मार्ग है। करबर कानाड़ा.. • सागरमें जा गिरी हैं। पूर्वाशको नदीमें तुङ्गभद्राको प्रदेश में पश्चिम घाट ३००० से ३०.. फीट तक ऊंचा उपनदी वर्धा उल्लेखयोग्य है। पश्चिमांशको नदीमें है। पूर्वाधर्म उसीको एक प्रकारको सीमा मान सकते उत्तर कालीनदी, बीचों बीच गङ्गावली एवं तद्रि और हैं। उसमें अनेक गिरिवन हैं। उनमें सम्पनी, दक्षिण शिरावती प्रसिद्ध हैं। शिरावतीका जलराधि अण्डबी, चरमादी, हैदरगदी या दुसेनगदी, मंजराबाद होनावाड़ नगरके ३५ मील अपर ४२५- फोट उच्च तथा कलूर प्रभृति कुर्ग और महिसुरके मध्य प्रवस्थित पर्वतसे भीषणवेगमें गिरता है। . वही विख्यात हैं। मंगलोरसे उस गिरिपथ तक शक्टगमनोपयोगी गारसप्पा प्रपात है। पर्वतमें अधिकांश ग्रेनाइट पत्थर है। फिर अनेकोंके मूलदेश में लेटिराइट है। ‘दक्षिण-कानाड़े को कोई नदी १०० मीत्तसे अधिक और होनावाड़के निकट पावत्य प्रदेशसे लेटिराइट विस्तृत नहीं। फिर सब नदियां पश्चिम घाटसे निकली - प्रस्तर संग्रहीत हो गृहादिके निर्माणमें लगता है। हैं। उनके मध्य ग्रीष्मकालकी भी अनकों में नौका. उक्त प्रदेशके स्थान स्थान पर लोहखनि है। कुमपतासे गमन कर सकती है। नदियों में नेत्रवती, गुरपुर, १८ मौल दूर जान उपत्यकामे चूनेका पत्थर गोली और चन्द्रगिरि वा पयखनी ही प्रधान है। मिलता है। कारकल नामक स्थान में एक क्षुद्र पौर सुन्दर इद है।
- उत्तर कानाड़ाके वनविभागमें सकल प्रकार हक्ष फिर कुण्डपुरमें निर्मल जलका अपेक्षाकृत वृहत् इद.
उत्पन्न होते हैं। उनमें सागवन, पियासाल प्रभृति भरा है। पधिक देख पड़ते हैं। वहां गवरनमेंटके वनविभागसे वहां मृत्तिकाके सुन्दर दू दि बनते हैं। बहुतसे लकड़ी कटती है। कृषौको वनसे विना व्यय लोग कलमें उस मृत्तिकासे गण और ईट तैयार जसाने के लिये काठ, खादके लिये पत्ता और सह करते हैं। फिर वहां चीनी मट्टीको भांति एक निर्माणके लिये वांस, खूटा वगैरह मिल जाता है। • प्रकारको खवर्ण उज्ज्वल मसूप मृत्तिका भी मिलती. पहले उत्तर कानाडेको लकड़ी गुजरात और बम्बई है। मिजार नामक स्थानमें स्वणं, सबमराय एवं जाकर बिकती थी। आजकल उसे चनेको करबर कैम्फन नामक स्थानमें दाडिम-वीजाकार क्षुद्र पुनक- ले जाते हैं। मणि और उदिपी तथा उघारंगड़ी तालुकके मध्य दक्षिण कानाड़ा पक्षा० १२ ४.एवं १३° ५८ लौहकी.खनि है। लोहा निकालनेका काई प्रबन्ध उ.और देशा० ७४.३४ तया ७५° ४५ पू०के मध्य 'अवस्थित है। वह मन्द्राज प्रेसिडेन्सीमें लगता है। दक्षिण कानाड़ेको अधिकांश भूमि अधिवासियोंके. प्रधान नगर मङ्गलूर (मंगरोल या बंगलोर) है। अधिकारमें है। गवरनमेण्ट के अधीन केवल पचिम- उक्त प्रदेशका प्राकृतिक दृश्य अति सुन्दर है। घाटको निकटवर्ती वनभूमिका कुछ अंश है। Sa. नंदी अनेक होनेसे क्षेत्र शस्यपूर्ण रहता है। वन नाना वनमें नाना प्रकार काछवश, एचा, बन्य पारारोट.. खदिर, दालचीनी, (काल पौर वेल ), गोंद, राल वृक्षादिसे भरा है। नारियलके बाग वगैरह काफी हैं। उसके उपकूलभागमें (विस्तारमै ५ से १५ मोल और तरह तरहका रंग उपजता है । मधु, मोम और अन्यान्य द्रव्यादि पहाड़ी लोग (मलयकुदो) संग्रह तक) उत्तर दक्षिण सब जगह लोग रहते हैं। करते हैं। वहां प्रतिवर्ष प्रायः डेढ़ लाखका चन्दनतेल पावादी कुछ घनी है। भूभाग लेटराइट प्रस्तरसे बनकर बाहर जाता 1 महिमरसे चन्दन काठ प्राता पूर्ण और समुद्रपृष्ठ पर ४०७ से १०० फीट तक उच्च है। उसके पागे ही पथिमघाटको बुद्र शिखरमाला है। किन्तु उसका तेल केवल दक्षिण कानाडामें है। जमाताबादका पर्वत ( वेलतंगडोके निकट) ही बनाया जाता है। असलमें तो कानाड़ा नामका कोई स्वतंत्र देश, और गर्दभकर्ण पर्वत सर्वापेक्षा विख्यात है। नहीं।