कागज़ दलील पादि लिखो जाती थीं। मिसरके लोग भी कागज सबसे प्राचीन हैं। इससे जो कागत्र बनवा था, ऐसी पुस्तकों पर रक्षितव्य विषय लिख रखते थे। उसको "पेपिरस पेपर और संक्षेपमें “पपिरि' करते (2) पशुचर्म-एक समयमें कहीं कहीं लोग साइव वत Exodus नामक ग्रंध देखा पशुओंके चमड़े पर भी लिखा करते थे। जोन जाति जाता है कि, ईश्वो १४०० वर्ष पहिले भी पैथिरिका पुस्तकको “डेप्टेरो" ( Deftere ) वा धर्म. (१) बहुत प्रचार था; और खोके कहती थी। "विबन्नस" (Biblos) पेड़ जब दुष्याम्य ३०० वर्ष वाद भी इस पेपिरिके व्यवहारका छल्लेख मिलता है। हो उठा सब लोग बकरी और भेडाको छाल पर यह ण शरको भांति जलाशय-भूमि पर उत्पत्र लिखते रहे। ईश्वीके ५म शतकमें 'कन्ष्टांटिनोपल में होता है। मिसरदेशमें, सिरियामें पौर सिसिखिदीपमें जा भीषण अग्निकांड हुआ था, तब एक जातिके यह तप उत्पन्न होते हैं। सिरीयामें इसको 'वविर' सर्य के पेट का चमड़ा जल गया था। उसो सर्प-चर्म (Babeer ), ग्रीको 'विवतोस ( Biblos) और पर ग्रोकका महाकाव्य "इलियाड" और "वडेसि" उद्भिशास्त्रमें पाश्चात्य मनीषिगण साइपरस मिरिया- सोनेके अचश्में लिखा गया था। यह हिंसक लिखन. कास' (Cyperus Syriaeus) कहते हैं। यह प्रणाली अब कहीं भी नहीं रही करीब ८ फुटसे लेकर १२ फुट तक लंबा होता है। (ब) पार्चमेंट और विलाम्-धकरी और भेड़ इसके पत्ते परके पत्तां सरोखे नहीं होते, बंगाच प्रांत की छालको रीति अनुसार ऐसा बना लिया करते हैं; "भाउ वृक्षके पत्तेकी भांति इस ढपके अग्रभागमें जिसमें छापा हो सके। ऐसे बने हुए चमड़ेका नाम ८पत्ते होते हैं। इसके सर्वाङ्गमें पत्ते नहीं होते और "पार्चमेंट' है। सूक्ष्म और अच्छा पार्चमेंट विलाम् न भरकी भांबि इसमें गांठे ही होती हैं। इसका कहलाता है। विलाम् चमड़ेसे नहीं बनता; अकाल वर्ण भवुज होता है; पर नो अंश कीचमै रहता है, प्रसूत या दुग्धपायो गोवत्सके चर्मसे बनता है। पहिले वह सफेद होता है। इस सफेद ग्रंशकी छाल बहुत यदी लोग इस पर कानुनादि लिखा करते थे। ही पतादी होती है; और १२. घरी भी होती है। पारसी लोग इस पर स्वदेशप्रचलित गल्य का इतिहास इन घरियोंको सावधानीसे खोल कर चौडाइको पोर लिखते थे। दलोलादि लिखने में यह अब भी व्यवहान गोड़ देनेसे हो कागज बन जाता था। उन छाके होता है। डैसडेन लाइब्रेरीमें इमापक्षोके चमड़े.पर जोड़ने के लिए उस समय रोप वा अन्य कोई वैसी लिखी हुई एक मैक्सिको-पत्रिका और भियना लाइ ही वस्तु काममें खाई जातो यो। 'पेपिरस्' घासकी रीम एक पुस्तक है। जड़ मबुथके हाथके समान मोटी होती है, पतः श्री (ट) बना हुआ चमड़ा (लोम छोल कर, यौट जितनी गोलाई उसकी होती है, उतनी ही कागज कर साफ किया चमड़ा ; जो आजकल भारतमें भी भो चौड़ाई होती है। यह छाल जितने भीतरको ख्व व्यवहार किया जाता है।)-ऐसे चमड़े पर होगी उतनी ही पतली होगी, इसलिए तब मोटा बारवी लोग अधिक लिखते थे। पतला सब तरहका पपिरि बनता था। जो पिरि २। कागनको उत्पत्ति पहिले ही एकदम सबसे अधिक पतला होता था, उसको यौक चोग अंशमान पदार्थक 'मण्ड' कागज़ बनानेको प्रणाली 'हरिटिका' कहते थे, कारण कि-इस सरहकर बावित नहीं हुई। पहिले ढण और शादिका 'पपिरि' सिर्फ मिसरीय याजकगण ही व्यवहार में सात अंधविशेषसे कागजवत् एक प्रकारका पदार्थ बनता थे, अन्य साधारण वा विदेशीय वणिक इसे खरीद नहीं सकते थे। मिसरीय याजकगण इस पर धर्मया था। इसमें विदेशीय ऐतिहासिकोके मतये "पेपिरस" लिख कर विक्रय करते थे। इस समय में केवल ( Pepirus Antiquorum) वा वाईवेबके मतसे "बुलरस" (Bulrush) नामक तणके जड़से बने हुए ] मिसरीय सीम ही 'पपिरि' बना जानते थे, अतः प्रोक ।
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