पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/३४६

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। काण्डौर-कारावायन ३४७ काण्डीका प्राचीन नाम श्रीवर्धनपुर है। पूर्व उदर, मोहा, शूच तथा मन्दाग्नि विनायक होता है। कानको सिंहलके राजा यहों राजत्व करते थे। कांडौरा (सं०स्त्री०) कांडोर-टाप् । १ मनिष्ठा, मंजीठ । १८१५ ई० को मयदा-महा-नवरा' नामक स्थानमें २ कारवेक्षक, करेला। ३ अमृतस्रावा, एक वेल। राज विक्रमराज सिंहके साथ अंगरेजोंका एक युद्ध कांडोरी (सं० खो०) कांडोर डोष । चाहोरा देखो। हुवा। उस युद्ध में सिंहलके राना पराजित और बन्दी | कांडलु (सं० पु.) कांड इक्षुरिव । १ खेत इतु, सफेद हुये। फिर अंगरेजोने काण्डी अधिकार किया था। अख | भावप्रकाशके मतसे यह वातप्रकोपन होता है। तबसे कागडी अंगरेजोंके अधिकारमें है। २ कृष्ण इक्षु, काली जख। ३ काढणभेद, एक लम्बी यहां काराय जातिका वास है। यह पहाड़ पर घास ४ को किनाचक्ष, तालमखानेका पेड़ । रहते हैं। सब बलवान्, स्थलकाय और साहसी हैं। कांडरी (सं. स्त्री०) कांडं वायाशार पुष्य ईतें प्राप्नोति, अधिकांश प्राय बौद्ध धर्मावलम्बी हैं। फिर भी कांड-ईर-अण-डोष्। नागदन्तो वक्ष। नागदन्तो देखो। अंगरेजोंके आने पीके किसी किसीने ईसाई धर्म कांडकहा (सं० स्त्री०) कांडे रोहति, कांडे-ना. अवलम्बन किया है। पहले इनमें बहुविवाह यथेष्ट का-टाप । कटुकी, कुटकी। प्रचलित था। ५।७ भ्राता एक स्त्रीका पाणिग्रहण काडोल (सं० पु.) कंडोल. स्वार्थ प्रण। १ बासका कर सकते थे। सन्तान उता मातोंमें ज्येष्ठको ही टोकरा। २ उष्ट्र, ऊट। पिता सम्बोधन करते थे। पुरुष अपनी मनीमत बहु काराव (सं० पु०) करावस्य अपत्यं पुमान्, कराव-पण् । स्त्री ग्रहण कर सकता था। ऐसा प्रायः पुरुषके प्रति १ कराव ऋषिके पुत्र। २ कराववंशीयके छात्रा स्त्रीका अनुराग होनेसे होता था। स्त्री यदि पतिको ३ बजदकी एक शाखा। ४ करावद्दष्ट सामवेदः। स्खे अपने पिटहमें रहे, तो अपर धाताकी भांति (नि.) ५ कगवसम्बन्धीय। पिटसम्पत्ति पर अधिकार मिले। किन्तु पतिको शारावक (म.ली.) करावेन दृष्टं साम, कराव-वु । अपने पूर्व विषयका पाश्रय छोड़ पाना पड़ता है। करावदृष्ट सामविशेष। फिर यदि स्त्री जाकर स्वामीले गृहमें रहे, तो उसशा कारावशाखो (सं० पु.) वेदको करावशाखाका पिटसम्पत्ति पर कोई अधिकार नहीं ; किन्तु पतिपर उसका कत्व चलता है। १८५६:ई. से अंगरेज कारावायन (सं० पु.) कराव-प्रण-फक् । १ कराव.- गवरनमेण्ट कागद्य जातिको कुप्रथा उठानेको चेष्टित वंशीय वेदोक्ष प्राचीन ऋषि। २ थोत और ग्वधूत्रके हुयी है। पाज भी स्त्रीपुरुष मत होनसे परस्पर विवाह रचयिता एक ऋषि। ३ कराववंशीय राजा। किसी बन्धन छेदन कर सकते है। किन्तु यदि विवाह समय यह वंश भारतवर्ष में राजत्व रखता था . भङ्ग के 2 मास मध्य स्त्रीके पुत्रादि हो, तो पूर्व पति ब्रह्माण्ड, विष्णु, मक्षा तथा भागवत पुराण के मतसे- उस पुत्रको लेता और उसका भरण पोषण करता कराववंशीय महामति वसुवने शुङ्गवशीय शेष नृपति है। सिंह देखो। देवभूमिको मार राज्य पाचन किया। यायडोर (सं०पु०) काण्डः स्तम्बः पस्तास्य, कांड-रिन् । काष्ठाडादौरनीरची। पाURI ब्रह्मागडपुराणमें कहा है- १ अपामाग, चटजीरा। २ कारवल्ली लता, करेलेको "पार्थिवो वसुदेवस्तु वाख्याहवासनिन सूपम् । देवमूर्मि ससीन्यस्य प्रभाविता भूपः। वेव। इसका संस्कत पर्यायं-कोडकटक नासा- भविष्यति समा राजा नव कारावायनम् सः। संवेदन, पट, अग्रकांड, स्तोमवन्नी, कारवनी और भूमिमित्रः सुतस्तस्य चतुर्दय भविषति । सुकाडिका है। राजनिघण्के मत या कटु, मबिता बादयसमा नथाम्रारायण) तूपः।

तिक, पुण, सारक पौर दुष्टवय, छूताविष, गुल्म, सुशर्मा नवं समापि भविष्यति समा दय।

अनुयायो।