पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/३२

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३२ कवीर शिवोंने चारो ओर गुरुको पाना घोषणा की थी। दल दल लोग श्रा-या पुस्खसलिलाके तटपर समवेत वस्तुतः कौन न मानगा-कवीर एक महत् व्यक्ति इये। सकल हो कवोरको वात सुननेको उत्कण्डित रहे। यह कोई जाति कयों न हों, इनके निकट हिन्दू • सुसनमानसकन ही समान थे। यह प्रकृतोभयमें थे। यह अपने प्रियजनीको उपस्थित देख मिट भास्त्र और कु.रान्का प्रतिवाद कर गये हैं। कौर भावसे कहने लगे-मैं परपार नाचूंगा। मेरे इह काइवे-'हिन्दुवोंके राम और मुसलमानोंक रहीम जौवनको लीला समाप्त हो गयी है। भायियो। मैं स्वतन्त्र नहीं, अनुसन्धान करनेमे वृदयमें मिलेंगे। अन्त्वज म्लेच्छके घरमें जन्म ले कर्मसूत्रमे वैष्णव बना यह विश्व जिनका संसार और अन्चौ एवं राम जिनके ई। इस मिथ्या अपवित्र देहको रखने क्या फल सन्तान उभरते, उन्होंको इम पोर. समझते हैं। मिलेगा। मगरराज्य में मेरा मोन होगा। कवीर जप पूजादि मानते न थे। इसके सम्बन्धमें यह कबीरको बात सुन सकल ही हाहाकार करने कहा करते- लगे। इन्होंने मधुर माषामें देहकी अनित्यता देखा "मनका फेरत युग गयो गयो न मनका है। सर्वसाधारणको सान्त्वना दी। करका मनका पीक कर नमक्षा मना" पनन्तर यह सकलको साथ ले मणिकर्णिकाक जपक मालाको गुरिया सरकाते-सरकात युग परपार पहुंचे थे। वहीं जाकर इनका निद्राकर्षण | बीत गया, किन्तु मनका इन्द न मिटा। इससे लगा। कवीर भूमिमें लेट गये। शियोंने इनके कहते-हाथको गुरिया छोड़ मनको गुरिया सरकाया शरीर पर वस्त्राच्छादन किया था। फिर दो घण्टे कीजिये वीतते भी यह न उठे। इससे सकालका मन अस्थिर यह सातिभेद भी मानते न घे। इनके वचनमें हुवा था। शिष्यों में भी कोई साइस कर इनके अङ्गका मिलताई- प्रावरण खोल न सका। दो घण्टे अपेक्षा कर सबके "सबसे हिलिये सब मिदियै सबला डिजिवे नांव। मनमें विजातीय भाव . उदय हुवा था। सभीने कांनी जो सबसे किजिये बनिये अपने गार" सबके साधी बनो, सवसे मिली और सबका नाम बारम्बार इन्हें जगानेको कहा। फिर अगत्या शिष्यों ने गुरुका प्रावरणवस्त्र खींच लिया। किन्तु वस्त्रके ग्रहण करो। फिर सबसे 'हांजी हांनो' भी कहो,. मध्य कबोरका दर्शन मिना न था। सवने वस्त्र किन्तु अपने ही स्थानपर रही। कबीर संसारकाण्डको देख दुःखस कहते थे- और धरासन पड़ा पाया। इसी प्रकार भत कवीरने "वामन हाम्हन भरख मय रुद्र पटे गोदा। परमपद लाभ किया। (मनिमामा) उग उग्गर बद पच्छा खाये इस पवि पोवार • मतिमाहामाका नो पुस्तक मिला, उसमें 'मगर कै म्यानमैं 'मगध' मांचकी मार रठा ठा भगत पिताय । मम्द लिखा। किन्तु 'मगर' की युक्रिमगत समझा जाता है। सौम गैरस गम्टियन फिरटे मुरा निकाय वह पाठयहप किया गया। मतीको ना धोती मिलेगा पहरे पासा। सना नाना-मृत्यु होमस कदो शवदेहपर हिन्दुयो पौर सह- कई कहीरा देसी माई दुनियावर तमासा" मानों में विवाद उठा था। तमो समय कबीर स्वय' पायामात कर नातिकुलकी भांति इनके समयपर भी कबीरपन्दी कर पनि य-मेरे गवदहका पावरस खोखकर देखिये। पावर गड़बड़ डाला करते हैं। उनके कथनानुसार कबीरने खौलनेपर शवकै अभाव, मदकी कुछ फल देष पड़े। बायोके राजा बोरमि'ने वही भाधै फल ला जलाये थे। फिर फूलों का मध्य संवत् १२०५ को टकसार-शास्त्र प्रकाश किया और कागौक 'कोर-चोरा' नामक स्थानमें समाहित किया गया। उधर • नाति पावि कुछ कारण यह शोमा दिन पारि। पठागराम विलीखान भा' फल गोरखपुरके निकट भगर नामक कहे कोर सुना रामानंद यह र मनमारिए • ग्राम सेनाकर गडाये थे। उन्होंने वहां एक सुन्दर समाधिसम्म मी भाति हमारी बानिया कुरबरता घर माहि। बनवा दिया। एक 'कौरवोरा' और 'मगरका समाधिव' कौर- मुटुंमार सनको मूरम समभव माहिए पवियों का प्रधान तीर्थ स्थान गिना जाता है। .