कात्यायन मन्त्रविधानादि है। ३४ काण्डिकामें साकमेधका रूप है।प्रध्याय शेषर्म ज्योतिटीम यागमें सोमोचर और उसके पर्वकाल, द्रव्य, देवता तथा मन्त्रादिका विधान है। म कण्डिकामें विविषक क्रौडिनीयमें | अतिमात्र, प्राप्तयाम और ज्योतिष्टोम यागमे सोमोत्तर कर्तव्य प्रत्यग्नष्टोमा उक्थ्य, पोड़, वात्र पेय, इष्टिका कालविधान एवं तदीय. द्रव्य, देवता और कर्तव्य, सोमका ब्योतिष्टोमविधान और उसमें प्राधयंव- मन्त्रादिका कथन है। ८म एवं म कण्डिकामें विधान प्रकार है। पिष्टिके काल, द्रव्य, देवता और मन्त्रादिका कथन है। ११श पध्यायमें रही कण्डिका है। उसमें ज्योति- १०म कण्डिकामें यखक होमका कालविधान टीमका अङ्ग ब्रह्माविधान है। और ट्रव्य, देवता एवं मन्त्रादिका नियम है। १२श अध्यायमें ६ कहिका हैं। उनमें हादगाह ११श कण्डिका चातुर्मास्य यज्ञान्तर्गत पर्वविशेषामक यन्नका विधान है। एकादयाइ प्रभृति यन्नमें ज्योति- मुनासीरीयके काल, द्रव्य, देवता और मन्नादिका धोम धर्मका प्रतिदेश है। किसीके कथनानुसार कथन है। सूतकादिमें भी चातुर्मास्यका पुनार उसमें अग्निष्टुत धर्मका अतिदेश वर्णित है। सवरूप श्रारम्भ है। चातुर्मास्य विविध है-ऐष्टिक, पाशुक और अहौनरूप भेदसे हादयाइ दो प्रकारका है। और सौमिक । इस विविध चातुर्मास्य के द्रव्य, इन उभय रूपीका विप्रदर्शन है। पाद्यन्तमें देवता और मन्त्र का विधानादि है। १२श एवं १३श अतिरात्र रहनेसे सत्र और केवल अन्तम पतिरान कण्डिकाम मित्रविन्देष्टि और उसके द्रव्य, देवता रहनेसे प्रहीन होता है। सत्रयागमें यजमान सर तथा मंत्रका विधान है। पोड़प ऋत्विक्का.कटव रहनसे सकसका यजमानत्व. ६४ अध्याय १० कण्डिका है। उनमें निरूढ़, है। सुतरा सालको फलप्राप्तिका प्रधिकार नसे पशवन्धयाग और उसके काल, द्रव्य, देवता तथा इस कार्यमें दक्षिणाका प्रभाव है। पोड़श ऋत्विकमें मंत्रका विधानादि कथित है। यजमानत्वका अनिदेश रहनसे सप्तदश व्यक्तिवा ७म अध्यायमें कण्डिका हैं। उनमें ज्योतिष्टीम दीचादि यजमान धर्मनिर्देश है। गृहपतिका पन्चा- यजके काल, द्रव्य, देवता और मंत्रादिका विधान है। रम्भविधि है। यज्ञसम्पादनके लिये पानग्रहणादि फिर ज्योतिष्टोमके पूर्वानुठेय सोमयन्नके भी द्रव्य कार्यमें एकमात्र जनका हो कटव है। सत्कट क' देवतादिका विधान है। सम्पादित होनेपर सकलका सम्पादित शेता है। थम अध्यायमै कण्डिका है। उसकी म गाईपत्य और पाहवनीय प्रशारमासन है। अध्याय- एबश्य कण्डिका प्रातिथ्यकर्म, उसके द्रव्य, देवता समाप्ति पर्यन्त तदीय द्रव्य, देवता, मंत्र, दोचा भार औरमंत्रादिका विधान है। ३य कण्डिकामें औप कालका विधानादि निरूपित हुवा है। वसख्यक काल, द्रव्य, देवता और मंत्रादिका विधाम १३श अध्याय ८ कहिका हैं। उसकी प्रथम है। ४थ, ५म, ६०, ७म, आम और म कण्डिकामें करिखकामें गवामयन यन्त्रका प्रकार और उसमें ऐसा ही विधानादि कथित है। हादशाह यजधर्मका पतिदेय है। स्य, ३य और 2म अध्यायमें २४ कण्डिका है। ४थ काण्डिकामें हादशाह धर्मके ट्रव्य, देवता और सौत्यकर्म और उसके कान, द्रव्य, देवता एवं मंत्रका मंत्रका विधानादि वर्णित है। विधानादि है। अपर कण्डिकावों में प्रातःसवनका १४१ अध्याय में ३ कण्डिका हैं। उनमें ज्योति- टोम संस्थाभेद, वाजपेय यन्त्रक कार, द्रव्य, देवता द्रव्य, देवता पौर मंबविधानादि कथित है। १०म अध्यायमें कण्डिका है। उसकी समुदाय और मंत्रका विधानादि कथित है। १५य अध्यायमें १. कडिका । समुदाय कलिकाओं में प्रायः अध्याय शेष पर्यन्त मान्दिन सवन पौर बत्तीय सवनके द्रव्य, देवता और मका विधान कण्डिका राजसूय या, इसमें पबिय जातिका रम करिडकाम
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/३५५
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