पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/३८४

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कान्सलौह-कान्ति ३८५ घृतकुमारीके रस में दो प्रहर घाट सामके पाव छोटौ गुरु, सारक पौर शरीरको स्थसता, अक्र तया मेमा- बोटी गोसी बना रखना चाहिये। फिर यह मोलियां वधिकारक। दोपहर एरडपत्र दारा पाच्छादित रखनेसे उष्ण काम्सारक (सं० पु.) कान्तार खायें कन्। रहो.र. हो जायेंगी। उस समय इन्हें धान्यराशिके मध्य तीन विशेष, कतीरा। दिन तक रख चूर्ण कर लेते हैं। यह चूर्ण कपड़ेसे | कान्तारग (सं० वि०) कान्तार गच्छति, कान्तार- छान जसमें डालनेसे उतरा पायेगा। गम-ड। वनको गमन करनेवाला, मो जङ्गलको कातलोह (संक्ती.) कान्स मनोरम सौहम, कर्मधा। नाता हो। कान्तलौर, ईसपात। कान्तलो देखो। कान्तारपथ (सं. पु.) कासारात: पन्याः, मध्य- कासा (सं० स्त्री०) काम्यते प्रसौ, कम-पिच--टाम्। पदली। बनमार्ग, जङ्गली राह। १ पत्री, बीवी। २ सुन्दर स्त्री, खूबसरत औरत। कान्तारपथिक (सं० वि०) कान्तारपर्थन पाहतम्, ३ प्रियङ्ग, एक खुशबूदार वैत । ४ स्थूलैला, बड़ी कान्तार पथ-ढन ! पावप्रकरणे पारिनालस्थववाधार इलायची। ५ रेणुका, बान। नागरमुस्ता, नागर पदादुपसखानम्। पा 0000-वार्तिक । १ वनपथद्वारा मोथा। ७ विसन्धिपुष्प वृक्ष, एक फलदार पेड़। पाहत, जङ्गली राहसे लाया दुवा।२ वनपथसे गमन- ८खेत दूर्वा, सफेद दूच । ८ वाराहीकन्द, एक डा। कारी, जावो राह जानेवाला। १. पाकायवी, एक वेत। ११ मूषिकपर्णी, एक कान्तारवासिनी (सं० स्त्री०) कान्तार वासोऽस्तास्वाः, बूटी। कान्तर-वास इनि-डीए। १ दुर्गा। २ वनवासिनी कासार-विहार प्रान्तके सुजफ्फरपुर जिले का एक जयमें रहनेवाली औरत। ग्राम। यह मुजफ्फरपुरसे ४ कोस दूर पक्षा० २६कान्तारि (सं० पु.) वाचारो देखो। १५.३० पौर देशा० ८५.२.३०पू० पर अवस्थित कान्तारिका, वाचारी देखो। है। यह नीलका व्यवसाय अधिक होता है। कान्तारी (सं० स्त्री.) कान्तार डीप् । १मधिका कान्ताहि दोहद (सं• पु०) कान्ताया पहिणा धरण. विशेष, एक प्रकारको मक्खी। मषिका देखो। २ विशेष, स्पर्थन दोहदा पुष्पोद्गमी यस्थ, बहुव्री। प्रशाक कान्सार (सं.पु.) विशेष, कतौरा. कामाचरणदोहद, पयोक देखो। कान्तासक (सं० पु.) नन्दोतव, एक पेड़ । शान्तायस (सं० लो०) प्रय एव, पायसम नाथे पण; कान्ति (सं. स्त्री०) कम् भाव बिन्। १दीप्ति, चमक । कान्तं पायसम, कर्मधा०। १ तुम्बक लौह, सा २ भोभा, खूबसूरती। इसका संस्कृत पर्याय-योभा, मिकनातीस। २ कान्तीह, एक तरडका चोहा। धुति, दीप्ति, कवि, सभा, मासा, भा पौर पमिख्या कान्तार (सं० पु.ली.) कस्य सुखस्त्र पन्त ऋच्छति है। ३ नो-शोभा, औरतकी खबसूरती । गच्छति कान्ता मनोज तिवा, वान्त-ऋ-अण् । "पयौवनवासिव भोमायराभूषणम् । १ वन, जल। २ पद्मविशेष, किसी किस्यका योमा मौला मय कान्तिमन्मवाप्यायिका द्युतिः" । (साडिव्वइपंच ) कंवल । ३ कोविदार इच, कचनारका पेड़। ४ वंश, रूप तथा. यौवनके लालित्वं पौर पखारादिसे बांस । ५ महावन, बड़ा जङ्गल । । दुर्गम-पथ, मुश्किल होनेवाले सौन्दर्य की शोमा कहते हैं। यही थोमा काम राहा ७ गते, गा।छिद्र, छेदार दुर्भिक्ष, कहत। चेष्टा विशिष्ट रहनेसे 'कांति' कहाती है।.४ इच्छा, १. पारग्वधव, अमलतासका पेड़। ११ौप खाबिया ५ कामपनि विशेष। ६ दुगा। ७ गङ्गा । सर्गिक रोग, छोटी बीमारी। १२ साधारण पन अख। चन्द्रको एक कचार चन्द्र की एक स्त्री। वाराही. . ११रले विशेष, कतीरा। -भावप्रकाशके मसमे या कन्ह एकया। महामनवृष, खोबानका पेड़। Vol. 97 कतीरा। 1 IV,