य (सं० पु.) कपोतानां पाक: डिम्बः, तस्य विना अनुमति लिये दूसरा व्यक्ति किसी अन्यकार वा समूहः, कपोतपाक एव। कपोतके डिम्ब, कबूतरोंके प्रकायककी कोई पुखक रुपा नहीं सकता। अंडीका समूह । २ कपोतपाकीका राना। कापु-मन्द्रान प्रान्तको एक जाति। उसे स्थान- 1 कायोतवक्रक ( सं. पु. ) कयोतवा, एक यूटो। Vol, IV. 99 वर्णविशिष्ट, भूरा। 1
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/३९२
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