पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२८०

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कांस-काक कांस (सं० वि०) कंसी देशमैदोऽभिन्ननो ऽस्य, कस सुखबोधके मतमें यह देहको दृढ़ता और आयु बढ़ाता अण। सिन्धु तक्षशिलादिभ्योऽपषो। पा४।६।९। कंसाधि है। इसका शोधन मारण प्रकृति तानकी भांति किया ठित भोजदेशीय, कस देशमें पैदा होनेवाले। . जाता है। किसी किसान इसके शोधन और मारणका कांसपात्र (सं० ली.) आढ़क परिमाण, ४००६ विधि स्वतन्त्र भी माना है। शोधन के लिये कांस्यके भासको तौल। पतले पतले पत्र पग्निमें खूब तपाये और तीन तीन कांसा (हि.पु.) १ कांस्य, कसकुट, भरत। यह वार तैल, तक, कान्त्रिक, गोमूत्र तथा कुलथम वुझाये तांबे पोर जस्तैसे मिलकर बनता है। २ कासा, भौख जात है। मारणमें कांस्य के क्षुद्र पत्रोंपर पक्षीरसे मांगनेका खप्पर । गन्धक पीस गाद लेपन चढ़ाते और मूषापुटमें उन्हें कांसांगर (चि०) कांस्यकार देखो। रख गजपुटसे पकाते हैं (मावप्रकाश) ३ वाद्य- कांसिका (सं० स्त्री० ) मुहपर्णी, मोठ अनाज । विशेष, घड़ियाल । ४ मानविशेष, एक तोल । कांसी (सं० स्त्री.)। सौराष्ट्रमृत्तिका। २ कांस्यधातु। (वि.) ५ ताम्बरङ्ग उपधातुसे सम्बन्ध रखनेवाला, कांसी (हिं. स्त्री०) १ धान्यरोगविशेष, धानके पोदेकी भरतिया। एक बीमारी। २ कास्य, कांचा। ३ कनिष्ठा, सबसे कांस्यक (सं० क्लो) कांस्य देखो . छोटी पौरत । ४ कामरोग. खांमी। कांसीय, कांस्य देखो। कांस्यार (सं.पु. ) कस्यं तत् पात्र करोति, कांस्यक- कासुला (हि.पु.) यन्त्रविशेष. एक औज़ार, कंसला। अग। कांसकार, कसेरा । कसेरा देखो। यह कांस्य धातुका एक चतुष्कोण खण्ड होता है। कांस्यज (सं० वि०) कास्याज्जायते, कांस्य जन-ड। इसकी चारो ओर गोलाकार गते बनाये जाते हैं। कांस्य धातु द्वारा प्रस्तुत; कार का बना हुवा। खणं कार कंमुले पर रौप्य वा स्वर्णके पत्र रख कण्ठा कांस्यताल (सं० पु० ) कांस्येन निर्मित: तालः, मध्य- धुण्डी तैयार करते हैं। पदली. १ करताला २ मंजीरा। कांसेबिल (प.पु०-Constable ) दण्डधर, राज कांस्यदाहनी (सं० स्त्री०) कसोरी, कांसे को दुदहंडी। पुरुष, गुरैत, चौकीदार, पुलिसका सिपाही। पुलिसके कांस्यनौल (सं० पु०) कांस्येन क्षत: नीलः, मध्य- सिपाहियों का जमादार 'हेड कांसे बिल' पौर चन्द पदली। नौलतुल्या, तूतिया, नीलाथोथा। इसका 'रोजका चौकीदार 'स्पेशल का विल' कहलाता है। संस्कृत पर्याय भूषातुल्य, हेमतार और वितुबक है। कांस्य (सं० हौं) कंसाय पानपात्राय हितं कसौयं कांस्यभाजन (सं० क्लो०) ताम्ब और रक्षाका उपधातु, तस्य विकारः, कंशीय-यज छनोपः। कसौय परशययोर्य- बक्षी लुक्छ । पा॥ ४ ॥३॥ १६८। कंसमेव इति खार्थे यञ् कांस्यमय (त्रि.) कांस्यसे बनो या भरा हुवा, वा। १ पानपात्र, कटोरा, प्याला। २ ताम्र और जो कांससे बना या भरा हो। रहका उपधात. कांसा, कसकुट, तांवे पौर जस्ते को कास्थमन (सं० ली.) तामकिष्ट, जङ्गार, तावका मिला कर बनाया हुवा एक उपधातु । इसका संस्कृत कसाका पर्यायकस, कंसास्थि, तानाध, सौराष्ट्रक, घोष, कांसौय, | कांस्यमाक्षिक (सं० क्लो०) धातु द्रव्यविशेष, किसी वन्दिचोइक, दीप्तिन्नोई, घोरधुष्य, दीप्तिकांस्य और किस्मका चकमक। कास्य है। राजनिघण्ट के मतसे यह तित, उष्ण, रुक्ष, कांस्याम (सं०. त्रि०) कांस्यसदृश प्राभाविशिष्ट, कषाय, लघु, अग्निदीपक, पाचक, स्नान:समूह तथा कांसेकी तरह चमकनेवाला। चक्षुके लिये हितकारक, रुचिकारक और वायु एवं कांस्यालु, : कांसा देखो। कफरोगनाशक होता है। राजवल्लभने इसे नरम, काक (हिं. पु०)१वक्ष विशेषको वाधवा, प्रधारा, विशद, लेखन, सारक पौर पित्तनाशक भी कहा है। कागको छाल। यह मृदु रहता और दवानसे कुछ Vol. IV. 71 कांसा। -