३२. कागन प्रकारके व एकत्रित किये जाते हैं जो कि "पामिट" उनसे ताड़-पत्र, केके पत्ते, वट-पत्र, रेट-पत्र, (Palmeta.) नामसे प्रसिद्ध है। ये टण आठ-दश फुट । भुर्जपत्र, तूनात् वा तृन्चट कागन, पवर और धातु- लंबे होते हैं; और इससे भी कागज बन सकते हैं। फलक आदि ही प्रधान है। अब भी ताड़-पत्रका आज कल बिनौले (कपासके बीज ) को भुसौम व्यवहार है। मन्त्रादिका गढ़ा बांधने के लिए पब कागज बनते हैं। बहुतों का कहना है कि, इसका मी भूर्जपत्र काममें आता है। केलेले पत्ते भौ प्रव कागज बहुत अच्छा होता है। पहिले स्पेन देशीय तक गावोंकी पाठशालाग्री में लिखने काममें बाये एस्पार्टाके सम्बन्ध में जो कहा है, उनमें "मेरोकोवा जाते हैं। केलेका पत्ता जल्दी सूख कर नष्ट हो जाता टेनासिसामर" ( Merochoa Tenaeissamr) और है, इसी लिए इस पर कोई रक्षितच विषय नहीं निषा "लिगेयाम् स्पार्टम् ( Lygeum Spartum ) जातीय जाता। इस विषय की वंगानमें एक कहावत है कि- घास ही अच्छी होती है, यह घास भूमध्यसागरके "लिखे दिन्चाम कलार पावे, मैले बैडाग पये पग्रे"- किनारे पर हो अधिक होती है। अर्थात्, वेलेक पत्ते पर चित्रा दिया है। इस चिए भारतवर्षके वावना वृक्षको भौतरको छालसे भी लिखना न लिखना वरावर है। तेरेठपन पर लिखित बहुत अच्छे कागज बन सकते हैं। पोथियां प्रब भी यथे मिलती है। यह ताड़-पत्रको प्रमिया राज्यमें "पोरों" नामके टपसे कागज भांतिका ही होता है; पर उससे कुछ पता और बनता है। चौड़ाई में बड़ा होता है। यह ताड़-पवशी प्रपंचा कागज पर रंग चढ़ाना। इङ्गलैंडमें सबसे पहिले अधिक स्थायो झोता है। वट वृक्षी पत्ते का पर जैसा रंगीन कागज चला था, उसका उल्लेख पहिले विल्कुल व्यवहार नहीं है। धातुफनक पोर पत्यरः कर चुके हैं। पहिलेसे साधारणतः कागजका रंग पर अव सिद्ध मन्दिरादिमें शिल्पलिपि खोदी जाती है। सफेद होता आया है; और उसके ऊपर काली स्याही | तनिकी चदर पर जैनियों का सिद्ध यन्त्र भी खोदा जाता से लिखनेकी रीति चली पाई है। कागज वनसे है। यन्त्र परम पूज्य होता है; और जैन विवाह पहिले जब चमड़े पर लिखा जाता था, तब मैंस पद्दतिसे जो विशद्द होता है, उसमें इस यन्त्रको वगैरइके चमड़े पर पीला, नीला प्रादि रंग चढ़ा कर स्थापना करके पूजा की जाती है। यह यन्त्र प्रायः उस पर सुनहरी या रुपेरी हिलसे लिखा जाता था। करके सब ही दि. जैन मन्दिरोमि प्रतिमाशे याम रोमकगण हाथोके दांतको पत्तियों पर सन्न रंगको विराजमान रहता है; और इसमें सिह भगवान मोम लगाते थे। बहुत जगह सिन्दूरसे लिखनेका (प्रष्ट काँसे मुक्त) की स्थापना करके प्रष्ट द्रव्याम खूब प्रचार था। ग्रोकके राज बंगमें प्रायः सब हो पूजा की जाती है। तान्त्रिक पानक लोग ताने, लिखा-पढ़ी लालरंगसे होती थी। भारतवर्ष चन्दन, सोने और चांदीमें खोदित देवतापोंके यन्त्र मन्त्रादिको लालरंग और सिन्दूरसे मन्त्रादि लिखनेको प्रया. बहुत पूना प्रादि करते हैं। तूचात् वा तूचट कागजका मी प्राचीन समय से चली आई है। यथेष्ट प्रचार है। पहिले इस कागज पर गोंड, बंगालमें और भारतके अन्यान्य स्थानों में वातकोंको इमलीके चियाको चूर; और हड़ताल लगा कर घोंट पहिले पहल "सिझम खड़ो" नामक एक प्रकारके कर रंग चढ़ाया जाता था, कोई भातका माड़ मी नरम पत्थर के टुकड़ेसे जमीन पर लिखना सिखाया लगाता था। इससे न तो कौड़े चगते थे और न जाता है; फिर क्रमशः ताड़पत्र पर, केलेके पत्ते पर; कागज स्याही सोखता था। जिस कागनमें माइ और पाखिरमै कागज पर लिखते हैं। इससे भारतको लेख्य वस्तुका क्रमविकास अष्ट झलक जाता है। जाती थीं। भारतवर्ष में प्राचीन कालमें जितनी लेख्य वस्तुएं घों, । 1 1
लगता था, उस पर संशतकी पुस्तक नहीं सिखी । मुसलमानोंके जमाने में भारतमें कई तरह