३२८ काजल-काजाक काजल (क्ली०) कुत्सितं जलम्, कोः कादेशः। (देवति सम्मन प्रस्तरखण्ड) पत्थर रोग छोड़ाता, कुत्सित जल, खराब पानी। युद्दमें जय दिलाता और भूत भगाता है। काजल (हि.) कवल देखी। १६ वें शताब्दको तातार सेनादलके मध्य सन्मुख काजलबास-एक मुसलमान , जाति। यह शिया भागमे रह कन्नाक ही नड़ते थे। रूस उस समय चंद्र सम्प दाय मुक्त हैं। ईरानका तबरीज, थोराज, मशीद क्षुद्र राज्यों में विभक्त था। इन्होंने उमो समय सुविधा और किरमान नगर इनकी जन्मभूमि है। यह देख प्रायः समस्त रूम-राज्यको विपर्यस्त कर डाला अन्नपालन, मेषपालन और कृषिकार्थसे अपनी) और अष्टाकानतक अधिकार किया। पन्तको प्रश्न जीविका चलाते हैं। काजलबास विलक्षण साहसी, वीर इमान ( Ivan the terrible ) ने इन्हें कमी- दुन्ति चौर युद्धप्रिय होते हैं। यह पारस्यवीर सीमासे बाहर भगा दिया। यह परास्त हो समर- नादिर शाहको विपुल वाहिनीमें भरती किये गये कन्द, बोखारा और खोयाको चले पाये। यहां भी यह थे। नादिर शाहका वध होने पर इन्होंने अहमद दुर्दमनीयं हो गये। फिर रूसका पधिकार यहांतक शाह मिल कावुन नीता। अहमद शाह जब मर प्रा जानेसे इन्होंने नाम मात्र इसकी अधीनता स्वीकार गये, तब यह कावुलके. निकटवर्ती चान्दोल ग्राममें की। काजन प्रदेशम लक्षाधिक कचाक रहते हैं। रहने लगे। इनकी संख्या कोयो डेड़ लाख है। इनमें भिन्न श्रेणीको भित्र मसजिद, मित्र कवर यह सुबीसम्प्रदाय वाले दुरानी सरदारोंके धोर शत्रु और डेरा डालनेको जगह रहती है। इनमें अनेक अफगान सरदार काजलबासोंसे डरा करते हैं। धनी वणिक् पौर भनेक सम्मानाई विद्वान् भी काजाक (कानाक) मध्य एशियाको घूमनेवाली हैं। रूसका कोई कानून यह नहीं मानते। भाषा एक जाति।. युरोपमें इन्हें कोसाक कहते हैं। यह और भाचार व्यवहारमें या बुरुत जातिसे विशेष मध्य एशियाके उत्तर विभागस्थ मरु प्रदेशमें प्रधानतः पृथक् नहीं होते। इनकी स्त्रियों और शिशुवोंक रहते हैं। तुर्कीकी तरह इनमें नानाविध श्रेणी, गावका वर्ण युरोपीयॊसे मिलता, केवल सूर्यके उत्तापसे. शाखा और वंशविभाग हैं। युरोपमें यह वृहत् अपेक्षाकृत काला पड़ जाता है। इनका मस्तक दीर्घ, मध्य और क्षुद्रदलमें विभक्त हैं। किन्तु ऐसा विभाग पगड़ी कोणाकार, चच वादाम जैसे तथा पौळ्वस्थ- मध्य एशियामें नहीं होता। भ्रमणप्रियता और युद्ध विशिष्ट, हनु उच्च, नाक चपटी, प्रशस्त ललाट, पाह प्रियताके लिये प्रति दूरवासी भिन्न भिन्न श्रेणियों के वृहत् धौर मूह थोड़ी होता है। इनके मतमें कालू योग पा मिलते हैं। एम्वा नदी, पाराल इद और नयाजकों की स्त्रियां ही सुन्दरी है। यह ग्रीनकालमें वलकाश तथा पालातौ इदके तौर यह पधिक कल्पक नामक पगड़ी और शीतकाल में तुमक नामक टोपी पहनते हैं। इन्हें सामुद्रिक शास्त्र, फचित संख्यक देख पड़ते हैं। . किन्तु इतने दूरवती होते ज्योतिष और भूतादिके प्राधान प्रतियर विश्वास भी सर्वदा सकल प्रदेशों में घूमते रहनसे इनमें भाषाका है। उकशास्त्रोंको वहुल पालोचना हुवा करती है। विशेष पार्थक्य नहीं पड़ता। १८१२ से १८१६ ई. तक इनमे कितने ही छानसाकसियाना प्रदेश में तोकेल या तियोंकेस उपयुक्त सोगोंको लेकर स-सम्राट्ने ८० पेनादल. सुलतान नामक किसी व्यक्तिके अधीन इन्होंने प्रथम अभ्य त्यान किया था। १५३४ ई०को (८४१ युरोपीय कचाक देखने में सुपुरुष, पातिथेय और हिजरी) मकथरतेश नदीके तौर यह बहुत दुर्दान्त सम्मानाई । विवाहित स्त्रियां मस्तकपर एक बन गये। मुखतान तोकेसने मास्को नगरको बस- रात्रि काचोषित रयमो टोपी लगाती और अपने सबाट, केडोबके निकट अनेक बार दूत भेजा था। गावमें एक मासबोस देती। या प्रिय सोग विघास रखते कि "यद तदा प्रस्तुत किये थे।
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/३२७
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