पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/३३४

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काञ्चोपुर दोनों स्थानोंके दर्शनीय वस्तुओंके मध्य शिवकांचीस्थित | भौतिक मूर्ति हैं। कांचीपुरका “एकामनाथ लिङ्क" "एकामनाथ' नामक महादेव का प्रादिलित, भगवती उनमें शितिमूर्ति होनेसे ही मृत्तिकासे गठित है। कामाक्षी देवीको मूर्ति, भगवान् शङ्कराचार्य को सुतरां अन्यान्य देवालयकी भांति यहाँ जलाभिषेक प्रतिमा एवं समाधिस्थल तथा कम्पानदो तीर्थ और नहीं होता। विष्णुकांचीस्थित 'श्रीवरदराजस्वामी' नामक भगवान् एकामनाथका मन्दिर दाक्षिणात्यमें अति विख्यात विष्णुको मूर्ति, उलङ्गमूर्ति, वेगवतीधारा तोय. रवितीर्थ, और देखने में भी अति सुन्दर तथा पुरातन । यह सोमतीर्थ, महलतीर्थ, वुधतीर्थ, वृहस्पतितीर्थ, मन्दिर किसी समय एकबारगी ही न बना था। शुक्रतीर्थ एवं शनितीर्थ प्रभृति प्रधान है। इसके इसको वृद्धि क्रम कम हुई है। इस मन्दिरको दीवारें अतिरिक्त कांचौके निकट केदारेश्वर और वालुकारण्य परस्पर सरल भावसे नहीं वनों और घर भो परस्पर दो पुण्य स्थान भी है। (उक्त तीर्थों का विवरण सम्मुखोन नहों । अनेक लोगांक अनुमानमें इसका शिवकांचोमाहामा, कामाचीविनास, केदारेश्वर मुख स्थान चोल राजावाने बनवाया था, फिर विजय. माहामा प्रभृति संस्कृत ग्रन्थों में देखना चाहिये।) नगरके राजा वणरायने गोपुर निर्माण कराया। दक्षिण देयीय मार्गों के मतसे विवकांचो इस मन्दिरके प्राङ्गणमें एक पुरातन प्रामक्ष है। वाराणसी तुल्य है। इस स्थानके उत्पत्ति-विषय पर वृक्षका वयस २४ शत वत्सर होगा। दक्षिणके लोग • स्थलपुराणमें लिखा, कि महादेवने पार्वतीसे पुण्य इस माम्बवदको अनादि और सर्वशास्त्ररूगै मानते हैं। तीर्थकी बात करते करते कहा था,-"वाराणसी इसको चार शाखावों में पृथक् २ मिष्ट, कटु, तिल रामेखर, श्रीक्षेत्र प्रादि पुण्यक्षेत्रों में कांचीपुर उत्कृष्ट पौर अम्ल चार प्रकारके भान होते हैं। फल खाने- है। यहां नो लोग रहते , जो दर्शन करते या इसका वाले इस विषयका साचा दिया करते हैं। देव- विषय सुनते अथवा इसका विषय मनमें रखते एवं सेवकों के कथनानुसार पहले इस पावसे प्रत्यह आन्दोलन करते और नो पशु पक्षी यहां बसवे, वह एक पक्का पाम गिरता, जिसका भोग एकामनाथको भी सुधि लाभ करते हैं। इस नगरके मध्यस्थलमें लगता था । अनेक लोगों के कथनानुसार इसोये समस्त शास्त्रको श्रावके वृक्षरूपमें रख और अपने लिङ्गका नाम 'एकाम्बनाय' पड़ा है। किन्तु पाजकल लिङ्गरूप एकान्वनाथ नामसे अभिहित हो हम रहा प्रत्यहपान नहीं मिलता। करते हैं। इस कांचीपुरमें वास करते नर सर्वपापसे कामाक्षी देवीके उत्पत्ति सम्बन्ध पर स्थलपुराणमें मुल्ला हो जाते हैं। कांचीपुर चारो ओर पंचयोजन लिखा है. किसी समय.पावती देवीने कौतुकच्छलसे विस्तृत है। इसके मध्य पूर्व-पश्चिम एवं उत्तर-दक्षिण पोछे जा महादेवके चक्षु मूद लिये थे। इसोसे विश्व ढाई कोस हम सर्वदा विराजमान रहेंगे। फिर संसार अन्धकारमय हो गया। कारण सूर्य चन्द्र- प्रलयकै समय हम इसकी अपने त्रिशूल पर रक्खेंगे। वङ्गिरूपी नयनत्रय ढक जानसे प्रकाश किस प्रकार अतएव इसका कभी विनाश नहीं। इसको हमारी हो, होता ! इससे भगवतीको पाप लगा। उसी पापक प्राकति समझना चाहिए। प्रायश्चित्तको महादेवके श्रादेशसे उन्हे मत्य लोक आर्यावर्तके सोग जैसे जीवनके शेष भागमें कायो आना पड़ा। एकानमायके मन्दिरमाङ्गप-स्थित कम्पा- जा रहते तथा काशी में मर सकनेपर शिवत्व प्राप्तिका नदो : नामक तीर्थ, कामाची देवीरूपसे छह मास विश्वास रखते, वैसे ही दाक्षिणात्यवाले भी तपस्या करनेपर महादेवने उन्हें फिर ग्रहण किया। कांचीमें रहने और. कांचीमें मरनेसे अपनी मुक्ति तदवधि कामाचौमूर्ति खतंत्र मन्दिर में प्रतिष्ठिन है।- समझते हैं। फालान मासके पंचदश दिन वरावर एकामनाथका दाक्षिणात्यके नाना. स्थानों में महादेवको पांच वार्षिक महोत्सव होता है। उसके दशम दिवस रात्रिको 1