चमेती। काञ्चनपुर-काञ्चनाभ्ररस गण्डग्राम (कसबा)। यह कलकत्तेसे १४ कोस काञ्चनरस (सं.सो.) हरितानविशेष, किसी किस्म्रका हरताला गोवन्त देखो। उत्तर अवस्थित है। यहां पूर्ववङ्ग रेलवेका एक अड्डा है। पहले इस ग्राममें बहुसंख्यक पण्डित पौर| काचनवन (सं० पु०) काञ्चनमयो वमः, मध्यपटलोपो विवक्षण चिकित्सक रहते थे। यहां कृष्णका श्रीमन्दिर, कर्मधा। १ वर्णनिर्मित प्राचौर, सोने की दीवार । भीगमन्दिर तथा दोलमन्दिर बना और नियसेवाके २ सुमेरु पर्वतका सानुदेश। निर्वाहकी कृष्णवाटी नामक गांव लगा है। चैतन्य काञ्चनवर्मा (स.पु.) एक घाचीन राजा। हिरणवर्मा देखी। चन्द्रोदय नाटकके रचयिता पुरीगोस्वामीको यह जम्म- मूमि है। यहां रथयावा बड़े समारोहसे होती थी। काञ्चनष्ठोगी ( पु०) सूक्षय राजाके पुत्र । (महामारव, शान्ति ३०-३४) काश्चनपुर (स' की.) कलिङ्क राज्यका एक नगर। (लेमादि काञ्चनसन्धि (सं० पु.) काञ्चनवत् दुर्भद्यः सन्धिः । २०११) कावनपुष्पक (सं.ली.) काञ्चनमिव पीतं पुष्य यस्य, सुदृढ़ सन्धि, मजबूत मुलइ। काश्चनपुष्य का । पाहुल्य क्षुप, तगर।' आपुल्य देखो। काञ्चनसबिभ (सं. नि.) वर्णवत् सुन्दर, सोनेकी वाचनपुष्पिका (सं. स्त्री०) पीतनाती, पोला तरह चमकीला। काञ्चनसूप (पु.) काञ्चन नामक हिदलधान्य. काश्चनपुप्यो (संखो०) काञ्चनमिव पुष्यं यस्याः, साधित सूप, एक दाल। यह सरसोंके तेल में कल्हार डीप । गणिकारिका, परनो। कर बनाया जाता है। काञ्चनप्रभ (सं० पु.) १ ऐशवंशीय एक राजा। काञ्चना (स. स्त्री.) महोरावयको राजधानी । (नि.) २ स्वर्ण की भांति प्रभाविशिष्ट, सोनकी तरह इसका अपर नाम खणभूमि है। चमकनेवाला। काञ्चनाच (पु.) एक दानव । (रिवंश २३०.) काञ्चनभू (सं. स्त्रो०) काञ्चनमयो भू, मध्यपदलोया काचनाची (सं० स्त्री०) सरस्वती नदी। कर्मधा. १ वर्णमय स्थान, सोनकी जगह। काञ्चना (# वि०) काञ्चनवत् सुन्दरं अझं यस्य, २ वर्णरेणु, सोनेका बुरादा। बहुनो। १ वर्षवत् सुन्दर प्रकविशिष्ट, सोनेकी काञ्चनमूषा (सं• स्त्री० ) स्वर्णगैरिक, सोनामाटी। तरह चमकीले जिम्मवाचा! (को०) खनिर्मित काञ्चनमय (सं.वि.) काचनस्य विकारः, काञ्चन अवयव, सोनेका बना हुवा वदन । मयट। मयट् वैवयोर्भाषायाममधाच्छादनयोः । पा १३॥ कांचनाभिधानसन्धि (सं० पु.) कांचनसन्धि, दोनो खणनिर्मित, सोने का बना हुवा। तर्फ बराबर भर्ती पर होनेवाली मुलह । काधनमाधिक (. पु.) वर्णमाक्षिक, सोनामाखी। कांचनावरस (पु.) रसविशेष, एक दवा। रस- काञ्चनमाला (स. स्त्री.) १ घशीक राजाके पुत्र सिन्दूर, मुक्ताभस्म, सौह, अधक, प्रवाल, हरीतकी, कुनातकी यनी। २ खणणी, सोनेको लड़। रौप्य, मृगनामि और मन:मिंडा दो दो तोले जनमें ३ काञ्चनवृक्षको वेणी, कचनारकी कतार । घांटनेसे यह रस प्रस्तुत होता है। इसे विन्दुमान काञ्चनमोहनरस (मु०) रसविधेष, एक दवा। अनुपानके अनुसार सेवन करनेसे सर्वोपद्रवसंयुक्त रससिन्दूर, तासभस्म एवं स्वर्णभन्म समभाग अर्क भानारोग दव जाते हैं। क्षय, काम और लेमपित्त (मदार) तथा वजी (थूहर ) के दुग्धसै दिन भर पर यह बड़ा गुण देखाता है। (रसेन्द्रमारसह) वृहत् घोटनेसे यह रस प्रस्तुत होता है। गोली एक कांचनाच रस बनानका विधि यह है-खणं भस्म, रत्तीको बनती है। कामधनमोहन रसके सेवन से गुल्म | रससिन्दूर, सुताभस्म, लौहभस्म, अधभस्म, प्रवान्लभस्म रोग भारोम्ब होता है। (रसरवाकर) वक्रान्तमा, रौप्य, तान, बङ्ग, कस्तूरी, लवङ्ग, जाति- 1
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/३३०
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।