कतारके बोच, एक राह नगरसे मैदानमें जा मिची है। पहले इस मैदानमें जङ्गबहादुरको तलवार निये ३४० काठमाण्ड-काठीन मन्दिरी में सर्वापेक्षा उच्च लगता है। लोगोंके कथनानुसार १५४९ ई. को राजा महेन्द्रमनने यह मन्दिर बनवाया था। अनेक मन्दिरोंके सम्मुख उनके मूर्ति ३० फीट ऊंचे स्तम्भ पर रखी थी। पीछेको वह प्रतिष्ठाता प्राचीन राजावोंको प्रस्तरमूर्ति स्थापित हैं। बासमती नदोके तौर एक प्रासादमें स्थानान्तरित हुयी। यह मूर्तियां प्रायः मन्दिरको पोर घुटने लचा हाथ इस मैदानको पश्चिम ओर प्राचीन सेनापति भीमसेन जोड़े बैठी हैं। उनके मस्तक पर रानसम्मानसूचक थापाका 'दवेरा' नामक २५० फीट मंचा प्रस्तर स्तम्धः धातुनिर्मित सर्यफणा परिशोभित है। फणापर एक है। इस स्तम्भको गठनप्रणाली अति सुन्दर है। इन क्षुद्र पक्षी बैठा है । रानभवनसे कुछ दूर एक मन्दिरमें सेनापतिका दूसरा मी अदाकार स्तम्भ था, जी १८३३ एक बड़ा घण्टा लगा और दूसरे दो मन्दिरों में एक एक ई० के भूमिकाम्पमें भूमिमात् हो गया। यह स्तम्भ बड़ा दमामा रखा है। समस्त मन्दिरों में नानाविध १८५६ ई० को क्वाधातसे टूटा था। १८८८ ई० को हिन्दू देवदेवीको मूर्ति विद्यमान है। इसकी अच्छी मरम्मत हुयी। इसके अभ्यन्तरमें एक राजभवनसे २०० गज दूर अर्ध-युरोपीय प्रणालीसे गोलाकार सौढ़ी है। इस स्तम्भपर चढ़नेसे नगरको निर्मित 'कोर्ट' नामक अट्टालिका है। जहां यह शोभा अच्छी तरह देख पड़ती थी। स्थान बना, वहीं सार जङ्गबहादुरको (१८४६ ई.) इससे कुछ दक्षिण पुरातन शस्त्रागार है। मैदानके अभ्युदयमूलक भीषण नरहत्या हुयो। राज्यके पूर्व पुराना तोपखाना है। यहाँ बारुद तोप वगैरह समस्त सम्भान्त और क्षमताशाली लोग उस समय तैयार करते हैं। आजकाल नगरसे दक्षिण ४ मोल मर मिटे थे। दूर नुक्क नामक नदीके तौर एक कारखाना खुवा यहां कई क्षुद्र मन्दिर हैं। वह एक ही प्रस्तर. वहा तो बनायी जाती है। खण्डमे निर्मित है। उनकी देवमूर्ति एक इच्च प्राय इस पथमें पूर्वमुख धूम एक मौल चलने पर दीर्घ हैं। अनेक मन्दिरीम मोर, इंस, छाग और ठाटपटनी नामक स्थान मिलता है। यहां वाघमती महिषादिका वलिदान होता है। तौर अवस्थित जङ्गबहादुरका महल है। इस नगरक पथादि परशस्त और अपरिष्कार हैं। महलके सामने बाधमतोका मनोहर सेतु उतरते पत्तन प्रत्येक पथके किनारे नावदान होता, जो कभी नामक स्थान प्राता है। परिष्कार नहीं किया जाता। नगरवार मला जमीन्में काठमाण्ड के रेसोडण्टका स्थान नगरको उत्तर खाद डालने के लिये खर्च होता है। यह प्रायः चतुरस्त्र, है। जगह अच्छी है। लोगोंक अस्यन्तर चक्राकार और यथका हार अप्रशस्त रहता कथनानुसार भूतांका उपद्रव रहनेसे रसोडण्डके. है। बीच में चौड़ा चबूतरा बनाते हैं। वासके लिये यह स्थान मनोनीत हुवा है उत्तरपूर्वके सिंहद्वार होकर नगरसे निकले पर मन्त्री रणदीप सिंह नगरके उत्तर पूर्व पाच एक दक्षिण और 'रानीपोखरी नामक वृहत् दीपिका वृहत् प्रासादमें रहते थे। काठमाण्डूमें १२००० मिलती है। इसके चारो ओर प्राचौर वेष्ठित है। पदातिसैन्य है। पुरानी पाराको २५० बन्दूकें रहती दौधिका मस्थसमें एक मन्दिर है। इसके पश्चिम प्रसिद्ध नहीं। होकर इष्टकनिर्मित सेतु द्वारा मन्दिर में प्रवेश करना पड़ता है। मन्दिरके दक्षिण एक वृहत् प्रस्तरके इस्ती- काठशाठी (सं• पु०) कठपाठन प्रोक्त पधीयते, काठमाठ-णिनि । कठशाठ-कथित शास्वाध्यायो। पृष्ठ पर राजा प्रतापमलको मूर्ति कोण है। यही राजा. उ मन्दिर और दीपिकाके निर्माता थे। कुछ काठिन (सं०क्लो ) कठिनस्य भावः, कठिन भए । दक्षिण ओर भागे बढ़कर बकाइन (Cape lilac)वृक्षको : १. दृढ़ता, कड़ापन । (पु.) २ बर्जु रखक्ष, खजूरका पेड़। ओर एक मौल हैं। दाठमाण्डू किसी विशेष व्यवसाय के लिये
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/३३९
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।