1 पोलित हुये। 1 कबीर कबीर (अ० वि०) लब्धप्रतिष्ठ, बड़ा। बहुत बड़े गया। शिशुने उसका भय निवारणकर कहा था- भादमौको अमौर-कवीर कहते हैं। (हिं० स्त्री०) तुम हमें प्रतिपालन करो और किसी बातसे न डरो अश्लील गीत, फोहश गाना। यह होलीमें गायी। इसीप्रकार शिशुरूपी कबीर जोलाईके हाथ लाक्षित जाती है। कोई कबीर कहनेसे पहले लोग 'अररर कबीर' पद लगा लिया करते हैं। कबीरके जीवनका प्रथमांश जैसा कौतुकाव कबीर-कबीरपन्थी नामक सम्प्रदायके प्रवर्तक। ठीक पाता, वैसा ही अवशिष्ट अंश भी देखाता है। भक्ति- कह नहीं सकते-कबीर किसके पुत्र अथवा किस माहात्म्य नामक संस्कृत ग्रन्थमें लिखा है- जातिके व्यक्ति रहे। इनकी जाति, सन्तति चौर पूर्वकाल वेदान्ताभ्यासनिरत एक ब्राह्मण रहे। उत्पत्तिके विषयमें नाना विवरण मिलते हैं। वह स्त्री-पुत्र के लिये शिल्पकार्यसे जीविका चलाते थे। सुसलमान् इन्हें अपनी नातिके व्यक्ति बताते हैं। किन्तु एकदिन सूत्र लेनेको उन्हें तन्तुवायके भवन जाना यतामालमें लिखा है- पड़ा। वहांसे अपने घर लौटनेपर वह ज्वर रोगसे रामानन्द-शिष्य किसी ब्राह्मणके एक बालविधवा श्रानान्त हुये और दैवयोगसे उसी ज्वरमें मर गये। कन्या रही। किसी दिन वह ब्राह्मण कन्या साथ ले मृत्युकालको स्मरण पानेसे हो तन्तुवाथके घर उनका गुरुदर्शनको पहुंचे। फिर रामानन्दने उस मानण जन्म हुवा। तन्तुवायके घर जन्म ले ब्राह्मणने प्रथम यन्याकी भक्ति देख सहसा पुत्रवती होनेको भाशीर्वाद | वस्त्रादि निर्माण करना सीखा था। किन्तु पूर्वसंस्कार-- दिया था। पाशीर्वाद भी वृथा न गया, बालविधवा वशत: उनमें प्रधाज्ञान भो उत्पन्न हुवा। वह सर्वदा कन्याके एक पुत्र उत्पन्न हुवा। उसी पुत्रका नाम कहा करते थे-संसार प्रसार और यह जीवन पन- कवीर है। भूमिष्ठ होते ही अभागिनी जननी पत्रपर जलके समान है। इस काशीधाममें कौन हमारा खोकापवादके भयसे गुप्तभाव, शिशको स्थानान्तरपर गुरु होगा ? कौन हमें इस संसार-सागरसे बचायेगा ? छोड़ पायी थी। फिर किसी नोलाहे और उसकी कर्णधार न मिलने पर यह देहतरी कैसे चलेगो ? स्त्रीने देवात् शिशको पाकर निज पुत्रको भांति किसी दिन उन्होंने कितने ही साधवोंके निकट उपस्थित हो अपना मनोभाव प्रकट किया। वष्णव- लालनपालन किया। कबीरपन्यो भक्तभालके प्रथम अंशको बिलकुल | साधुवोंने उनसे पूछा, तुम कौन और क्या चाहते नहीं मानते। उनके मतमें कबीर एकदिन काशीके हो। उन्होंने कहा-हम जातिके सन्तुवाय और. रामानन्दके शिष्य होना चाहते हैं। वैष्णव उपहास निकट लहर ताला' नामक सरोवरके पद्मपत्र पर कर कहने लगे-तुम म्लेच्छ हो, तुम्हारा गुरु तैरते थे। उसी स्थानसे नूरी जोलाहा अपनी पत्नी कौन होगा! गौमाके साथ विवाहनिमन्त्रण में जाता रहा। नीमा फिर तन्तुवायरूपो. कधीर भम्नमनोरथ घरको इस शिशुको देख अपनी स्वामौके निकट ले प्रायो। लौटे थे। उनका मन अस्थिर हो गया। उन्होंने फिर फिर शिशुने उससे पुकार कर कहा-हमें काशी ले चलो। नरी सद्योजात शिशुको बात सुन प्रति- साधुवोंके निकट जा अपने मनका दुःख देखाया था। किन्तु इस बार भी उनको मनस्कामना पूर्ण न हुयी। शय विस्मयापन्न हुवा और सोचने लगा-कोई फिर वह अस्थिर चित्तसे वाराणसी में घूमने लगे। वह उपदेवता मानवदेह धारणकर आ गया। अन्तको जिसको देखते, उससे पूछते थे-क्या प्राप. बता उसने प्राणके भयसे डर और शिशुको फंक पलायन सकते, गुरु रामानन्द कहां हैं। इसीप्रकार वहुदिन किया। किन्तु शिश उसके पीछे पड़ा था। कोई बीत गये। किसी दिन एक वैष्णवने उनसे दयाकर पाध कोस जाकर नरीने देखा, कि शिशु उसके समुख रहा। उस समय वह भयसे जड़ीभूत हो। कहा था-गुरु रामानन्द अमुक स्थानपर रहते हैं।
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२८
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