८००० 1 कांगड़ा वांटा है। उत्तरार्धको बड़ा बनाइल और दक्षिणा मुख ससैन्य आये थे । भारतीय राजावोंसे वाधा देनेको धंको छोटा बङ्गाल कहते हैं। बड़े बङ्गालमें कूलूके यथा साध्य चेष्टा लगायो, किन्तु कोई बात बन न मध्य स्थलपर बड़ा बङ्गाइल पहाड़ है। यह देय में पायो। महमूदने कांगड़े का दुर्ग अधिकार कर देव- पन्द्रह मौल और उच्चता १७००० हजार फीट पड़ता मूर्तियों के साथ स्वर्ण, रोप्य, मणिमाणिक्य प्रभृति बहु- है। इसमें एक सामान्य ग्राम है। उसमें कोई मूल्य धन लूटा था। कोई ३५ वर्ष पीछे राजपूतोंने कुनैत रहते हैं। एक वर्ष दारुण तुषारपातसे कांगडेका दुर्ग छीन फिर राजपूताने बड़े समारोहके लोगोंके बहुतसे घर वह गये। इसी गिरिका अत्युच्च देवमूर्ति प्रतिष्ठा किया था। शृष्ण फोड़ इरावती नदी निकली है। कुछ दिन कोई गड़बड़ न पड़ा। १३६० दे०को छोटे बङ्गालके बीच में १००० फीट ऊंचा एक फीरोजशाह तुगलक कांगड़ेको ओर पड़ने पाये। गिरिशृङ्ग है। उसने इस स्थानको दो भागों में बांटा है। कांगड़ेके राजावोंने उनको वश्यता माननसे अपना निम्नांशमें १८२० ग्राम विद्यमान हैं। सकल ग्राममि राज्य तो पाया, किन्तु पवित्र देवमूर्तियोंको गंवाया केवल कुनैत और दाधी रहते हैं। था। मुसलमानोंने देवमूर्तियां लूट मक्के भेज दीं। बाइल तालुकके कुछ अंशका नाम बीर बनाइल १५५६ ई०को पकवर वादशाहने कांगड़ेका दुर्ग है। इस स्थानका प्राकृतिक सौन्दर्य मनोहर है। अधिकार किया। उसी समयसै यह पार्वतीय भूभाग कांगड़ा जिलेके बीच तीन गिरि भेड़ियां समभावसे दिल्लीके सामाज्यमें मिल गया, केवच दुर्गम भरमय निकली हैं। इन्हीं गिरिश्रेणियोंसे विपाशा, चन्द्रभागा, स्थान देशी सरदारोंके हाथ रहा । राजपूतोंने दी स्थिति और परावती नदी निकली है। बार विद्रोही हो कांगड़ा दुर्ग के उद्धारको चेटा लगायी पुरातत्त्व और इतिहास-भारत और पुराणादिमें कुलिन्द थी। जहांगीर दोनों वार (१६१५ और १६२८ ई.) और कुलूत नामक पार्वतीय नातिका नाम लिखा है। कतोच राजकुमारीको शासन करने आये थे। पन्तको वही यहांक प्राचीन अधिवासी थे। उस समय कांगड़ा वैस-सरदार कर देनेपर सम्मत हुये। कुछ कुलत और कुछ कुलिन्द (कुनिन्द)जनपदमें रहा। जहांगीरने प्राळतिक सौन्दर्यसे मोहित हो यहां रहने के लिये ग्रीमभवन बनानेको आदेश किया था। आजकल कुर्त तथा कुलिन्द जातिको कुलू और कुनैत कहते हैं। कुलूत और कुलिन्द देखो। आज भी कांगड़ेके गगरी ग्राममें उक्त ग्रीनभवनका कुलूत और कुलिन्द लोगोंको हरा राजपूतोंने यह चिङ्ग देख पड़ता है। स्थान अधिकार किया। उन्होंने यह पार्वतीय भूभाग दिलीके मुसलमान बादशाद कांगडेके सरदारोंको विभागकर बहुकाल राजत्व चलाया। वह अपनेको उपेक्षा करते न थे। सब लोग विशेष सम्मानाई रहे। कुरुपाण्डवके समकालीन जालन्धरका कतीच राजवंश पदके अनुसार मर्यादा मिलती थी। १६४६.०को वताते थे। मुसलमानोंके आक्रमणसे उकता कतोच- नरपरके राजा जगत्चन्द्र शाहजहानके, प्रादेशसे १४००० सैन्यका अधिनेटपद पाया। उन्होंने उसी. राजकुमारोंने कांगड़ेको गिरिदुर्गमें आश्रय लिया । सैन्यके साहाय्यसे बलख और बदखयान्के भोजवैकोको उनका विपुल राज्य क्षुद्र क्षुद्र अंधों में बंट गया। उस समयभौ यहाके नगरकोटवाले भारतीय देवमन्दिर हराया था। विशेष प्रसिद्ध थे। ऐसा ऐश्वयं पञ्जावके किसी दूसरे १६६१ ई.को औरंगजेबके राजत्वकाल जगत देवमन्दिरों में न रहा। भारतीय लोगोंने देवमूर्तिको चन्ट्रके पौत्र मान्धाता कुछ दिनके लिये सुदूरवर्ती बामियान और गारबन्दक शासनकर्ता बने। २० वर्ष बड़ी श्रद्धा भक्ति करते थे। १००० को महमूद पौछे उन्होंने दो इजारो मनसबदारका पद पाया था। गजनवीन कांगड़ेको मन्दिरोंको बड़ाई सुनौं। उनका १७५८ ई०की कांगड़ेके रामा घमणचन्द मानन्धर लोम और विदेष बढ़ गया। वह पेशावरके क्षेत्राभि- । -
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२७५
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