पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/३५

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- वबौर-बड़-कज इसे .लोग पाहारमें व्यवहार करते हैं। यह वृक्ष 'उनके पुत्र तसिइने इनको संख्या निरूपण करनेको काशीके निकट एक मेला सगाया। इसमें प्रायः सुखा कर पितपापड़ेकी भांति पौषधमें डाला जाता ३५००० कबीरयन्यौ सन्यासी पहुंचे थे। । किन्तु इसका पाखाद उससे कुछ कटु और पप्रिय लगता है। कवीर-बड़ (हिं० पु.) विशाल वटवृक्ष, बरगदका बड़ा पेड़। यह भडोंचके निकट नमैदा किनारे कबूतरका फूल (हिं० पु. ) पुष्पविशेष, एक फूल । अवस्थित है। इसका परीणा चतुर्दश सहस्र हस्त- कबूतरको जड़ (हिं. स्त्री०) मूलविशेष, एक लड़ी। परिमित पाता है। कबीरबड़को शयामें सप्त सहन कबूतरवाज (फा० पु०) कपोतपालक, कबूतर पाचने .व्यक्ति विश्वाम कर सकते हैं। या उड़ानेवाला। कवीला . (अ० स्त्री०) पना, नोड् । कबूतरवाजी (फा० स्त्रो०) कपोतपालका कार्य, कबूतर कबीना (हिं. पु०) वृक्षविशेष, एक पेड़। यह पातने या उड़ानेका काम । बङ्गालके सिंहभूम, उड़ीसके पुरी, युक्तप्रदेशके गढ़वावं कबूतरी (फा० स्त्रो० ) १ कपोतिका, मादा कबूतर । तथा कुमायू और पञ्जाबके कांगड़े जिलेमें उत्पन्न २ वेडन, गांवको नाचनेगानेवाली रण्डो। होता है। मध्यप्रदेश, दाक्षिणात्य, काश्मोर तथा / कबूद (फा०वि०) १ नौल, श्याम, पासमानौ, नौला । नेपालको तराईमें भी इसका प्रभाव नहीं। कवीला (पु.) २ नोला वंशलोचन, नीलकण्ही । एक क्षुद्र वृक्ष है। पत्र अमरूदसे मिलते हैं। फलोंका कवूदी (फा० वि०) कृष्ण, श्याम, पासमानो, नोला। गुच्छ बनता, जो रक्तवर्ण धलिसे पाच्छादित रहता | कुबूत (प. पु० ) १ खोकार, मञ्ज र । २ सम्पति, है। इस धूलिसे रेशमको रंगते हैं। पहले एक रना, एकमत। ३ पनुकूल ग्रहण, सुवाफिक पहुंच। सर रेशमको पाधसेर सोडा डाल जखमें उबालते हैं। ४ प्रतिपत्ति, इकरार। ५ ताजक ज्योतिषोक्त योग- मुलायम पड़नसे रेशम निकाल लेते हैं। फिर १ पाव कबीला ( रक्षवणे धूलि), प्राधछटोक सिलतेल, १ पाव कबूलना (हिं० कि०) स्वीकार करना, कह देना, फिटकरी और सोडा छोड़ वही जल पावधण्ठे उबाला जाता है। पीछे रेशम डाल कोई १५ मिनट और कबूलसूरत (अ० वि० ) सुन्दर, खूबसूरत । उबालना पड़ता है। इससे रेशम नारङ्गीके रंगको कबूलियत (अ० स्त्री०) १ प्रतिपत्ति, मञ्जरी, सकार। हो जाती है। कबीलासे मरहम भी बनता, जो २ पट्टोलिकाको प्रतिमूर्ति, पढेको मकल । फोड़े फुन्सीपर चढ़ता है। कबीला उष्पा, रेचक और कबूसी (फा० स्त्री० ) तण्डुल एवं चणक-वैदलका विषात रहता है। इसकी अधिकसे पधिक मात्रा पक्क सम्मिश्रण, चावल और घनेको दालसे बनी हुयी ६ रती है। कवुलवाना, कबुलाना देखो। खिचड़ी। कवुसाना (हिं० कि०) स्वीकार या कवून कराना, कम (प. पु.) १ मलावरोध, कनियत, पड़, दस्त मुंहसे काहाना। साफ न पानिको हांसतं। २ पधिकार, दखन। कबुलि (सं० बी०) जन्तुके देहको पथात् भाग, ३ नियमविशेष, एक कायदा। यह मुसलमान वाद- जानवरके जिसका पिछला हिसा। थाहोंके समय चलता रहा। इसके अधिकार पर कबूतर (फ्रा.पु.) कपोत, परेवा। कपोत देखी। . सेनामी पपना वेतन जमीन्दारसे लेता और सिया कबूतरका भाइ (दि. पु०) एक पितपापड़ा। यह हुवा धन भूमिके करमें मुजरे देता था। अकबरने वृक्ष दक्षिण-पशिम भारत और सिंहलमें उत्पन होता यह नियम रहित किया, किन्तु पथके नवाबोंने है। फिर दधिर कोहन, मसय पौरपशियामें फिर पसा दियो। स दो प्रकारका होता था- मी सबा पावणे। बम मातम करीबी साबवामी पोर पमानो या बची। पावसामोरे विशेष मानना। .