- . शायरी। अण्ड कसार- -कसैला २६५ कसार (हि.पु.) खाद्यविशेष, पंजोरी। धीमें भुना । टुकड़े भातमें भी पड़ते हैं। यह स्वास्थयकर और और चीनी मिला पाटा कसार कहता है। सुखादु होती है। जापान पादि देशोंमें कसीसे मद्य कसाशा (हि.पु.) १ केश, तकलीफ। २ परिश्रम, प्रस्तुत किया जाता है। वौजको पौषधमें डालते हैं। मेहनत। ३ अनुभेद,.एक खटायो। कसमें स्वर्णकार दानों की माला बनती है। नेपालकै थारू लोग कसौके वीज टोकरोंको भालरों में टीकते हैं। - पचहारादि परिष्कार करते है कसाव (हिं. पु.) १ कषायता, कसैलापन। कचियाड़ी, बङ्गाल प्रान्तकै मेदिनीपुर जिलेको तमलुक २ भाकर्षण, खिंचाव। तहसीलका एक ग्राम। यह प्रक्षा• २२७२५ कसावट (दि. स्त्री०) पाकर्षण, खींचतान । १० और देशा० ८७ १६२०"पू० पर अवस्थित है। कमावड़ा (हिं. पु.) गाधानक, कसाई। कसियाडी वाणिज्यप्रधान स्थान है। यहां तसरको कम्पुि (सं• पु.) कशति शास्ति दुःखम्, नियातनात् | कषि होती है। तसके व्यवसायसे हो कसियाड़ी सितम्। पत्र, चावल, भात् । विख्यात है। कसिया (हिं. स्त्री०) पक्षिविशेष, एक चिड़िया। कसोदा (हिं.) कशीदा देखी। यह धूसरवणं होता और राजपूताने तया पक्षावको कसोदा (श्र० पु०.) कविताविशेष, किसी किस्मकी छोड़ भारतवर्ष सर्वत्र मिलती है। इसका कुलाय यह उर्दू या पारसीमें बनाया जाता है। (घोसम्ता) वृक्षको उच्च शाखा पर बनता है। इसमें व्यशिविशेषकी स्तुति वा निन्दा रहती है। पीताभ होते है। कसोदमें कमसे कम १७ पंक्तियां पड़ती हैं। कसियाना (हिं. लि.) कषायित्त हो जाना, कसाना। कसोस (हिं.) कायोग देखो। खट्टी चीज़ ताव या धोतलके वरतनमें रखनेसे कमाने कसून (हिं० पु. ) अश्वभेद, सुलेमानी घोड़ा। इसकी लगती है प्रांखें कच्ची धोती हैं। कमी (हिं. स्त्री.) १ रन्जु भेद, एक रसो। इससे | कसूमर (हिं० पु०) कुसुम्भ, कुसुम । भूमि नापी जाती है। देयं प्रायः दो पद (सवा कसूर (प्र. पु. ) अपराध, खता, चूक। ४८ इच्च ) पड़ता है। २ हलका अग्रभाग, फाल। कसूरमन्द (का०वि०) अपराधी, सतावार । ३ अवैधुक वृक्ष, एक पौधा । कसूरवार बसूरमन्द देखो। प्राचीन कालको इसका चरु वैदिक यजम लगता| कसैरहवा (हि.पु.) कसेरोंज्ञा बाजार, कसरहा। था। कसो क्वषिका एक द्रव्य रही वर्तमानमें | कसेरा (हिं. पु.) युक्वंप्रदेश और विहारके वनियोंको इसको कपि बन्द हो गयी है। फिर भी मध्य एक जाति। यह कांसे और फूल वगैरहके वर्तन प्रदेश, सिकिम, पासाम पोर ब्रह्मदेश जङ्गली वनावना वचते है। लोग कसी लगाते हैं। यह भारत, ब्रह्म, मलय, चौन, कसेरु (पु. खो०) कशेरु देखो। जापान प्रभृति देशोंमें वन्य अवस्था पर पायी जाती कमेरुका (सं० स्त्री०) को देखो। है। कसी कई प्रकार की होती है। दो भेद प्रधान सरु (ईि.) कसे कांदेखो। हैं, खेतवर्ण और कृष्णवर्ण। वर्षा ऋतु इसको कसेया (हिं० पु.) १ मजबूत बांधनेवाला, जो कस उत्पत्तिका समय है। मूलसे कई बार शाखायें देता है। २ परीक्षक, जांचनेवाचा। ३ गोधातक, फूटती है। फल गोल, सुदीर्घ और एक ओर तीक्ष्याय कसाई। रहते है। त्वक् कठिन और चिकण होती है। खेत कसैक्षा (हिं. वि.). कषायरस विशिष्ट, कसानवाला, सारको रोटी बनती है। फच भून कर सारको जो जोमको ऐंठता या सिकोड़ता है। कपाय द्रव्य मनुको मांति खाते भी हैं। फिर भपक सारके जसमें पाक करनेसे कथा वर्ण बनता है। Vol. IV. 67
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२६४
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