काधक-काविन्दु ३२५ २३५ डिग्रि उत्तापसे गरम करने पर खासा चुंबी | काचनक, (सं. को) कांच्यते लेखो निबध्यते पनेन, सरोखा रतवर्ण हो जाता है। कच णिच् स्युट खार्थे कन् । पत्र वा पुस्तक बांधनेका मीना-कांच ( Enamel glass.) भी एक तरह उपकरण, पोथी चपेटनेका डोरा या फोता। का खूबसूरत और चिकना कार होता है। काचनको (सं.पु०) काचनकं अस्यस्य; काचनक-इनि। काच-मणि-संस्कृत शास्त्रोंके अनुसार काच एक पत्र पुस्तकादि, पोथी पत्रा। इसका संस्कृत पर्याय- मणि माना जाता वर्णदूत, स्वस्तिमुख, लेख, वाचिक, हारक और "पावर पथरागानां मम्म बाघमोः कुसः।" तालक है। कांच और स्फटिक एकही चीज है- काचभव (सं० पु.) काचलवण, रेइ । "काच-स्फटिक- पावे काचभाजन (सं० लो०) काचनिर्मितं भाजनम् । स्माटिक मणिक सखधर्म संस्शतपन्याम लिखा है काचका पाव, थोशका बर्तन। "पिमालये पि विधवाटगौवटे अथा। काचमणि (सं० पु०) काचवत् मणिः काच एव मपिर्वा । सटिक बायते व मानार्थ समप्रभम् । १ काचकी भांति अल्प उन्चल मणि, जो जवाहिर हिमाद्री चन्द्रका माटिक वरिधाभस्त । शोधकी तरह चमकता हो। २ काच, शोधा । सूर्यकान्तय वर्व के चन्द्रकान नपा परम् । काचमल (सं.ली.) काचस्य धारमृत्तिकाया मममिव । सूर्योग स्पर्म भावेण वहर्षि वमति यवृषणात् । सूर्यकांत वदाख्यात स्फटिक रलवेदिधिः । काचलवण, औरा। पूर्ण न्दुकररयादमले सवनि क्षणात्। काचमालिका (सं. स्त्री०) मद्य, शराब । चन्द्रकात बदाख्या दुर्लभ तत् कलो युगे।" काचर (सं० वि०) कुषत् चरति दोपल्या दूरं गच्छति, हिमालय, सिंहल और विन्धयारण्यमें स्फटिक कु-चर-पण, कोः कादेशः। पीतवर्ण, पौसा। मणि उपजता है। हिमालयमें यह दो प्रकार का काचर-पूर्ववतको एक कायस्थ जाति। इन लोगोंका होता है। उसमें एक सूर्य सदृश रहता है, जो सूर्यके / गोत्र पालिमन, काश्यप तथा पाराशर और उपाधि है, किरण स्पर्शसे पग्नि उगलता है। इसीका नाक सूर्य- दत्त एवं दास है। पूर्ववत और फरीदपुरके मदारा- कान्त है। दूसरा चन्द्र सदृश होता है। यह चन्द्रके पुरमें यह अधिक रहते हैं स्पर्शसे अमृत उहीरण करता है। किन्तु कलियुग, काचलवण (सं• लो०) काचात् चारमृत्तिकातः जातं यह नहीं मिलता। इसको चन्द्रकान्त कहते है। लवणम् । लवण विशेष, सांचर नोन । इसका संस्कृत सूर्यकान्त मणि पातथी भोगेकी भांति गुण पर्याय-नौल, काचोडव, काच, नौलक, काचसम्भव, विशिष्ट होता है। काचसौवचल, क्षणलवण, पायज, काचोत्य, हयगंध, काचक (सं० पु०) काच खायें कन्। १ काच, शौथा, कान्तलषय, कुरुविन्द, काचमन और छविम है। पत्थर। २ कायसवण, २४।। राननिघण्टु के मतमे यह ईषत् चार, रुचिकारक, काचकूपी (सं० स्त्री०) काचनिर्मिता क्यो। योयो, अम्निवर्धक, पित्तवृद्धि एवं दाहकारक पौर कफ, वायु, वोतस्त। गुल्म तथा सूचनाशक होता है। काचघटी (सं० स्त्री०) काचनिर्मिता घटी पकायवकयंत्र (लो) काचनिर्मितं वकयंत्रम्, मछपद- मध्ययदली.। काँचका गिलास। सोपी कर्मधा । काचनिर्मितयंत्र विशेष पवगैरह वाचन (सं•पु०) कालवण, रेह। उतारनेको शोधका बना हुआ एक टोटोदार बरतन बाघतिन्तिड़ी (सं-स्त्री.) भामतिन्तिडी, कची रमसी। बकमेव देखो। वाचतिलक (सं.की.) कालवय, रैत काचविन्दु (सं-पु) नेवरोग विशेष, अखिको.एक काचन कापम देवी बीमारी। बाप देखो। Vol. IV. 82
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/३२४
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