कागज
की छानोंसे कागज बनता है जापानवासी इसको "कादनी' कहते हैं। इसमें भातका माड़ “ोरेणि" ( Oreni ) मिलाकर खूबसूरत और मजबूत बनाते हैं और भी एक प्रकारके उसी जातीय वृक्षके छालसे कागज बनाते हैं, इस श्रेणीके वृक्षको वहाँ "कादन' या "काजिरा" कहते हैं। इस कागजमें खव अच्छी छपाई पाती है। यह “कादजिरा" इतना मजबूत होता है कि इससे रस्सा भ बनाये जाते हैं सिरिगा प्रदेशके सिरिगान नगरमें एक तरहका कागज बनता है जो बिलकुच रेशममा जान पड़ता है। हाथमे लेकर देखनसे भी इसमें रेशका भ्रम होता है। बहुतों का अनुमान है कि जापानी "कागज" शब्दसे देराणियोंने कागज शब्द बनाया है समरकंदमें सबसे ज्यादा पतला रेशमी कागज बनता है। चीनके कागजसे भी इसका पधिक पादर होता है। सबसे पहिले चीनवासियोंने ही रेशमसे कागज बनाया था यहांये भारतवर्षमे भारतसे पारस्य मैं पारस्यसे पारबमें पारबसे ग्रीसमें और ग्रीससे प्राचीन रोमक राज्यमें रेशमी कागज बनानको परि- पाटी चली है। भारतवर्ष में केवल नेपालमें ही वांससे कागज बनता है। नेपालवासी वासोको काटकर काठको पोखरीम कूट कूट कर 'मंड बनाते है फिर पानीमें धो कर साफ करके, नाना उपार्योसे उसे रेशमके ऊपर ढाल कर सुखा लेते हैं। इसको पत्थरको बटनियासे घिस घिस कर बरावर करते हैं। यह कागज बहुत कड़ा होता है। पौर टेढ़ा नहीं फटता, सीधा ही फटता है। यह कागन "फिल्टार" (Filter) करनेके लिए सबसे अच्छा है, क्योंकि यह पानी भीग जानेसे मुरझाता नहीं; और न जल्दी नष्ट ही होता है। "नेपाली कागज” नामका भी एक तरहका कागज होता है। यह महादेव का-फल (Daphne canaa. bina) नामक वृक्षके वक्त्से बनाया जाता है। ईखी सन् १८५१ को प्रदर्शिनीम इसी बक्कससे बना दुपा एक बड़ा कागज दिखाया गया था, दर्शकोंने इसे देख कर बड़ा पायर्य किया था। इसको बनाने Vol. IV. 80 को तरकाव नापानके त छालके कागज सरीखी हो है, सिर्फ फरक इतना ही है कि ये लोग डालीको उवाल कर सिर्फ भीतरी छालको ही उवाचते हैं। यह कागज कभी कभी कड़ी से घिस कर भी बरावर किया जाता है। यद्यपि यह कागज 'नेपाली कागज कहलाता है; पर वास्तवमै यह नेपालमें नहीं बनता। भोट राज्यमें और हिमालय प्रदेशमें ही इस वृक्ष बहुतसे जंगल है, और वहीं पर यह कागज वनता है। भुटिया लोक इस वृक्षको लकड़ी जलाया करते है। १८२८ ईखोसे पहिले इस काठके ईटके प्राकारके कुछ टुकड़े इङ्गलैंडमें भेजे गये थे वहां इसके द्वारा हाथों से जैसा कागज बना, उसके सम्वन्धमें एक मुद्रकका कहना है कि, इस कागज पर जैसी सूक्ष्मसे सूक्ष्म छपाई हो सकती है ; वैसी किसी अंग्रेजी कागज पर नहीं हो सकती। यह चीन देशीय "इडिया-पेपर के समान गुणविशिष्ट होता था। नेपाचमें ऐसे कागज पर लिखी हुई कुछ प्राचीन पोथियां मौजूद हैं, सुनते हैं ये बहुत ही प्राचीन है। इन पोथियोको देख कर बहुतसे अनुमान करते हैं कि, चीन देशसे प्राय-७००वर्ष पहिले भुटिया लोगोंने यह कागज बनाना सोखा है। “महादेव का-फूल" छोटा कंटक-वृक्ष मात्र है, देखने में बहुतसा विलायतो लरेलको भांतिका होता है। यह दो वर्ष तक जीता है; और जाड़े में इसके पत्ते नहीं करते। इसका फल विषाक्त होता है। यह वृक्ष कई तरह होता हैं, पर सबसे कागज बनता है। कुछ वृक्षांके फूल सफेद होते है; और कुछका रंग थोड़ा मटोला पोर बेंगनी रंग मिला हुआ सफेद सा होता है। बहुतोंका विश्वास है कि, हिमाचयके नीचे के लोग नेपाली कागजमें इड़साल मिलाते हैं। पर यह बिलकुल गलत है, क्योंकि नेपालमें वैसा विष कोई वैच नहीं सकता; और छिपाकर वैचने पर भी उसे विशेष दंड दिया जाता है। "महादेवका फूल का वृक्ष भी थोड़ा विषैला होता है; पर कागज बन जाने पर उसमें विष नहीं रहता, कोकि देखा गया है कि इसमें भो कोढ़े खगते हैं। यह सूखने पर बड़ा कड़ा हो जाता है; सूखी चीजों .