पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/३१५

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देते हैं कि, कोई समझ नहीं सकता कि, यह एक है या-दी। जापानमें ऐसे कागज बनाते समय, ये होग' (आपानी) छालको खारयानीमें न उबाल कर छाई एक कागन ' बनाया था। कोई कोई कहते हैं कि, इससे भी पहिले चीनमें बांसके कागजका प्रचार था। चीनमें एक एक प्रदेशमें एक एक चीजसे प्रधानतः कागज बनाया जाता है। कहीं सनसे, कहीं कच्चे बांससे, कहीं तूंतकालने, कहौं धानके पूलासे और कहीं (खाख)के पानी में पात्रके मुंहको ठशकर उबालते हैं। गैइके पूलासे प्रधानत: बहुत कागज बनाये जाते है। जब डालोके दोनों किनारकी छाल आधञ्चके करोब रेशमको 'गुटी' से पार्चमेंटकी भांतिका एक तरहका गल जाती है तब उसे उतार लेते हैं। और ठंडा होनेपर . कागज होता है, इसको चौन लोग लो-ओयेन-डी उसके बक्कन छुड़ाकर ३-४ घंटे पानी में डाल रखते हैं। कहते है। यह अत्यन्त कोमल होता है; और इसो समय ये लोग अपरको कालो छालको छुरोसे इस पर खुदाई करके लिखा जा सकता है। छोल देते हैं। फिर मोटो छाल और पतली छालको प्रदेश में को-चा' वा 'चा' नामक एक प्रकारके वृक्षसे अलग अलग कर लेते हैं। इसके बाद फिर इन यथेष्ट कागज उत्यव्र होता है। ये लोग उस समयका बक्कलोको उबालते है; और एक लकड़ीसे फेंटा करते सा कागज अब भी बनाया करते हैं। चीनवासी हैं। इस प्रकार जब यई 'मंड' ( लंड) बन जाता है। चीन या वृक्ष देशी तूंत-छा ( Bronssonetia papyri तब इसमें भातका मंड़ तथा अन्यान्य बसएं मिला fera pepermulderry) के कागज बनाने में पहिले कर; चटाई पर ढाल कर कागज बनाया जाता है। डान्तिवोंके १-१ हाथ लम्बे टकर कर उन्हें खारे पानी में और बने हुए कागजोंको सम्भाल कर रखते समय डवाल लेते हैं। इस प्रकार उबाल लेनेसे भीतरी प्रत्येक कागजके नीचे एक एकवण रख देते हैं। काल पृथक हो जाती है। फिर उस छालको पृथक फिर उसपर वजनदार चीज रख कर उसका पानी कर घाममें सुखा लेते हैं। इस सरह अब प्रर्याप्त निकाल देव हैं। इसकी धाममें सुखा लेनेसे ही रूपसे छाल एकत्र हो जाती है, तब इसे ३-४ दिन कागज बन जाता है। इसके.पंशुओंके अनुसार यह . तक पानी में डाल कर नरम बनाते हैं। और बरे कागज फाड़ा जाता है। इसको धरी करके रखने से उस हुए अंशसे बाहर निकाली हुई छालको फेक देते हैं। धरीका दाम नहीं होता; और यूरूपीय कागजसे सबसे पीछे बाहर निकली हुई छालको फेंक कर; खव मजबूत भी होता है। बाजारमें जो चीनके जो कुछ बाकी बचती है, उसको उबालते हैं। जब पंखे बिकते हैं। वे इसी कागजके बने हुए हैं। इस तक यह उवाली जातो है; तब तक एक बटने से उसे कागजके द्वारा घरको भीत भी बनाई जाती है पुड़िया घौटा करते हैं। फिर नाना प्रकारके यंत्रोंको बंधने काममें भी यह लगता है। वहां बहुतसे सहायतासे इसे 'मंड' (लाड) बना लेते हैं; और कूट लोग रूमालको जगह इस कागजको काममें लाते हैं कर इसे धो लेते है। फिर इसमें भातका माड़ मिला वास्तव में यह कागज होता ही ऐसा है कि 3; कर सचिम ढाल कर इसका कागज बनाते हैं। बांसके देखते ही कपड़े का भ्रम हो जाता है। कारण, यह कागजसे इसमें अधिक यन करना पड़ता है। फिर कपड़े की भांति कोमल और सर्वत्र एकसा होता है इनको रखते समय, प्रत्यक कागज पर एक एक तथा इसमें भांज भी नही पड़ती वहांके लोग इस तिनका रख कर रखते है। वादम फिर एक एक तोलियां, टेबिलका बास्तरण, पहिरनेको फतूली आदि ताव धाममें सुखाया जाता है। यह कागज खुब . नरम और यतले होते हैं, इसमें दोनों तरफ नौं सिखा मा सकता। ये लोग कभी कभी इसके दो ..ताव थिरिममे एक साथ जोड़ लेते हैं। ऐसा जोड़! ( Morus Papyritera Sativa ) वा 'कागजके पेड़ । इसको कागज पर लाखका काम करके टोपौ बनाते हैं और भो बनाते हैं। जापानमें प्रधानत: “मोरस पेपिरिफेरा सैटाइमा